टीवी की “पॉप” राजनीति

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और डाउन टू अर्थ के संस्थापक अनिल अग्रवाल की आज 19वीं पुण्यतिथि है। मास मीडिया का उनका आकलन आज भी प्रासंगिक है।
टीवी की “पॉप” राजनीति
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लोगों ने भूमंडलीकरण की बात मुख्य रूप से आर्थिक संदर्भ में की है। लेकिन 21वीं सदी राजनीतिक भूमंडलीकरण का एक रूप देखेगी जो 20वीं शताब्दी की संप्रभुता की अवधारणा को गंभीर चुनौती देगी। राजनीतिक भूमंडलीकरण का मार्ग प्रशस्त वही तकनीकी बदलाव करेंगे जो आर्थिक भूमंडलीकरण के लिए उत्तरदायी हैं। मुख्य रूप से वे नाटकीय परिवर्तन जो संचार तकनीक में हो रहे हैं और जो दुनिया को एक वैश्विक गांव में तब्दील कर रहे हैं।

आज मानवाधिकार वह क्षेत्र है जिनके बारे में राज्यों ने सोचना शुरू कर दिया है कि वे इस सिलसिले में दूसरे राज्यों के मामले में दखल दे सकते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स में हाल ही में प्रकाशित लेख बताता है कि नाटो कोसोवो में बमबारी कर रहा है। यह स्पष्ट संकेत है कि पश्चिम संप्रभुता के बजाय मानवीय अधिकारों को उच्च प्राथमिकता दे रहा है। अगर मारने वाले और टेलीविजन एक साथ आ जाएं जैसा उन्होंने कोसोवो में किया था तो यूरोप और अमेरिका के समझदार लोग मांग करने लगेंगे कि उनकी सरकारों को इस संबंध में कुछ करना चाहिए। (अगर टेलीविजन अगर गैर हाजिर है जैसा 1994 में रवांडा में नरसंहार के वक्त देखा गया था, यह मांग कम आग्रहपूर्ण होगी। हालांकि निर्दोष लोगों के जीवन का नुकसान बड़ी क्षति है।)

टेलीविजन निश्चित रूप से लोकप्रिय भावनाओं को पैदा करने में अहम भूमिका निभाता है और इस तरह चुनावी लोकतंत्र राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करता है। इसलिए जरूरी है कि टेलीविजन द्वारा सृजित पॉप पालिटिक्स की सीमाओं की तारीफ की जाए। टेलीविजन के पर्दे पर चलने वाले संदेश कैमरे के पीछे रहने वाले शख्स के झुकाव पर निर्भर करते हैं।

मानवाधिकारों के बारे में जो सच है, बिल्कुल वैसा ही सच पर्यावरण की चिंताओं का भी है। अमेजन के जंगलों पर बना एक सच्चा टेलीविजन कार्यक्रम नेताओं को बाध्य कर सकता है कि वे जंगलों के संरक्षण की दिशा में कदम उठाएं। लेकिन पश्चिमी टेलीविजन अफ्रीका के बंजर होने की तरफ बराबर ध्यान देने में असफल हो गया है, भले ही ये दुनिया के सबसे गरीबों के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती बन गए हैं। इसने राजनीतिज्ञों का ध्यान भी बहुत कम खींचा। इसी तरह कैमरा पर्यावरण के उन पहलुओं पर ध्यान देने में असफल हो सकता है जिनमें पश्चिम के हित न सधते हों। मसलन, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ग्लोबल एक्शन प्लान की निष्पक्षता का महत्व।


इन सबका तात्पर्य यह है कि हम लगातार संप्रभुता का क्षरण देख सकते हैं क्योंकि क्रॉस कंट्री चेतना जगाने करने वाले तकनीकी यंत्र लगातार विकसित होते रहेंगे। इंसान का इंसान का दर्द और मुसीबतों को समझने की विकसित होती क्षमता निश्चित रूप से एक अच्छा चलन है। लेकिन जो यंत्र वैश्विक चेतना जागृत कर रहे हैं अगर वे कुछ लोगों के हाथ में केंद्रित रहते हैं तो मानवीय चेतना आसानी से पक्षपाती और पूर्वाग्रहित हो सकती है। इसीलिए यह नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि बढ़ती वैश्विक चेतना कार्रवाई में तब्दील हो। कम ताकतवर देशों के नेताओं जिम्मेदारी अधिक बनती है कि दुनिया उस दिशा में मुड़े जिस तरफ वैश्विक का रुझान है। निष्क्रियता बदतर होगी।

30 अप्रैल 1999

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