चीन बाॅर्डर के साथ लगते इस गांव का नाम क्यों है चंडीगढ़ सेक्टर-13?

80 के दशक में चीन बाॅर्डर में तनाव बढ़ने के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने गांववालों को चंडीगढ़ शिफ्ट करने का भरोसा दिया था
चीन बाॅर्डर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसा हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिले का चंडीगढ़ गांव। फोटो: रोहित पराशर
चीन बाॅर्डर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसा हिमाचल के लाहौल-स्पीति जिले का चंडीगढ़ गांव। फोटो: रोहित पराशर
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चीन बाॅर्डर पर तनाव बढ़ गया है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब भारत और चीन की सीमाओं पर तनाव का माहौल बना हुआ है। लेकिन तनाव बढ़ते ही सबसे अधिक प्रभावित होते हैं सीमा से लगते गांव। ऐसा ही एक गांव है, हिमाचल प्रदेश का चंडीगढ़ सेक्टर-13। नाम सुनकर चौंक जाएंगे आप। 

इस गांव के नाम के पीछे बड़ी रोचक कहानी है। लाहौल-स्पीति जिला के काजा उपमंडल से करीब 33 किमी दूर स्थित है चंडीगढ सेक्टर-13़ गांव। यह गांव हरियाणा-पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ की तरह साफ-सुथरा भी है और यहां पर हरियाली भी खूब है।

अस्सी के दशक में जब चीन सीमा पर विवाद बढ़ा तो बॉर्डर से सटे कौरिक गांव के ग्रामीणों को वहां से हटाना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बार्डर का दौरा किया और इस गांव के 33 परिवारों से वादा किया था कि उन्हें चंडीगढ़ में बसाया जाएगा, लेकिन ग्रामीणों से किया गया वादा पूरा नहीं हो पाया। सेना ने फौरी तौर पर कौरिक गांव के इन परिवारों को सीमा से करीब 60 किमी पीछे जमीन देकर शिफ्ट कर दिया। लोक निर्माण विभाग के एक इंजीनियर ने इसे बाकयदा चंडीगढ़ नाम दिया तथा रेवन्यू रिकार्ड में भी इस गांव का नाम चंडीगढ़ से दर्ज किया गया।

लेकिन ग्रामीणों को जब असली चंडीगढ़ में नहीं बसाया गया तो उन्होंने यहां पर गांव का नाम चंडीगढ़ का सेक्टर-13 रख दिया। जैसा कि विदित है कि असली चड़ीगढ़ में 13 सेक्टर नहीं है। बताया जाता है कि चंडीगढ़ को बनाने वाले ली कार्बूजिए ने सेक्टर-13 बनाया ही नहीं, क्योंकि वे 13 अंक को मनहूस मानते थे, इसलिए उन्होंने सेक्टर-12 के बाद सीधा सेक्टर-14 का निर्माण किया था।

यही वजह है कि गांववासियों ने विरोधस्वरूप गांव का नाम चंडीगढ़ की बजाय चंडीगढ़ सेक्टर-13 कर दिया। पर्यटकों के लिए भी गांव का यह बोर्ड आकर्षण का केंद्र रहता है। 

पंचकुला तक गए थे लोग 

गांव के नंबरदार अनिल कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह भी कहा जाता है कि जब गांव वालों को कौरिक से शिफ्ट किया जा रहा था, तो उनके बुर्जुगों को पंचकुला तक भी ले गए थे। लेकिन उनके बुजुर्गों को वहां का वातावरण और भीड़भाड़ अच्छी नहीं लगी और वे वहां से वापस आ गए। इसके बाद सरकार की ओर से स्पीति में ही जगह का चयन किया गया और इसी स्थान का नाम चंडीगढ़ रख दिया।

अनिल बताते हैं कि अभी तो हमारे क्षेत्र में सबकुछ शांत है, लेकिन हम लोग आगे की परिस्थितियों के लिए तैयार हैं। और भारतीय सेना जैसा कहेगी, वैसा करेंगे। 

खेती-बाड़ी से जीवन यापन कर रहे हैं ग्रामीण

गांव के अधिकतर लोग खेती बाड़ी पर निर्भर हैं । गांव में अभी भी पारंपरिक खेती की जाती है जबकि कुछ लोगों ने अब खेती बाडी से बागवानी की ओर भी रूख कर दिया है। गांव में अधिकतर लोग मटर, जौ और सब्जीयां उगाकर जीवन यापन करते हैं। गांव के युवक अभिमन्यू बताते हैं कि गांव के अधिकतर युवा अब सरकारी नौकरी के लिए तैयारियां करते हैं और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए शिमला या फिर चंडीगढ की ओर से रूख कर रहे हैं।

गांव में हर सुविधा है मौजूद

गांव में डिस्पेंसरी भी है तो पशुओं का ईलाज करवाने के लिए वेटनरी डिस्पेंसरी भी। सरकारी स्कूल भी गांव में मौजूद है। गांव को जाने वाली सड़क भी पक्की है। गांव में लोनिवि ने रेन शेल्टर तक का निर्माण करवा रखा है। इस रेन शेल्टर में बडे़-बडे़ अक्षरों में चंडीगढ़ अंकित है। 40 परिवारों के लिए बसाए गए इस गांव में अब करीब 65 परिवार हैं। लोगों के मकान भी पक्के हैं। खेती-बाड़ी करने के लिए सिंचाई की सुविधा भी यहां उपलब्ध है।

चीन बार्डर में बढ़ी मूवमेंट

चीन के साथ तनातनी के बीच में हिमाचल के साथ लगने वाली 225 किलोमीटर की सीमा में निगरानी बढ़ा दी गई है। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सीमाओं में पुलिस को मुस्तैदी बरतने के लिए निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री जयराम का कहना है कि कुछ दिन पहले भी हिमाचल की सीमा पर चीन के लड़ाकू विमानों की मूवमेंट देखी गई थी जिसके बारे में गृहमंत्रालय को रिपोर्ट सौंप दी गई हैं। वहीं मौके को नाजुक होता देख दोनों जिलों के एसपी भी सीमाओं का जायजा लेने के लिए वीरवार को आर्मी की चैकियों के दौरे पर हैं।

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