दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तरह भारत भी बड़ी संख्या में खेती से जुड़े श्रमिकों को गैर-कृषि क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की इच्छा रखता है। भले ही दशकों से गैर-कृषि क्षेत्रों में स्थानांतरण धीमा रहा है, लेकिन कोविड-19 महामारी ने इस प्रवृत्ति को उलट दिया।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ( आईएलओ) और गैर लाभकारी स्वयंसेवी संस्था इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स द्वारा स्थापित इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (आईएचडी) द्वारा तैयार की गई "इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024" के अनुसार ‘गैर-कृषि रोजगार’ की धीमी गति में बदलाव की प्रवृति उलट गई है। हालांकि गैर-कृषि क्षेत्र में दशकों से कोई बदलाव नहीं देखा गया और यह स्थिर बना हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "2019 के बाद महामारी के कारण यह धीमा बदलाव उलट गया और कृषि रोजगार की हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ-साथ कृषि कार्यबल के आकार में भी वृद्धि हुई।"
इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से 2000 से 2022 के दौरान आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसओ) और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के माध्यम से उत्पन्न रोजगार पर भारत सरकार के आंकड़ों का उपयोग किया गया है।
साल 2020-2022 के दौरान कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या में लगभग 5.6 करोड़ की वृद्धि दर्ज की गई। यह अवधि मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के प्रकोप के साथ मेल खाती है, जिसके कारण लगभग दो महीने का सख्त लॉकडाउन लगा और उसके बाद 2022 में इसकी अवधि कम हो गई।
साल 2020 में देश में शहरों से गांवों की ओर अनौपचारिक श्रमिकों का पलायन हुआ और इसे 1947 के विभाजन से भी बड़ी त्रासदी बताया गया, जिसने भारत और पाकिस्तान को जन्म दिया।
2020 में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में श्रमिकों की संख्या में 3.08 करोड़ की वृद्धि हुई। अगले वर्ष कृषि क्षेत्र के कार्यबल में 1.21 करोड़ जुड़ गए और 2022 में 1.29 करोड़ लोग और कृषि-श्रमिकों की सूची में शामिल हो गए।
रिपोर्ट में कहा गया है, "2000 से 2019 के बीच वयस्कों की तुलना में युवा अधिक संख्या में कृषि से बाहर चले गए, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते ऐसा बदलाव आया कि युवाओं का गैर कृषि क्षेत्रों के प्रति मोह कम हो गया।
इस तरह 20 साल की प्रवृति उलट गई। आईएलओ-आईएचडी रिपोर्ट में कहा गया है, "2000-19 के दौरान कम उत्पादकता वाले कृषि क्षेत्र के मुकाबले उच्च उत्पादकता वाले गैर-कृषि क्षेत्रों में रोजगार की प्रवृति में बदलाव हुआ।"
वास्तविकता यह है कि 2000-2019 के दौरान कृषि क्षेत्र में रोजगार में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। इसके मुकाबले निर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार में तेज वृद्धि हुई। इन क्षेत्रों में रोजगार पाने वाले ज्यादातर कृषि श्रमिक थे, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि 2019-2022 के दौरान कृषि विकास में तेजी आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "महामारी की वजह से आई आर्थिक मंदी के कारण और कृषि क्षेत्र से बाहर काम के अवसरों की कमी के कारण लोग खेतीबाड़ी की ओर आकर्षित हुए। यही वजह थी कि 2019 से 2022 के दौरान कृषि विकास में तेजी आई।"
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 2019 से पहले रोजगार वृद्धि लगभग स्थिर हो गई थी और कोविड-19 महामारी के बाद रोजगार में पर्याप्त वृद्धि हुई। यहां तक कि कृषि रोजगार वृद्धि ने कृषि सकल मूल्य वर्धित वृद्धि को भी पीछे छोड़ दिया।
2019-2021 में गांवों और कृषि क्षेत्र में पलायन ने देश में श्रम बाजार की संरचना को पूरी तरह बदल दिया है।
कृषि की ओर वापसी का यह बदलाव अपने आप में अच्छी खबर नहीं हो सकता है। इसे संकट का संकेत भी माना जा सकता है। चूंकि गैर-कृषि क्षेत्र रोजगार पैदा करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए लोगों को गैर-लाभकारी कृषि क्षेत्र में वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
इसके अलावा कृषि कार्यबल में यह वृद्धि 2020-2022 के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं के इस क्षेत्र में वापस आने के कारण हुई। रिपोर्ट में कहा गया है, "2019 के बाद वृद्धिशील रोजगार में लगभग दो तिहाई स्व-रोजगार श्रमिक शामिल थे, जिनमें अवैतनिक (महिला) पारिवारिक कार्यकर्ता प्रमुख हैं।"
2000-2019 के दौरान पुरुष भागीदारी दर की तुलना में महिला श्रम भागीदारी दर में गिरावट आई थी, लेकिन 2019-2022 में यह उलट गया।
पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं कृषि में वापस आ गईं। 2022 में, कार्यबल में, कृषि में कार्यरत महिलाओं का अनुपात 62.8 प्रतिशत था, जबकि पुरुषों के मामले में यह 38.1 प्रतिशत था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वयं के खाते वाले श्रमिकों या अवैतनिक पारिवारिक श्रमिकों या निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे अस्थायी श्रमिकों की वजह से कृषि क्षेत्र में रोजगार में वृद्धि हुई। इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में गरीब प्रवासी अपने मूल घर लौट रहे हैं और अपनी आजीविका के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इन क्षेत्रों में काम करने के लिए मजबूर हैं।
रिपोर्ट तैयार करते वक्त शोधकर्ताओं ने श्रमिकों को मिलने वाले मासिक वेतन की भी जांच की और पाया कि श्रमिकों की कमाई में कोई वृद्धि नहीं हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमित और स्व-रोजगार क्षेत्र में आय की वृद्धि दर 2021 तक कम या नकारात्मक रही, लेकिन 2022 के दौरान बढ़ी। महिला और पुरुष दोनों श्रमिकों की नियमित मजदूरी में 2018 और 2022 के बीच थोड़ी नकारात्मक वृद्धि हुई। हालांकि महिला स्व-रोजगार श्रमिकों की पुरुषों की तुलना में कमाई में काफी अधिक नकारात्मक वृद्धि हुई। लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आकस्मिक मजदूरी में थोड़ी बहुत वृद्धि दर अधिक रही।