खतरा : 32 वर्षों में नहीं बन पाई दून घाटी की पर्यटन विकास और लैंड यूज की योजना

1989 की दून अधिसूचना के तहत पर्यटन विकास योजना, मास्टर प्लान और लैंड यूज योजना पर अमल किया जाना था लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया जा सका है।
दून घाटी का विहंगम दृश्य। Photo: wikimedia commons
दून घाटी का विहंगम दृश्य। Photo: wikimedia commons
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पर्यावरणीय संसाधनों से समृद्ध और चारो तरफ पहाड़ों से घिरे उत्तराखंड की दून घाटी पर साल-दर-साल पर्यटन का दबाव बढ़ता जा रहा है लेकिन  01 फरवरी, 1989 को जारी इकोनॉमिक स्पेशल जोन (ईएसजेड) अधिसूचना के मुताबिक पर्यटन विकास को लेकर 32 वर्ष बीत जाने के बाद भी अमल नहीं किया जा सका है। अभी तक राज्य सरकार की ओर से न ही ऐसी कोई योजना तैयार की गई है और न ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से मंजूर की गई है। 
 
दून घाटी 205,391.452 वर्ग किलोमीटर में फैली है और इसकी सीमाएं देहरादून, हरिद्वार और टिहरी गढ़वाल जिले को समेटती हैं। यह समूचा इलाका जैवविविधता से भरपूर है और जिसका अनियंत्रित पर्यटन के कारण नुकसान धीरे-धीरे जारी है। 
 
दून घाटी के लिए 1989  अधिसूचना के तहत पर्यटन विकास योजना, मास्टर प्लान और लैंड यूज योजना विकसित करने की मांग करने वाली याचिका अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और रक्षित जोशी की तरफ से उत्तराखंड हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी। याचिका में सूचना अधिकार के तहत हासिल जानकारी के आधार पर कहा गया है कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और राज्य पर्यटन विभाग के पास अधिसूचना के तहत तैयार ऐसी कोई  योजना नहीं है। 
 
इस मामले में 5 जनवरी, 2022 को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आलोक कुमार वर्मा और एसीजे एसके मिश्रा ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। 
 
याचिका में कहा गया है कि दून घाटी में सभी पर्यटन गतिविधियां पर्टयन विकास योजना के तहत संचालित किए जाने चाहिए, जबकि बिना पर्यटन, लैंड यूज और मास्टर प्लान जैसी बुनियादी योजनाओं के दून घाटी के संवेदी क्षेत्रों में होटल और रिसॉर्ट जरूरी अनुमतियों के बिना ही चल रहे हैं। इनके पास सीवेज ट्रीटमेंट को लेकर कोई भी मानकीय व्यवस्थाएं नहीं हैं।    
 
 मामले पर विचार करने वाली दो सदस्यीय पीठ ने इन आरोपों पर उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दून वैली स्पेशल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी, मसूरी-देहरादून डेवलपमेंट अथॉरिटी और हरिद्वार-रुड़की डेवलपमेंट अथॉरिटी को इस मामले में आठ हफ्तों के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा है। पीठ ने कहा कि इस मामले में आठ हफ्ते बाद सुनवाई की जाएगी। 
 
याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और रक्षित जोशी ने डाउन टू अर्थ से कहा कि पर्यटन क्षेत्र पूरी तरह से अनियंत्रित है और जिसके कारण वायु और जल प्रदूषण के साथ जल संसाधनों पर भी दबाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं अनियंत्रित वाहनों की बढ़ती संख्या और वनों की कटाई जैसे मामले भी बढ़ रहे हैं। 
 
याचिका के मुताबिक पर्यटन के आंकड़े बताते हैं कि मसूरी, देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार में पर्यटकों की संख्या बीते चार वर्षों में बहुत तेजी से बढ़ी है।
 
पर्यटन विभाग की आरटीआई सूचना के मुताबिक 2015 में मसूरी में 27 लाख पहुंचे जबकि 2019 में इनकी संख्या बढ़कर 30 लाख हो गई। इसी तरह से 2015 में 17.6 लाख पर्यटक देहरादून पहुंचे जबकि 2019 में देहरादून पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या 29 लाख हो गई। ऋषिकेश में वर्ष 2015 में 4.3 लाख पर्यटक पहुंचे थे जबकि 2019 में इनकी संख्या दोगुनी 8.6 लाख पहुंच गई। इसी तरह से 2015 में जहां हरिद्वार में  सर्वाधिक 1.93 करोड़ लोग पहुंचे वहीं 2019 में 2.1 करोड़ लोग हरिद्वार पर्यटन के लिए पहुंचे। वर्ष 2020 में पर्यटकों की संख्या कोविड के चलते कम हो गई लेकिन अब भी कोविड नियमों के हटते ही सर्वाधिक पर्यटन दून घाटी की तरफ ही बना हुआ है। 
 
याची व अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने कहा कि दून घाटी में निर्माण गतिविधियां भी पर्यटन विकास योजना पर निर्भर हैं। ऐसे में इस योजना के अभाव में निर्माण से जुड़ी अनियंत्रित गतिविधियों को भी अनदेखा किया जा रहा है। 
 

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