फरवरी 2021 आने में कुछ ही दिन रह गए है जब गोवा में खनन पर रोक के तीन साल पूरे होंगे। सन 2018 में भारत के शीर्ष न्यायालय ने गोवा के 88 खनन पट्टों के नवीनीकरण को रद्द करने के बाद लौह अयस्क खनन पर रोक लगा दी थी। खनन पर रोक लगने के बाद किस तरह के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़े इसी को लेकर धनबाद के आईआईटी-आईएसएम ने एक अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की है।
धनबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स ने गोवा में खनन पर निर्भर रहने वाले लोगों की आजीविका की रक्षा के लिए गोवा खनन मामले में केंद्र सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।
अध्ययन में धनबाद के आईआईटी-आईएसएम ने 7 फरवरी 2018 को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सीधे आदेश के परिणामस्वरूप राज्य में लौह अयस्क खनन पर प्रतिबंध के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव का दस्तावेजीकरण किया। प्रतिबंध लगने से सभी खनन गतिविधियों को रोक दिया गया था। अध्ययन में पाया गया कि प्रतिबंध ने खनन क्षेत्रों में आर्थिक स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। इससे जुड़े परिवारों के लिए, खनन आय का प्रमुख स्रोत था और आर्थिक गतिविधि ने हाल के दिनों में राज्य को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 20 फीसदी से अधिक का योगदान दिया।
खनन क्षेत्र एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि और आय का स्रोत था, क्योंकि इससे 60 हजार से अधिक परिवारों की आजीविका जुड़ी हुई थी। राज्य की 25 फीसदी से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने अस्तित्व के लिए खनन पर निर्भर थी। चूंकि गोवा में खनन मुख्य रूप से निर्यात पर आधारित है, इसलिए यह देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा था।
पिछले दशक में गोवा के खनन उद्योग ने देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 13 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का योगदान दिया। राज्य सरकार ने वित्त वर्ष 2015-16 में खनिज रॉयल्टी के रूप में 43.11 करोड़ रुपये एकत्र किए। वहीं वित्त वर्ष 2016-17 और 2017-18 में समान रूप से यह बढ़कर 314.5 करोड़ रुपये और 239.6 करोड़ रुपये हुए।
हालांकि खनन न होने से राज्य पर ऋण बकाया हो गया है, इसने 2013 से 2020 के बीच की अवधि में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की, जब खनन रोकने के कारण राज्य के वित्त पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा जब खनन को आंशिक या पूरी तरह से निलंबित कर दिया गया था। राज्य की बिगड़ती आर्थिक सेहत के लिए राज्य पर लगातार बढ़ता ऋण है जो सबसे बड़ा चिंता का विषय है।
रिपोर्ट की अगुवाई करने वाले प्रोफेसर गुरदीप सिंह ने कहा कि रिपोर्ट बताती है कि गोवा राज्य हितधारकों के साथ मिलकर किए गए खनन का एक प्रमुख उदाहरण है, हालाकि खनन बंद होने के बाद आय में कमी और बेरोजगारी में वृद्धि हुई, आय की अपेक्षा खर्चे बढ़ गए परिणामस्वरूप लोग घरों में आवश्यक खर्चों को पूरा करने के लिए बचत नहीं कर पा रहे हैं।
प्रोफेसर सिंह ने आगे कहा कि रिपोर्ट से निष्कर्ष निकता है कि गोवा राज्य में एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि होने के कारण खनन कार्य का फिर से शुरू होना एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है। जमा खनिज (मिनरल डिपॉजिट) खान को योजना के अनुसार वैज्ञानिक रूप से बंद किया जाना चाहिए। ताकि भावी पीढ़ियां इससे अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकें।
गोवा पहले से ही राजकोषीय घाटे के संकट से जूझ रहा है और राज्य के राजस्व उत्पन्न करने के लिए खनन राजस्व महत्वपूर्ण है। प्रत्येक वर्ष औसतन अतिरिक्त ऋण (2012 के बाद से) 1,055 करोड़ है। खनन उद्योग से राजस्व में हर साल 50 फीसदी से अधिक ऋण की भरपाई होती है। गोवा के राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में खनन और इसकी गतिविधियों का कुल योगदान 15 फीसदी से अधिक है। लगातार दो वर्षों तक, गोवा सरकार ने अपने वार्षिक बजटों में माना है कि जीडीपी में गिरावट का लगभग 20 फीसदी के लिए खनन पर रोक जिम्मेदार है। 2015 के बाद से, राज्य ने गोवा खनिज अयस्क स्थायी निधि के लिए 118.7 करोड़ रुपये एकत्र किए हैं।
गोवा खनिज अयस्क निर्यातक संघ के सचिव ग्लेन कलावमपारा ने कहा कि रिपोर्ट में सरकार और उद्योग की सबसे बुरी आशंकाओं के बारे में बताया गया है। खनन पर रोक लगाने से राज्य की पूर्व वित्तीय स्थितियों को कमजोर कर दिया है। खनन उद्योग पर निर्भर लोगों की आजीविका पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। खनन पर आश्रित लोगों के लिए राज्य और केंद्र सरकारों को मिलकर खनन को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने के लिए अनुरोध कर रहे हैं। क्योंकि राज्य में पिछले तीन सालों से खनन गतिविधियों पर रोक लगी है, बाजारों और परिसंपत्तियों में विश्वसनीयता का नुकसान हुआ है ऋण न चुकाने के कारण संपत्ति जब्त की जा रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि खनन पर रोक से राज्य के साथ-साथ संघ की आर्थिक गतिविधि, जीडीपी और विदेशी मुद्रा की भी अपूरणीय क्षति हुई है। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार के ऋण में साल-दर-साल वृद्धि हो रही है। इसके अलावा अचानक खनन में रोक लगने से निवेशकों के विश्वास में कमी आई है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले कुछ वर्षों से गोवा लौह अयस्क (आयरन ओर) ने जो स्थान बनाया है, वह अब अन्य प्रतियोगियों ने छीन लिया है।
रिपोर्ट में स्थायी तरीके से खनन को फिर से शुरू करने का सुझाव दिया गया है।