नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा घोर गरीबी से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं लोग । पांचवी कड़ी में पढ़ें वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू होने से पहले ऑक्सफैम द्वारा भारत के संदर्भ में जारी रिपोर्ट में भारत की गरीबी पर क्या कहा गया है?
टाइम टू केयर शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षणों से प्राप्त उपभोग के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि 1990 के दशक से शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण (वैश्वीकरण) के बाद से उपभोग विषमता बढ़ी है। 1993-94 और 2004-05 के बीच खासकर शहरी क्षेत्रों में उपभोग विषमता अधिक तेजी से बढ़ी।
चांसल और पिकेटी ने भारत की आजादी के बाद से लेकर अब तक के अलग-अलग स्त्रोतों जैसे कि आयकर आंकड़े, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संस्थान के उपभोग आंकड़े, राष्ट्रीय लेखा के आंकड़ों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि आजादी (1947) और 1980 के दशक के बीच विषमता में कमी हुई, लेकिन इसके बाद असामनता ही यह खाई बढ़ती गई। 1980 के दशक में एक प्रतिशत से व्यक्तियों को प्राप्त होने वाली आय 6 प्रतिशत थी, जबकि 1991 से 2015 के दौरान यह आय 22 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस दौरान जो आर्थिक वृद्धि हुई, उसका 12 प्रतिशत हिस्सा ऊपर के मात्र 0.1 प्रतिशत लोगों ने प्राप्त किया, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत लोग मात्र 11 प्रतिशत ही प्राप्त कर पाए।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 50वीं वार्षिक बैठक से पहले टाइम टू केयर रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट बताती है कि भारत के एक प्रतिशत लोगों के पास लगभग 95 करोड़ (70 प्रतिशत) लोगों से चार गुणा अधिक संपत्ति है। ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के 2153 अरबपतियों के पास इस धरती के 460 करोड़ लोगों से ज्यादा संपत्ति है, जो इस दुनिया की 60 प्रतिशत आबादी है। भारत का साल 2018-19 का कुल बजट 24.42 लाख करोड़ रुपए का था, जबकि भारत के केवल 63 लोगों के पास इससे अधिक की संपत्ति है।
पिछले एक दशक के दौरान दुनिया भर में बढ़ी असामनता ने चौंका दिया है। इस एक दशक के दौरान दुनिया के अरबपतियों की संख्या दोगुनी हो गई।
महिलाओं में असामनता
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में राजनीतिक सशक्तिकरण के स्तर पर महिलाओं के साथ बड़ा भेदभाव किया जाता है, लेकिन आर्थिक भागीदारी व अवसरों, स्वास्थ्य जैसे स्तरों पर भी भारत में महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। एक रिपोर्ट में पहले ही बताया गया था कि लैंगिक असमानता के मामले में भारत दुनिया के 153 देशों की सूची में 112वें स्थान पर पर है।
भारत में जो परिवार महिलाओं की मजदूरी पर आश्रित है, उनमें निर्धनता अधिक है, क्योंकि एक जैसे कार्य के लिए भी महिलाओं को पुरुषों से कम मजदूरी मिलती है। इसके अलावा महिलाओं में धर्म, जाति व क्षेत्रीयता के आधार पर असमानता भी है।
केवल क्षेत्र की बात की जाए तो उदाहरण के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही महिलाओं का बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) शहरी महिलाओं की अपेक्षा 11 प्रतिशत कम रहने की आशंका है। इसी तरह शिक्षा के स्तर पर देखें तो ग्रामीण महिलाओं में 27.3 प्रतिशत ऐसी हैं, जो दसवीं या उससे अधिक पढ़ती हैं, जबकि शहरी महिलाओं में यह प्रतिशत 51.5 प्रतिशत है।
भारत में महिलाएं जो सेवा सुश्रषा का काम करती हैं, उसके बदले उन्हें भुगतान नहीं किया जाता। ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाएं एवं लड़कियां भारत में रोजाना लगभग 3.26 अरब घंटे यह काम करती हैं, जिनका उन्हें कोई भुगतान नहीं किया जाता। अगर इसे जोड़ लिया जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था में इन महिलाओं का योगदान लगभग 19 लाख करोड़ रुपए का होगा, जो भारत के शिक्षा बजट (लगभग 93 हजार करोड़ रुपए) से 20 गुणा अधिक है।
रिपोर्ट में महत्वपूर्ण बात कही गई है कि यदि महिलाओं की सेवा सुश्रषा के योगदान को भी अर्थव्यवस्था में शामिल कर लिया जाए तो लगभग 1.10 करोड़ नए रोजगार मिलने की संभावना है। वर्ष 2018 में इतने ही लोगों का रोजगार छिन गया था।
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