क्या बिहार से पलायन रोक पाएगी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार योजना?

बिहार सरकार ने केंद्र से मनरेगा में 200 दिन का रोजगार सुनिश्चित करने की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने 125 दिन की नई योजना लागू कर दी
बिहार के एक क्वरांटीन सेंटर में प्रवासी को दिए गए मनरेगा जॉब कार्ड। फोटो: पुष्यमित्र
बिहार के एक क्वरांटीन सेंटर में प्रवासी को दिए गए मनरेगा जॉब कार्ड। फोटो: पुष्यमित्र
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20 जून को केंद्र सरकार देश के प्रवासी मजदूरों के लिए एक विशेष योजना गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की। बिहार के लिए इस योजना का विशेष महत्व है, क्योंकि सात राज्यों के 116 जिलों में लागू होने वाली इस योजना की शुरुआत राज्य के खगड़िया जिले के तेलिहार गांव से की गई। इसमें राज्य के 38 में से 32 जिलों को शामिल किया गया है। इसके तहत प्रवासी मजदूरों को 125 दिन रोजगार दिया जाएगा। मगर अपनी तमाम सदिच्छाओं के बावजूद यह योजना राज्य में पिछले दिनों पहुंचे 20 लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों को आकर्षित कर पायेगी, उनकी आजीविका का समाधान कर पायेगी और उन्हें रोजी-रोटी के लिए पलायन करने से रोक पायेगी, यह कहना अभी काफी मुश्किल लग रहा है। क्योंकि राज्य में मनरेगा के संचालन के बावजूद बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन फिर से शुरू हो गया है।

हाल के दिनों में बड़ी संख्या में लौटे मजदूरों के लिए बिहार सरकार ने लॉकडाउन की अवधि में ही मनरेगा की शुरुआत कर दी थी। सभी क्वारंटीन सेंटरों पर जॉब कार्ड बांटे गए, घोषणा की गई थी कि इस साल मनरेगा के तहत राज्य में 24 करोड़ श्रम दिवस सृजित करने की कोशिश की जाएगी। जो राज्य में रहना चाहेंगे, उन्हें उनके घर में रोजगार मिलेगा। क्वारंटीन सेंटरों में मजदूरों की स्किल मैपिंग भी की गयी। इसके बावजूद अनलॉक शुरू होते ही बिहार से मजदूरों का पलायन शुरू हो गया। 

अलग योजना की क्या जरूरत

राज्य में मनरेगा और पलायन जैसे मसलों पर काम करने वाले पुष्पेंद्र जो टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, पटना में पढ़ाते हैं, कहते हैं, "मेरी राय में तो मनरेगा की विसंगतियों को ही सुधारा जाता तो बेहतर होता। अभी राज्य में मनरेगा मजदूरी की दर सिर्फ 202 रुपए हैं, जबकि केंद्र सरकार का खुद का आकलन है कि एक असंगठित मजदूर को भी सम्मानजनक जीवन जीने के लिए महीने में कम से कम 15 हजार रुपए की आय होनी चाहिए। यानी महीने में 25 दिन के काम के हिसाब से रोजाना 600 रुपए। अगर मजदूर मनरेगा की तरफ आकर्षित नहीं हो रहे तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसकी मजदूरी की दर काफी कम है।"

वे कहते हैं कि मजदूरी की दर बढ़े, मजदूरों को उनके हुनर के हिसाब से काम मिले, नियमित काम मिले और मजदूरी का भुगतान नियमित हो तो मजदूरों के लिए मनरेगा से बेहतर कोई योजना नहीं हो सकती। अलग से योजना बनाने की जरूरत नहीं थी।

बिहार ने 200 दिन के रोजगार की मांग की

बिहार सरकार मनरेगा के तहत 100 दिन के बदले 200 दिन रोजगार उपलब्ध कराने की अनुमति केंद्र सरकार से मांगती रही है। दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस मांग को दुहराया था। उस मांग को मानने के बदले केंद्र सरकार ने 125 दिनों की एक नई योजना लांच की है।

मजदूरों को लेकर गंभीर नहीं हैं सरकारें

‘प्रवासी मजदूरों की व्यथा’ नामक पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन इस योजना को रिपैकेजिंग बताते हैं और कहते हैं, ऐसी योजनाओं से मजदूरों का भला नहीं होने वाला। एक अनुमान के मुताबिक देश में प्रवासी मजदूरों की संख्या 20 करोड़ है। इस तरह की कोई योजना उनके मसलों का हल नहीं निकाल सकती। उनकी बात काफी हद तक सही लगती है, क्योंकि सरकार की नई योजना के तहत बमुश्किल 29-30 लाख मजदूरों को लाभ पहुंचाने की ही बात कही जा रही है।

अरविंद मोहन मानते हैं कि सबसे जरूरी है पलायन करने वाले मजदूरों का प्रबंधन, वह चाहे पंचायत में हो या प्रखंड में। एक बार प्रबंधन शुरू होने लगेगा, तब समझ में आयेगा कि उनकी संख्या कितनी है। और एक बार संख्या सामने आयेगी तभी उनके लिए गंभीरता से काम करने का राजनीतिक दबाव बनेगा।

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