बिना मत, सह'मत': समरस सरपंच बनी जया बेन, क्या है पीछे का 'गणित'

गुजरात पंचायत चुनाव 2025 में 761 समरस पंचायतें चुनी गई हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा तीन से 13 लाख रुपए तक की अतिरिक्त ग्रांट दी गई है
राणिंगपरा गांव की नई सरपंच जया बेन (दाएं) और साथ में हैं जागृति बेन, जिन्हें पंच चुना गया है। फोटो: राजू सजवान
राणिंगपरा गांव की नई सरपंच जया बेन (दाएं) और साथ में हैं जागृति बेन, जिन्हें पंच चुना गया है। फोटो: राजू सजवान
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जून  2025 में गुजरात में 4,564 ग्राम पंचायत चुनाव हुए। इस चुनाव की खास बात यह है कि इनमें 761 ग्राम पंचायतें ‘समरस’ चुनी गई। गुजरात की इन समरस पंचायतों सामान्य तौर पर निर्विरोध चुनी गई पंचायत कहा जाता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से राज्य में इन समरस पंचायतों को सरकार की ओर से आर्थिक रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसे मॉडल मानते हुए कुछ राज्यों ने भी निर्विरोध पंचायतों को आर्थिक प्रोत्साहन देना शुरू किया है। डाउन टू अर्थ ने इनमें से कुछ पंचायतों का दौरा किया। पढ़े, ऐसे ही एक गांव की कहानी-  

गिरनार पहाड़ियों की तलहटी में बसे जूनागढ़ जिले का गांव राणिंगपरा को समरस ग्राम घोषित किया गया है। समरस यानी ऐसा गांव, जहां चुनाव तो होते हैं, लेकिन नामांकन से पहले ही लोग आपस में बैठकर ही तय कर लेते हैं कि उनका गांव का सरपंच कौन होगा और एक ही नामांकन भरा जाता है। सरपंच के साथ-साथ यदि सभी पंचों को बिना वाद-विवाद के सर्वसम्मति से चुन लिया जाए तो उस गांव को समरस ग्राम घोषित कर दिया जाता है। 

केशोड़ तालुका (तहसील) के इस समरस ग्राम राणिंगपरा की सरपंच बनी हैं जया बेन मनसुख भाई माहीड़ा। नामांकन से दो दिन पहले गांव में एक बैठक हुई। इस बैठक में कुछ नामों पर चर्चा हुई। बहुत सोच विचार कर जया बेन को सरपंच बनाने का फैसला लिया गया, लेकिन साथ ही यह फैसला लिया गया कि इस पद की दूसरी सबसे बड़ी दावेदार जागृति बेन दिनेश भाई माहीड़ा को ढाई साल बाद सरपंच बनाया जाएगा। यानी ढाई साल जया बेन और ढाई साल जागृति बेन। पंचायत के आठों पंच भी निर्विरोध रहे। इनमें चार महिलाएं और चार पुरुष। 

राणिंगपरा की आबादी लगभग 2,000 है। पूर्ण समरस ग्राम होने के कारण ग्राम पंचायत के खाते में तीन लाख रुपए के अनुदान की राशि पहुंच चुकी है। यह राशि 5,000 से कम आबादी वाले समरस पंचायतों को गुजरात सरकार द्वारा दी जाती है। समरस ग्राम योजना के तहत मिलने वाली यह राशि पूरे पांच साल के लिए होती है, जो पंचायतों के 15वें केंद्रीय वित्त आयोग, राज्य वित्त आयोग से मिलने वाली राशि से अलग हटकर होती है। 

चार जुलाई 2025 को राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में राणिंगपरा सहित सभी 761 समरंस पंचायतों को यह अतिरिक्त अनुदान जारी कर दिया। इन पंचायतों को लगभग 35 करोड़ रुपए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए सभी पंचायतों के खातों में भेज गए। 

जया बेन कहती हैं कि यह अतिरिक्त ग्रांट कहां-कहां खर्च की जाएगी, इस बारे में जल्द ही बैठक बुलाई जाएगी, लेकिन उनकी कोशिश है कि गांव की महिलाओं को होने वाली परेशानियां कम हों। खासकर जब नर्मदा का पानी बंद होता है, तब महिलाओं को पानी की बड़ी दिक्कत होती है। वह इस संबंध में अधिकारियों से बात करके 12 महीने पानी का इंतजाम करेंगी। वह गांव में नशे पर अंकुश लगाना चाहती हैं, ताकि युवा बच्चे नशे से दूर रहें। वह बताती हैं कि गांव में स्कूल के लिए कमरों का निर्माण चल रहा है, उनका प्रयास होगा कि गांव के बच्चों खासकर बच्चियों की पढ़ाई और बेहतर हो। 

गांव में बन रहे स्कूल का निर्माण कार्य देखती जया बेन (फोटो: राजू सजवान )
गांव में बन रहे स्कूल का निर्माण कार्य देखती जया बेन (फोटो: राजू सजवान )

60 साल की जया बेन कहती हैं, “अब तक कभी राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं रही, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मुझे सरपंच के काम में कोई दिक्कत होगी। फिर पूरे गांव ने मिल कर मुझे बनाया है तो फिर कैसी दिक्कत।”  

गांव की आबादी पूरी तरह से खेती पर टिकी हुई है। लोग गेहूं और मूंगफली की खेती करते हैं। जिन ग्रामीणों के पास कम जमीन है, वह बड़े किसानों के खेतों में मजदूरी करते हैं, इसलिए ग्रामीणों के लिए सिंचाई का पानी बहुत महत्व रखता है, लेकिन दिसंबर माह में नर्मदा से मिलने वाला पानी रोक दिया जाता है। उस साल हालात ज्यादा बिगड़ जाते हैं, जब मॉनसून की बारिश सही नहीं होती। यही वजह है कि ग्रामीण सिंचाई के पानी का पुख्ता इंतजाम चाहते हैं। 

गांव राणिंगपरा में इससे पहले चुनाव होता था, लेकिन इस बार समरस ग्राम चुने जाने की वजह यह है कि राणिंगपरा का सरपंच पद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) महिला वर्ग के लिए आरक्षित था। ग्रामीण बताते हैं कि ओबीसी वर्ग के लोगों ने मिलकर तय किया कि आपस में चुनाव क्या लड़ना, मिल बैठकर तय कर लेते हैं। इससे सरकार की ओर से अतिरिक्त ग्रांट मिल जाएगी। समाज के कुछ बुजुर्गों ने आपस में लड़ने की बजाय ढाई-ढाई साल का विकल्प रखा, जिसे मान लिया गया। 

गांव लगभग 20 साल पहले भी समरस चुना गया था। तब बच्चू भाई सरपंच बने थे। दिलचस्प बात यह है कि बच्चू भाई भी ओबीसी जाति से थे और उस साल सरपंच पद ओबीसी जाति के लिए आरक्षित घोषित किया गया था। 

केंद्रीय पंचायत मंत्रालय के पोर्टल ईग्रामस्वराज में रानिंगपरा का साल 2025-26 के एक्शन प्लान रिपोर्ट के मुताबिक गांव को साल के लिए लगभग 11 लाख रुपए टाइड फंड और लगभग 7 लाख रुपए अनटाइड फंड से आवंटित किए गए हैं। गांव का हर साल का औसत बजट लगभग इतना ही रहता है। ऐसे में देखना यह है कि तीन लाख रुपए का अतिरिक्त अनुदान गांव के क्या काम आएगा?

कल पढें, एक और गांव की कहानी … 

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