कोरोना महामारी ने दुनियाभर के गरीब और अमीर देशों में गरीबी को बढ़ा दिया है। अब यह तय है कि सतत विकास से भयंकर गरीबी को खत्म करने का जो लक्ष्य दुनिया को 2030 तक हासिल करना था, वह पूरा नहीं होने जा रहा। दुनिया के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां गरीबी अपनी जड़ें जमाए बैठी है, जैसे दक्षिण एशिया और अफ्रीका महाद्वीप। पीढ़ियों से गरीबी इन क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है।
माना जा रहा है कि महामारी के दौर से उबरने पर गरीबी 2020 से पहले के स्तर पर आ जाएगी और उसके बाद दुनिया इन भौगोलिक क्षेत्रों से गरीबी हटाने की दिशा में फिर से आगे बढ़ेगी। लेकिन आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि 2030 तक जनसांख्यिकी और भौगोलिक स्तर पर गरीबी अपना रूप रंग बदलेगी।
अगर हम दुनिया के किसी भी देश में वास्तविक समय में गरीबी का स्तर दिखाने वाली वैश्विक डाटा लैब की वर्ल्ड पावर्टी क्लॉक की मानें तो यह स्पष्ट नजर आता है कि अफ्रीका के कुछ देशों में गरीबी आगे भी अपनी जड़ें जमाए रहेगी। यह क्लॉक गरीबी से निपटने के प्रयासों का लेखा-जोखा रखती है।
अफ्रीका के ये वही देश हैं, जो संघर्षों से ग्रस्त और सामाजिक व राजनीतिक तौर पर अस्थिर हैं, जिनका गरीबी से निपटने में असफल रहने का इतिहास रहा है। एक तरह से भयंकर गरीबी मुक्त दुनिया की आशा सबसे कठिन परिस्थितियों में गरीबी उन्मूलन के प्रयासों पर ही टिकी हुई है।
वैश्विक डाटा लैब का अनुमान है कि 2030 तक दुनिया के दो तिहाई भयंकर गरीब उन 39 देशों में रहेंगे, जिन्हें विश्व बैंक “कमजोर देश” की श्रेणी में रखता है। ये वे देश हैं, जिनमें संस्थागत और सामाजिक कमजोरी उच्च स्तर की है और ये हिंसात्मक अंतर्विरोधों से प्रभावित हैं। अफ्रीका के इन कमजोर देशों में भी नाइजीरिया और कांगो गणराज्य खासतौर से ऐसे देश होंगे, जहां गरीबों की तादाद ज्यादा होगी।
ब्रुकिंग्स के एक विश्लेषण के मुताबिक, “अफ्रीका में भौगोलिक तौर पर गरीबी जड़ें जमाए हुए है और वैश्विक स्तर पर इस दिशा में कामयाबी इस पर निर्भर करेगी कि इस महाद्वीप के कमजोर देशों में गरीबी कैसे कम की जा सकती है।”
फिलहाल सबसे गरीब जनसंख्या वाले दुनिया के दस देशों में चार कमजोर देश हैं। 2030 तक इनकी संख्या पांच हो जाएगी। सबसे गरीब आबादी वाले देशों में शीर्ष पर नाइजीरिया और कांगो गणराज्य होंगे, जहां दुनिया के सबसे ज्यादा गरीबों में से एक तिहाई गरीब मिलेंगे।
ब्रुकिंग्स के विश्लेषण में इशारा किया गया है कि क्या एक नवजात बच्चे का गरीब होना उसके जन्मस्थान पर निर्भर करेगा। नाइजीरिया और कांगो गणराज्य जैसे कमजोर देश में पैदा होना बच्चा गरीब होगा और जीवन भर भयंकर गरीबी भोगेगा। पहले से ही इन देशों के बच्चे बेहद गरीब हैं। उदाहरण के लिए नाइजीरिया की 50 फीसद भयंकर गरीब आबादी, 15 साल से कम उम्र के बच्चों की है।
गरीबी पर आधारित आंकड़ों के आधार पर ब्रुकिंग्स के विश्लेषण के मुताबिक, इन कमजोर देशों में बच्चों की आधी से ज्यादा आबादी भयंकर गरीबी का शिकार है। इस आधार पर उसने पाया निष्कर्ष निकाला कि अगर कोई बच्चा कमजोर देश में जन्म लेता है तो इसकी संभावना 50 फीसद है कि वह भयंकर गरीबी झेलते हुए ही बड़ा होगा।
बच्चों में गरीबी को आमतौर पर उन स्थितियों से जोड़कर देखा जाता है, जिनमें उनके माता-पिता बड़े हुए हों। कोई बहस कर सकता है कि जब गरीबी किसी समुदाय में पीढ़ियों से चली आ रही हो तो बच्चे के उससे ग्रसित होने के आसार तो रहेंगे ही।
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और आॅक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास उपक्रम ने गरीबी की एक बहुआयामी सूची तैयार की थी। इसमें पाया गया था कि दुनिया के 1.8 अरब गरीबों की उम्र 18 साल से कम है। यानी कि दुनिया में गरीब बच्चों की आबादी पहले से ही काफी ज्यादा है।
इसका मतलब है कि गरीबी कम करने में बच्चों की गरीबी पर फोकस महत्वपूर्ण है। सबसे पहले तो यह तय होना चाहिए कि एक गरीब बच्चे को उन्हीं स्थितियों का शिकार नहीं बनने देना चाहिए, जिनसे उसे माता-पिता को गुजरना पड़ा।
दूसरा, गरीबी में जन्म लेने के बावजूद बच्चे की गरीबी के जाल से निकलने में मदद करनी चाहिए। यानी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, दरअसल बच्चों के कल्याण का कार्यक्रम बनना चाहिए। हालांकि यह लक्ष्य उससे भी मुश्किल है, जो हमने 2030 तक गरीबी खत्म करने के लिए तय कर रखा है।