केंद्र सरकार ने विशेष योजना घटक (एससीपी) के तहत अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के तहत आदिवासी समुदाय (एसटी) के लिए जो बजट आवंटित किया है, उस पर दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) ने कई सवाल खड़े किए हैं। दशम ने 2 फरवरी को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि दलित आदिवासियों के लिए आवंटित बजट का लाभ इन वर्गों के बजाय कंपनियों को दिया जा रहा है।
केंद्र सरकार ने 2022-23 के बजट की 3.61 प्रतिशत राशि एससी और 2.26 प्रतिशत राशि एसटी के लिए प्रस्तावित की है। यानी अगले वित्त वर्ष में 1,42,342 करोड़ रुपए एससी और 89,265 करोड़ रुपए एसटी के कल्याण के लिए आवंटित किए हैं। यह राशि 2021-22 के संशोधित बजट अनुमानों से अधिक है।
दशम का कहना है कि पहली नजर में बजट बढ़ा हुआ लगता है लेकिन आंकड़ों की तह में जाने पर पता चलता है कि यह आंकड़ों का मायाजाल है। दशक ने सवाल उठाया है कि जिन मदों में पैसा आवंटित हुआ है क्या वह लोगों तक पहुंच रहा है? अगर नहीं तो वह पैसा कहां जा रहा है? इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने कृषि मंत्रालय को आवंटित बजट से दिया है। कृषि मंत्रालय ने एससी वर्ग के लिए 20,472 करोड़ रुपए आवंटित किया है जिसमें 2,667 करोड़ रुपए का आवंटन फसल बीमा योजना के लिए किया गया है। इसी प्रकार एसटी वर्ग के लिए इस योजना में 1,381 करोड़ रुपए आवंटित है।
दशम के अनुसार, पिछले वर्षों में इस योजना के तहत जो पैसे आवंटित हुए, उनके बारे में महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट कहती है कि सरकार के पास एससी/एसटी लाभार्थियों का आंकड़ा नहीं है, इसलिए यह पुष्टि नहीं हो सकती कि इन वर्गों के कितने लोगों को इसका फायदा हुआ है। सिर्फ इतनी ही पुष्टि होती है कि बीमा कंपनियों को एससी/एसटी के कल्याण के बजट से प्रतिवर्ष फंड दिया जाता है। वर्ष 2022-23 में यह फंड 4,048 करोड़ रुपए है।
एक अन्य उदाहरण से दशम ने समझाया है कि उच्च शिक्षा विभाग ने एससी वर्ग के लिए वर्ष 2022-23 में 3,889 करोड़ रुपए आवंटित किया है जिसमें से 495 करोड़ रुपए भारतीय प्रौद्योगिक संस्थानों की सहायता के लिए है। इसी प्रकार एसटी के बजट के 240 करोड़ रुपए इन संस्थानों को आवंटित है। पिछले वर्षों में इस योजना के तहत जो पैसे आवंटित हुए उनके बारे में महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट कहती है कि इन संस्थानों में पीजी कोर्स के लिए ज्यादातर सीट खाली रहती हैं और पीएचडी कोर्स में 75 प्रतिशत एससी की और 95 प्रतिशत एसटी की सीटें खली रहती हैं।
इसका अर्थ यह है कि ये संसथान वित्तीय वर्ष में 2022-23 में 735 करोड़ रुपए एससी/एसटी के हिस्से से इस्तेमाल करेंगे लेकिन वे इस वर्ग के छात्रों को उच्च शिक्षा में आसानी से प्रवेश नहीं लेने देंगे। दशम से जुड़े उमेश बाबू का कहना है कि ये संस्थान ऐसी शर्तें लगा देते हैं जिससे इस वर्ग के छात्रों का दाखिला नहीं हो पाता। वर्ष 2016-17 के बजट के ऑडिट में यह पाया गया कि बहुत से ऐसे विभाग हैं जिनके पास एससी एसटी के लिए कोई योजना नहीं है लेकिन वे बड़ी मात्रा में इनके बजट का इस्तेमाल करते हैं।
सफाई कर्मचारियों का बजट
दशम का कहना है कि सफाई कर्मचारियों के कल्याण की जिम्मेदारी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की है। यह मंत्रालय अपने ब्यौरेवार अनुदान की मांगों को वर्ष 2019-20 के बाद से अपनी वेबसाइट पर अपलोड नहीं करता, लिहाजा लोगों को यह पता नहीं चल पाता कि सदन में उन्होंने जो बजट पेश किया उसका विवरण क्या है। इसलिए इनके आंकड़े वर्ष 2019-20 तक के ही उपलब्ध हैं।
इन आंकड़ों के हिसाब से वर्ष 2016-17 में स्वरोजगार के अंतर्गत पुनर्वास के लिए 9 करोड़ रुपए आवंटित था जिसमें कुछ भी खर्च नहीं हुआ और पूरा पैसा लैप्स हो गया। वर्ष 2017-18 में 4.5 करोड़ रुपए आवंटित हुए और 5 करोड़ रुपए खर्च हुए। इसके बाद के वर्षों में खर्च के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। केंद्र सरकार जो आंकड़े सदन के समक्ष पेश करती है, उसमें सफाई कर्मचारियों से सम्बंधित दो योजनाओं का जिक्र हैं। उसमें से एक योजना है “पुनर्वास के लिए स्वरोजगार की योजना।” 2020-21 में स्वरोजगार योजना के अंतर्गत पुनर्वास के लिए 110 करोड़ आवंटित हुए जिसमें से मात्र 16.60 करोड़ रुपए खर्च हुए। वर्ष 2021-22 में 100 करोड़ रुपए आवंटित हुए जिसे संशोधित बजट में घटाकर 43.31 करोड़ रुपए कर दिया गया। वर्ष 2022-23 में कुल 70 करोड़ रुपए का प्रावधान है। दशम के अनुसार, पूरे देश को बताया जा रहा है कि सरकार संविधान का पालन करती है और दलित आदिवासियों की हितैषी है, लेकिन यह सब आंकड़ों के मायाजाल है।