जोशीमठ के भविष्य को लेकर अटकलों का दौर जारी है। जोशीमठ बचेगा या नहीं इस पर अभी तक सरकार ने स्पष्ट तौर पर नहीं कहा है, लेकिन राज्य के मुख्य सचिव एसएस संधू ने इसे मानव जनित आपदा की बजाय प्राकृतिक आपदा ठहराया है। हालांकि उनका कहना है कि अभी सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की रिपोर्ट का इंतजार है।
उधर, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने नए जोशीमठ की मांग की है। समिति के संयोजक अतुल सती ने एक बयान में कहा है कि उनकी मांग है कि सरकार नया जोशीमठ बनाए, लेकिन नए जोशीमठ के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल बनाए, जो उस जगह की तलाश करें, जहां जोशीमठ के लोगों को एक साथ बसाया जा सके।
नया जोशीमठ ऐसी जगह पर हो, जो कम से कम इतना सुरक्षित हो कि 100 साल तक उसे कोई नुकसान ना हो। साथ ही, नए शहर की धारण क्षमता का भी विस्तृत अध्ययन हो। निर्माण कार्यों के लिए सख्त कानून और उनकी अनुपालना हो। वहां किसी तरह के भारी निर्माण की इजाजत ना दी जाए।
उन्होंने लोगों को मुआवजे की भी मांग की। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को 1 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाए, यह मुआवजा राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) से लिया जाए। गोरतलब है कि एनटीपीसी द्वारा तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया जा रहा है और इसके लिए खोदी जा रही सुरंग को जोशीमठ की वर्तमान हालत के लिए दोषी ठहराया जा रहा है।
लोगों की इस तरह की मांग के बाद लगता है कि लोगों को भी भरोसा हो गया है कि जोशीमठ में भू धंसाव की घटनाएं रुकने वाली नहीं है। भूगर्भ विज्ञानी भी यही आशंका पहले ही जता चुके हैं।
भू वैज्ञानिक और वीर चंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के बेसिक एवं सोशल साइंस के विभागाध्यक्ष एसपी सती पहले ही कह चुके हैं कि जोशीमठ जिन हालातों में पहुंच चुका है, उसके बाद उस जगह को बचाना बहुत ही मुश्किल है। ऐसे में सरकार को पूरा ध्यान लोगों को बचाने में लगाना चाहिए और उन्हें अन्यत्र बसाने की तैयारी करनी चाहिए। सती कहते हैं कि जोशीमठ को बचाने की कवायद में काफी देर हो चुकी है।
दरअसल जोशीमठ का पहाड़ पुराने और प्राकृतिक भूस्खलन के मलबे पर स्थित है जो सैकड़ों वर्षों में स्थिर हो गया है। कई सौ से एक हजार मीटर गहरी विशाल, मोटी परत है जो कुछ चट्टानों पर टिकी हुई है। पर्यावरणविद एवं चार धाम मार्ग की जांच के लिए बनाई गई हाईपावर कमेटी के अध्यक्ष रहे रवि चोपड़ा कहते हैं कि जोशीमठ मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) के क्षेत्र में स्थित है। इसलिए इस परत को सहारा देने वाली अंदर की चट्टानें कमजोर हो गई हैं क्योंकि उन्हें ऊपर धकेल दिया गया है। ये टूट चुकी हैं और टूट चुकी सामग्री बहुत मजबूत नहीं हैं।
साथ ही, पूरा जोशीमठ ढलान वाले क्षेत्र में बसा हुआ है। जिसे संवेदनशील ढलान के रूप में जाना जाता है। 1976 में सरकार द्वारा नियुक्त एमसी मिश्रा समिति ने पहले ही चेतावनी दी थी कि निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए, विशेष रूप से इसकी संवेदनशीलता के कारण पहाड़ी के ढलाव पर निर्माण नहीं होना चाहिए। चोपड़ा कहते हैं कि सरकार ने विभिन्न प्रकार के विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिसमें पहाड़ों से गुजरने वाली एक सुरंग और एक नया बाईपास हेलंग-मारवाड़ी बाईपास रोड शामिल है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर नया जोशीमठ बसाया कहां जाएगा। डाउन टू अर्थ, हिंदी पत्रिका के नवंबर माह के अंक में ऐसे ही सवाल पर बात की गई थी। पढ़ें – आवरण कथा: खंड-खंड होते उत्तराखंड के लिए जिम्मेवार कौन, कहां बसेंगे उजड़े लोग
अकेला जोशीमठ ऐसा नहीं है, जिसके लोग विस्थापित हो रहे हैं और उन्हें दूसरी ओर बसाने की जरूरत है। उत्तराखंड में लगभग 500 गांव ऐसे हैं, जिन्हें विस्थापित किया जाना है।
खास बात यह है कि ये गांव भी आपदा पीड़ित हैं या तो यहां भूस्खलन हुए हैं। इनमें से ज्यादातर गांव उन्हीं जगहों पर स्थित है जहां पर कोई ना कोई जल विद्युत परियोजना है।
अभी तक इन गांवों के लिए सुरक्षित स्थान नहीं ढूंढा जा सका है, जैसे कि जोशीमठ के ठीक सामने स्थित गांव चाई के नीचे बने जल विद्युत परियोजना के कारण उनके घर धंस गए, लेकिन अभी तक उनको मुआवजा नहीं दिया गया है।
प्रभावित 18 परिवारों को जोशीमठ के ही मारवाड़ी इलाके में बसाया गया था, परंतु अब ये परिवार भी जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव की चपेट में कभी भी आ सकते हैं। ऐसे में यह सवाल लगातार बना हुआ है कि विस्थापित लोगों को कहां बसाया जाए्र।
अभी तक सरकार ने अपनी पुनर्वास योजना को लेकर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहा है लेकिन 12 जनवरी को हुई कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया गया कि जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की सर्वे के मुताबिक चार सुरक्षित जगहों पर जोशीमठ के लोगों को रहने का इंतजाम किया जाएगा, लेकिन यह पुनर्वास अस्थाई होगा या स्थाई इस पर भी स्पष्ट बात नहीं की गई है।
सरकार ने नए स्थानों पर प्रीफैबरीकेटेड मकान बनाने की बात की है जबकि जोशीमठ के लोग नया नगर बनाने की मांग कर रहे हैं जो नई टिहरी जैसा हो सकता है। उत्तराखंड के ही पुराने शहर टिहरी और आसपास के गांवों को टिहरी हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए डुबो दिया गया था और टिहरी के लोगों के लिए नई टिहरी बनाया गया था।