महामारी के दौरान बेरोजगारी का जो दौर आया था उसे गुजरने में अभी और वक्त लगेगा। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार 2022 के दौरान दुनिया भर में बेरोजगार लोगों की संख्या 20.7 करोड़ रहने का अनुमान है। गौरतलब है कि 2019 में यह आंकड़ा 18.6 करोड़ था। इसका मतलब है कि इस दौरान बेरोजगार लोगों की संख्या में 11 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है, जोकि 2.1 करोड़ है।
आईएलओ द्वारा जारी रिपोर्ट 'वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक - ट्रेंड 2022' के मुताबिक 2022 के दौरान काम के जो घंटों में कमी आने का अनुमान है वो 5.2 करोड़ फुल टाइम नौकरियों के बराबर है, जोकि 2019 की चौथी तिमाही से मिलती जुलती है। वहीं यदि 2021 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इस वर्ष में काम के जिन घंटों में कमी आई थी वो करीब 2.6 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर थी।
हालांकि यदि रिपोर्ट की मानें तो 2021 की तुलना में स्थिति में सुधार आने की सम्भावना है। इसकी बावजूद 2022 में काम किए गए समय (घंटों में) में महामारी से पहले की तुलना में 2 फीसदी की कमी का अनुमान है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि अभी भी रोजगार की स्थिति में सुधार आने में और वक्त लगेगा। आईएलओ का मानना है कि वैश्विक स्तर पर बेरोजगारी की यह स्थिति कम से कम 2023 तक महामारी से पहले के स्तर पर नहीं पहुंच सकती।
गौरतलब है कि बेरोजगारों का जो आंकड़ा 2019 में 18.6 करोड़ था वो 2020 में 22.4 करोड़ पर पहुंच गया था। 2021 में वो थोड़े सुधार के बाद 21.4 करोड़ पर पहुंच गया था। इसके बारे में अनुमान है कि यह आंकड़ा 2022 में 20.7 करोड़ और 2023 में 20.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा। इसी तरह वैश्विक स्तर पर यदि बेरोजगारी दर की बात की जाए तो वो 2019 में 5.4 फीसदी थी जो 2020 में बढ़कर 6.6 फीसदी पर पहुंच गई थी। आईएलओ का अनुमान है कि यह दर 2021 में 6.2 फीसदी पर पहुंच जाएगी, जबकि 2022 में इसके 5.9 फीसदी और 2023 में 5.7 फीसदी रहने की सम्भावना है।
डेल्टा और ओमिक्रॉन के कारण पैदा अनिश्चितता भी है जिम्मेवार
इतना ही नहीं 2022 में, वैश्विक श्रम शक्ति भागीदारी दर के 2019 की तुलना में 1.2 फीसदी नीचे रहने का अनुमान है। 2019 में यह दर 60.5 फीसदी थी जो 2020 में घटकर 58.6 फीसदी पर पहुंच गई थी। वहीं 2021 में यह थोड़े सुधार के बाद 59 फीसद पर पहुंच गई थी। जबकि इसके बारे में यह अनुमान है कि यह दर 2022 में 59.3 और 2023 में 59.4 फीसदी पर पहुंच सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार 2022 के पूर्वानुमान में गिरावट का यह अंदेशा कुछ हद तक, कोविड -19 के सामने आए हालिया वेरिएंट, जैसे कि डेल्टा और ओमिक्रॉन के कारण भी है। जो इनके रोजगार पर पड़ने वाले असर के साथ-साथ भविष्य में महामारी को लेकर व्याप्त अनिश्चितता को भी दर्शाता है।
इस बारे में आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर की राय है कि "श्रम बाजार में व्यापक सुधार के बिना इस महामारी से उबरा नहीं जा सकता। इतना ही नहीं इन सुधारों के शाश्वत होने के लिए इनका बेहतर काम के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। जिसका मतलब है कि इसमें स्वास्थ्य, सुरक्षा, समानता, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक संवाद शामिल होने चाहिए।"
रिपोर्ट के अनुसार यदि नौकरियों और जीविका पर छाए महामारी के यह काले बादल जल्द न छंटे तो इसके श्रम बाजार पर स्थायी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं। जिससे उसपर लम्बे समय के लिए संरचनात्मक परिवर्तन को प्रेरित करने का जोखिम मंडराने लगेगा।
इतना ही नहीं यह बढ़ती बेरोजगारी कहीं न कहीं गरीबी और असमानता में भी इजाफा कर रही है। खाद्य सुरक्षा की स्थिति बद से बदतर हो रही है, वहीं स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जिसका असर पहले ही अपनी जीविका के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के परेशानियों को और बढ़ा रहा है।