कोरोना और तकनीकी विकास के चलते खतरे में हैं 8.5 करोड़ नौकरियां

वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की रिपोर्ट 'फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2020' से पता चला है कि कोरोना के चलते जॉब मार्केट में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है
कोरोना और तकनीकी विकास के चलते खतरे में हैं 8.5 करोड़ नौकरियां
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आज शायद ही दुनिया का ऐसा कोई देश होगा, जो कोरोनावायरस संक्रमण से अछूता हो। जहां एक तरफ लोगों की जान जा रही हैं, वहीं दूसरी और यह उनके काम-धंधे पर भी असर डाल रहा है। हाल ही में छपी वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की रिपोर्ट 'फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2020' से पता चला है कि इस महामारी के चलते जॉब मार्केट में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है। यह बदलाव समय से पहले ही दिखने लगा है। इसका असर दुनिया में करीब 8.5 करोड़ नौकरियों पर पड़ेगा। 

रिपोर्ट के अनुसार आने वाला वक्त मशीनों का होगा। 2025 तक मनुष्यों और मशीनों के बीच काम की एक होड़ सी शुरू हो जाएगी। जिसका असर करीब साढ़े 8 करोड़ नौकरियों पर पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार हालांकि इसके चलते 9.7 करोड़ नए अवसर भी पैदा होंगे, पर वो अवसर उन लोगों के लिए होंगे जो तकनीकी जानकारी रखते हैं। यह रिपोर्ट डब्लूइएफ द्वारा किये जॉब्स सर्वे पर आधारित है जिसमें 300 से ज्यादा ग्लोबल फर्मों के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया गया था। यह फर्म करीब 8 करोड़ श्रमिकों को रोजगार देते हैं। 

क्या इस बदलाव के लिए तैयार हैं भारत जैसे विकासशील देश

ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यही रहेगा कि क्या भारत जैसे विकाशील देश इस परिवर्तन को अपनाने के लिए तैयार हैं। इससे निपटने के लिए  सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को अपने कर्मचारियों पर अधिक ध्यान देना होगा। जिन्हें भविष्य के लिए तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। 

एक ओर जहां स्वचालन और डिजिटलीकरण के बढ़ने से डाटा एंट्री, एकाउंटिंग और प्रशासनिक कार्य क्षेत्र में रोजगार की मांग घट जाएगी। वहीं दूसरी ओर रोबोटिक और कंप्यूटिंग के बढ़ते उपयोग के चलते नए अवसर भी पैदा होंगे। 2025 में विश्लेषण और रचनात्मक कार्यों और उसके जानकारों की मांग बढ़ जाएगी। साथ ही डेटा एनालिसिस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कंटेंट क्रिएशन, क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डाटा और इ कॉमर्स जैसे क्षेत्र तेजी से उभरेंगे। 

रिपोर्ट के मुताबिक घर से काम करने का चलन आगे भी जारी रहेगा। श्रमिकों को भी अपने कैरियर में बदलाव के लिए तैयार रहना होगा। साथ ही उन्हें अपने तकनीकी ज्ञान और हुनर में कई बार बदलाव करने होंगे, जिससे वो भविष्य में पैदा होने वाले अवसरों का लाभ ले सकें। 

सर्वे के अनुसार 80 फीसदी से अधिक व्यावसायिक अधिकारी कार्य प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाने और नई तकनीकों का प्रयोग करने की योजना बना रहे हैं। वहीं 50 फीसदी मालिक अपनी कंपनी के कुछ कामों में ऑटोमेशन को बढ़ावा देने की उम्मीद कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार एक ओर जहां नौकरियों में तेजी से गिरावट आ रही है वहीं बहुत धीमी गति से इनका सृजन हो रहा है। 

सर्वे में शामिल 43 फीसदी व्यवसायों ने संकेत दिया है कि टेक्नोलॉजी के बढ़ते उपयोग के चलते वो अपने श्रमिकों को कम करने के लिए तैयार हैं। जबकि 41 फीसदी विशिष्ट कार्यों के लिए ठेकेदारों की मदद लेने जा रहे हैं। वहीं 34 फीसदी की योजना अपने श्रमिकों को बढ़ने की है। रिपोर्ट में साफ़ कर दिया गया है कि 2025 तक मालिक, इंसान और मशीनों के बीच काम का बराबरी में बंटवारा कर देंगे। ऐसे में जहां इंसानी हुनर की जरुरत है वहां रोजगार की मांग बढ़ेगी। जबकि मशीनें मुख्य रूप से सूचनाओं और आंकड़ों के विश्लेषण के लिए इस्तेमाल की जाएंगी। 

वर्तमान में चल रही आर्थिक मंदी के बावजूद अधिकांश नियोक्ता (66 फीसदी) एक वर्ष के अंदर अपने श्रमिकों को बचाने के लिए अपस्किलिंग और रीस्किलिंग में निवेश करने को तैयार हैं। करीब 84 फीसदी नियोक्ता काम करने की प्रक्रिया को डिजिटल करने के लिए तैयार हैं। उनके अनुसार 44 फीसदी श्रमिकों को दूर से भी काम दिया जा सकता है। हालांकि 78 फीसदी ने माना कि इसका कुछ असर कर्मचारियों की उत्पादकता पर भी पड़ रहा है। इससे पता चलता है कि कुछ उद्योग और कंपनियां अभी भी कोविड-19 के चलते काम करने के तरीकों में आए बदलावों को ठीक से नहीं अपना पाए हैं। 

वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की प्रबंध संचालक सादिया जाहिदी ने बताया कि जो बदलाव भविष्य में आने थे वो कोरोनावायरस के चलते बहुत जल्द सामने आने लगेंगे। एक तरफ ऑटोमेशन और दूसरी तरफ इस महामारी से उपजी मंदी ने श्रम बाजार में मौजूद असमानता को और बढ़ा दिया है। 2007-2008 के वित्तीय संकट के बाद रोजगार के क्षेत्र में जो विकास हुआ था, वो अब इनके चलते फिर से पीछे आ गया है। ऐसे में श्रमिकों पर दोहरी मार पड़ रही है। ऐसे में न केवल सरकार और व्यवसायों को इन पर ध्यान देना होगा, साथ ही कर्मचारियों को भी इससे निपटने के लिए अपने आप को तैयार करने की जरुरत है।

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