केंद्र में गठबंधन की नई सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है। इस सरकार की नीतियां और उनका तय किया गया रास्ता हमारा भविष्य तय करेगा। इस नई सरकार से देश को आखिर किन वास्तविक मुद्दों पर ठोस काम की उम्मीद करनी चाहिए ? लेकिन ये उम्मीदें क्या होनी चाहिए, डाउन टू अर्थ अलग-अलग विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए लेखों की कड़ियों को प्रकाशित कर रहा है।
पिछले दशक में भारतीय शहरों ने कचरा प्रबंधन में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है। इस उपलब्धि में अहम भूमिका निभाने वाले कार्यक्रम हैं: स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम), 2014 में शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम जिसका लक्ष्य खुले में शौच को खत्म करना और स्वच्छता प्रणाली को बेहतर बनाना है; और स्वच्छ सर्वेक्षण, शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) द्वारा इन विकास लक्ष्यों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक मूल्यांकन उपकरण। इन कार्यक्रमों ने कचरा प्रबंधन का फोकस सिर्फ 'दिखावटी सफाई' से हटाकर 'कचरे से धन' की ओर स्थानांतरित कर दिया है, फिर भी भारतीय शहर प्रदूषण के मामले में पीछे ही हैं। यह महत्वपूर्ण है कि नई सरकार कचरा प्रबंधन की कला और विज्ञान को फिर से सीखे।
कोई झूठा समाधान नहीं
पहली नजर में, कचरे से धन कमाना उन शहरों के लिए फायदे का सौदा लगता है जो कचरे के ढेर में डूबे हुए हैं। उदाहरण के लिए, नगरपालिका के ठोस कचरे में मौजूद जैव-अपघटनीय पदार्थों का उपचार बायोगैस या कम्पोस्ट बनाने के लिए किया जा सकता है। इसके बाद भी भारत में एक भी कचरे से ऊर्जा बनाने का संयंत्र ऐसा नहीं है जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण के अनुकूल हो। इस विरोधाभास का एक कारण यह है कि शहर अभी भी मिश्रित कचरे को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करते हैं। अलग न किया गया कचरा अक्रिय और खतरनाक पदार्थों को समेटे हुए होता है और उसमें ऊष्मीय मान कम होता है, जो इन संयंत्रों को प्रदूषणकारी और अलाभकारी बना देता है।
एक्शन प्वॉइंट्स
स्रोत पर कचरे को अलग करने में सुधार के लिए सख्ती से नियम लागू कराना और व्यवहार परिवर्तन के उपाय करना
उचित उपचार सुनिश्चित करने के लिए कचरे को अलग-अलग एकत्र करना और ले जाना
लैंडफिल टैक्स और जैव-अपघटनीय, ज्वलनशील कचरे को फेंकने पर रोक लगाकर कचरा डालने को कम करना
इसी तरह, जब कचरे को अलग नहीं किया जाता है, तो प्लास्टिक, कागज और धातु जैसे रिसाइकल हो सकने वाले कचरे कार्बनिक कचरे से गंदे और दूषित हो जाते हैं। इससे इनकी बाजार में कम कीमत मिलती है। कचरे से धन प्राप्त करने के लिए, सरकार को इन उपायों को अपनाने की आवश्यकता है।
व्यवहार परिवर्तन पर जोर
चूंकि कचरा प्रबंधन यूएलबी और नागरिकों के बीच साझा जिम्मेदारी है, इसलिए स्रोत पर कचरे को अलग करने और घर पर खाद बनाने को बढ़ावा देने के लिए व्यवहार परिवर्तन में 'निवेश' करने के लिए नीतिगत उपायों को लागू किया जाना चाहिए। इन उपायों से होने वाले लाभ को भुनाने के लिए किसी व्यवस्था की जरूरत है।
नगरपालिका के बाई-लॉज का कानूनी उपकरण के तौर पर इस्तेमाल
संविधान (74वां संशोधन) अधिनियम, 1992, शहरी स्थानीय निकाय को बाई-लॉज के माध्यम से स्थानीय चुनौतियों का समाधान करने और उन्हें लागू करने के लिए उपयोग करने का अधिकार देता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई), दिल्ली द्वारा 37 शहरों में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि कानून में स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद, उनमें से सभी शहर स्रोत पर कचरे को अलग करने को लागू करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि शहरों के पास कचरे के उपचार या प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है।
उपचार को प्राथमिकता मिले
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 2021 की नवीनतम रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि शहर 95 प्रतिशत कचरा इकट्ठा तो कर लेते हैं, लेकिन उसमें से केवल 50 प्रतिशत का ही उपचार किया जाता है। शेष कचरे को बिना उपचार या प्रसंस्करण के लैंडफिल में या अन्य जगहों पर फेंक दिया जाता है। इससे यह संकेत मिलता है कि जब तक कचरे को अलग-अलग एकत्र और ले जाया नहीं जाता, तब तक कचरे के आसपास एक व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र नहीं बनाया जा सकता। सरकार को चुनौती से निपटने के लिए निम्नलिखित कार्य करने चाहिए:
रियायत समझौते को नया रूप दिया जाए
आधे शहरों में ठेकेदार कचरे के संग्रहण, परिवहन और निपटान के लिए जिम्मेदार होते हैं। उन्हें स्थानीय शहरी निकायों (यूएलबी) से मिश्रित कचरे के संग्रह के आधार पर भुगतान मिलता है। अलग किए गए या उपचारित कचरे की मात्रा के अनुसार रियायतकर्ताओं को भुगतान करने के लिए सतत सार्वजनिक खरीद पर एक राष्ट्रीय नीति लागू की जानी चाहिए।
विकेंद्रीकरण महत्वपूर्ण है
मिश्रित कचरे को लैंडफिल तक ले जाने और जमा करने में कुल बजट का 40 से 60 प्रतिशत खर्च हो जाता है। स्रोत पर अलग किए गए कचरे के उपचार के लिए स्थानीय स्तर पर विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। इससे परिवहन लागत में काफी कमी आएगी और लैंडफिल में जाने वाले कचरे को कम किया जा सकेगा। ओडिशा के 114 यूएलबी (स्थानीय शहरी निकाय) इस विकेन्द्रीकृत दृष्टिकोण को लागू कर रहे हैं।
कूड़े के बड़े उत्पादकों पर लगाम
अनुमान बताते हैं कि हाउसिंग सोसायटियों और उद्योगों जैसे थोक कचरा उत्पादक कुल पैदा होने वाले कचरे का 30 प्रतिशत पैदा करते हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, उन्हें अपने परिसर में ही जैविक कचरे का प्रबंधन करना चाहिए। लेकिन सीएसई के अध्ययन में पाया गया है कि बड़े कूड़ा उत्पादक इन नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। सीएसई का अनुमान है कि अगर इन नियमों को सख्ती से लागू किया जाए, तो शहरों का कचरा प्रबंधन बोझ 40 प्रतिशत कम हो सकता है।
अनौपचारिक क्षेत्र को शामिल करें
कचरा प्रबंधन में अनौपचारिक क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसे ध्यान में रखते हुए, पुणे नगर निगम ने 4,500 कूड़ा बीनने वालों के सहकारी समिति के साथ घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करने के लिए एक समझौता किया है। निगम उन्हें वेतन नहीं देता है, लेकिन उन्हें घरों से कचरा इकट्ठा करने का शुल्क लेने और रिसाइकिल किए जा सकने वाले कचरे को बेचने की अनुमति देता है। इस तरीके से कचरे को अलग-अलग करने की गारंटी मिली है और इकट्ठा करने की लागत में 45 प्रतिशत की कमी आई है। पूरे भारत में ऐसे उपायों को अपनाया जाना चाहिए।
कूड़े को खुले में फेंकने से रोकें
कचरा प्रबंधन एक महंगा काम है। कचरा इकट्ठा करने और ले जाने का खर्च 1500 रुपये से 3000 रुपये प्रति टन तक आता है। पहाड़ी इलाकों में ये खर्च और भी ज्यादा होता है। इसलिए, कूड़ा खुले में फेंकने को हतोत्साहित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
लैंडफिल टैक्स
भारत में कूड़े के ढेरों की वजह से 10,000 हेक्टेयर जमीन बर्बाद हो चुकी है। ताजा कचरे को लैंडफिल साइटों तक पहुंचने से रोकने के लिए, लैंडफिल को स्थानीय निकायों से हटाकर निजी कंपनियों को बोली के जरिए आवंटित किया जाना चाहिए। जितना कचरा लैंडफिल में लाया जाएगा, उसके हिसाब से कंपनी या स्थानीय निकाय पर टैक्स लगाया जाना चाहिए। कई देशों में लैंडफिल टैक्स की वजह से कचरे को खुले में फेंकना कम हुआ है।
जैविक और जलाने योग्य कचरे को लैंडफिल में डालने पर रोक लगाएं
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, सिर्फ सड़क की सफाई से निकली मिट्टी और थोड़ी मात्रा में निर्माण और तोड़-फोड़ का कचरा ही लैंडफिल में डाला जा सकता है, क्योंकि इनके दोबारा इस्तेमाल की कोई तकनीक नहीं है। जैविक कचरा सड़कर ग्रीनहाउस गैस पैदा करता है और जलाने योग्य कचरे में आग लगने का खतरा रहता है। जलाने योग्य कचरे से ऊर्जा भी बनाई जा सकती है। इसलिए, जैविक और जलाने योग्य कचरे को लैंडफिल में डालने पर कानूनी रोक लगाने की जरूरत है। लैंडफिल टैक्स के साथ, इस रोक से कचरा खुले में फेंकने को रोका जा सकेगा और स्थानीय निकाय कचरे से धन पैदा करने के लिए मजबूर होंगे।