जोशीमठ का आधा से ज्यादा क्षेत्र बेहद उच्च जोखिम भरा है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) रूड़की की रिपोर्ट का अंतिम परिणाम यही है। आईआईटी, रूड़की उन आठ संस्थानों में शामिल है, जिन्होंने जोशीमठ भूधंसाव को लेकर गहन अध्ययन किया था। इन संस्थानों की रिपोर्ट हाल ही में उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा की गई टिपण्णी के बाद सार्वजनिक की गई हैं।
यहां यह उल्लेखनीय है कि डाउन टू अर्थ द्वारा इन रिपोर्ट्स का अध्ययन करने के बाद विश्लेषण छापा जा रहा है। पहली कड़ी में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट प्रकाशित की गई, इसके बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा तैयार की गई पीडीएनए रिपोर्ट प्रकाशित की गई। तीसरी कड़ी के रूप में जीएसआई की रिपोर्ट का विश्लेषण प्रकाशित किया गया। आज पढ़ें चौथी कड़ी -
दरअसल आईआईटी, रूड़की की टीम ने जोशीमठ में 12 जगह टेस्ट किए। इनमें गांधीनगर पी.जी कॉलेज (वार्ड 1), मारवाड़ी, जेपी कॉलोनी के गेट के पास (वार्ड 2), लोअर बाजार नरसिंह मंदिर के पास (वार्ड 3), सिंहधार पंचवटी सराय के पास एवं पार्किंग प्लॉट के पास (वार्ड 4), मनोहरबाग रोपवे टावर नंबर 1 के पास (वार्ड 5), मनोहरबाग पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस के पास (वार्ड 5), मनोहरबाग सीपीडब्ल्यूडी कार्यालय के पास (वार्ड 5), अपर बाजार नगरपालिका के पास (वार्ड 6), सुनील शिवालिक कॉटेज के पास (वार्ड 7), परसारी एटी नाला के पास (वार्ड 8) एवं रविग्राम एनटीपीसी गेट के सामने हेलीपैड के पास (वार्ड 9) शामिल हैं!
यह छह तरह के टेस्ट थे। पहला- सतही तरंगों का मल्टी मल्टी-चैनल विश्लेषण जिसे एमएएसडब्ल्यू परीक्षण कहा जाता है। दूसरा- जमीन के नीचे 10 मीटर की गहराई तक बोर करके मिट्टी का नमूना लेना। इन नमूनों का प्रयोगशाला में परीक्षण किया किया गया। तीसरा- डायनेमिक कोन पेनेट्रेशन टेस्ट (डीसीपीटी), यह भी 10 मीटर की गहराई तक की जांच करता है।चौथा- प्लेट लोड टेस्ट, इसमें 300 मिमी × 300 मिमी आकार की प्लेट पर 1.5 मीटर × 1.5 मीटर आकार के गड्ढे में 1.5 मीटर की गहराई पर, 60 टन/वर्गमीटर की लोडिंग क्षमता का पता किया जाता है। पांचवा- डायरेक्ट शीयर टेस्ट (डीएसटी): इसमें 300 मिमी × 300 मिमी के बॉक्स पर 5 परीक्षण, 700 मिमी × 700 मिमी आकार के बॉक्स पर 2 मीटर की गहराई तक 2 परीक्षण किया जाता है।
इन परीक्षणों के बाद आईआईटी, रूड़की ने अपनी रिपोर्ट में तीन मुख्य निष्कर्षों के बारे में बताया है।
रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है, ” इस कार्य (अध्ययन) के परिणाम से संकेत मिलता है कि जोशीमठ के मैदान में बोल्डर और बजरी का मिश्रण है, और इस स्तर पर क्षेत्र का परीक्षण करना बहुत कठिन था। अंतिम परिणाम से संकेत मिलता है कि जोशीमठ का 50% से अधिक हिस्सा बहुत उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में है।”
रिपोर्ट के अंत में समापन टिप्पणियों में कहा गया है- “कुल मिलाकर, जोशीमठ की मिट्टी में बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण पाया गया। बोल्डर का मैट्रिक्स बजरी और मिट्टी से बना है। ऐसी मिट्टी में यदि कोई आंतरिक कटाव होता है तो पूरे ढांचा अस्थिर हो जाता है। और बोल्डर के टकराने से धंसाव होता है।
दूसरी टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें कहा गया है - धंसाव का मुख्य कारण पानी की निकासी का इंतजाम न होना है। यह पानी बारिश का हो सकता है, या बर्फ के पिघलने से हो सकता है या /घरों और होटलों से निकलने वाला गंदा पानी भी हो सकता है। हालांकि धंसाव एक सतत घटना है, पानी के रिसाव को नियंत्रित करके इसे कम किया जा सकता है, जो आंतरिक कटाव को कम करने में मदद करता है।
तीसरी टिप्पणी में कहा गया है कि विभिन्न क्षेत्रों और प्रयोगशाला परीक्षणों के परिणामों के आधार पर जोशीमठ के इलाकों को उच्च जोखिम, मध्यम जोखिम और कम जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।