वित्त आयोग ने केंद्र की ओर से ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के लिए 4, 36, 361 करोड़ रुपए का अनुदान देने को कहा था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट पेश करते हुए 15 वें वित्त आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। वित्त आयोग का यह अनुदान 2021-26 अवधि के लिए है।
वित्त आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जो केंद्र व राज्यों के वित्तीय संबंधों से संबंधित है। स्थानीय निकाय जैसे कि ग्राम पंचायत और शहरी नगर पालिका भारतीय शासन प्रणाली में तीसरी श्रेणी की सरकारें हैं। पहला केंद्र सरकार है और दूसरा राज्य सरकार है। इस प्रकार, वित्त आयोग यह भी सिफारिश करता है कि केंद्र के विभाजन योग्य करों के पूल से इन स्थानीय निकायों को कितना प्राप्त होगा?
भारत में 2017 में कुल 2, 62, 771 निर्वाचित ग्रामीण पंचायतें और 4,657 शहरी निकाय थे। भारत के ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का लगभग 70 प्रतिशत इन पंचायतों के माध्यम से खर्च होता है, जो लगभग दो लाख करोड़ रुपए का होता है।
वित्त आयोग की नई सिफारिशों के मुताबिक, कुल राशि में से 2, 36, 805 करोड़ रुपए ग्रामीण पंचायतों और 1, 21, 055 करोड़ शहरी नगर पालिकाओं के लिए हैं। इसमें से 70, 051 करोड़ रुपये स्वास्थ्य अनुदान के रूप में दिए जाएंगे।
लगभग 135.2 लाख करोड़ रुपए का अनुमान लगाया गया है। इसमें से विभाजन योग्य करों के पूल की हिस्सेदारी 103 लाख करोड़ रुपए की होगी। इनमें से राज्यों को 41 फीसदी यानी 42.2 लाख करोड़ रुपए साल 2021-26 के लिए मिलेंगे।
इसके अलावा, 15 वें वित्त आयोग ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 1, 06,606 करोड़ अनुदान सहायता देने को भी कहा है। यह एक बिना शर्त अनुदान है और इसका उद्देश्य स्थानीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है। इस स्वास्थ्य अनुदान से, स्थानीय निकायों को 70,051 करोड़ रुपए मिल सकेंगे।
15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, 2020-21 में स्थानीय निकायों को 90,000 करोड़ रुपए मिलेंगे। इनमें से 60,750 करोड़ रुपए ग्रामीण क्षेत्रों और 29,250 करोड़ रुपए शहरी क्षेत्रों को दिए जाएंगे।
14 वें वित्त आयोग के तहत स्थानीय निकायों के लिए अनुदान में केवल ग्राम पंचायत (ब्लॉक और जिला पंचायतों को छोड़कर) शामिल थे। आयोग ने संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्रों की ग्राम पंचायतों को भी बाहर रखा था। इसी तरह, शहरी स्थानीय निकायों के लिए आयोग जनसंख्या और भौगोलिक आकार के आधार पर कोई अंतर नहीं करता है। शहरी क्षेत्रों में छावनी बोर्डों को अनुदान से बाहर रखा गया था।
15 वें वित्त आयोग में छावनी बोर्डों के अलावा ग्रामीण पंचायतों के सभी स्तरों और अनुसूचित क्षेत्रों की पंचायतों को भी शामिल किया गया है।