ग्रामदानी गांव सीड़ से छीन ली गई शक्तियां, सरकार बनी खलनायक

आचार्य विनोबा भावे के ग्रामदान आंदोलन की पहचान बने गांव सीड़ में बीस साल से ग्रामसभा के चुनाव नहीं हुए हैं
राजस्थान के ग्रामदानी गांव सीड़ के ग्राम सभा के सचिव केशुराम मीणा, ग्राम पंचायत सरपंच प्रकाश चंद मीणा व ग्राम सभा के प्रधान बाबरू राम। फोटो: राजू सजवान
राजस्थान के ग्रामदानी गांव सीड़ के ग्राम सभा के सचिव केशुराम मीणा, ग्राम पंचायत सरपंच प्रकाश चंद मीणा व ग्राम सभा के प्रधान बाबरू राम। फोटो: राजू सजवान
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राजस्थान के ग्रामदानी गांव की जमीनी हकीकत तलाशती डाउन टू अर्थ की इस सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़ा: गांधी के ग्राम स्वराज्य की मिसाल है विनोबा भावे का ग्रामदानी गांव सीड़ । अगली कड़ी पढ़ें - 


1980 में सीड़ को ग्रामदान घोषित किया गया था। लगभग दो दशक ठीकठाक चला, लेकिन फिर एक के बाद एक चुनौती सामने आने लगी। सबसे बड़ी चुनौती ग्रामसभा की निष्क्रियता की है। प्रधान बाबरू राम बताते हैं कि वह 20 साल से प्रधान हैं, जबकि नियम कहता है कि हर तीन साल में चुनाव होने चाहिए, लेकिन चुनाव ही नहीं हो रहे।

20 साल पहले रामेश्वर प्रसाद ने चुनाव कराए थे। उस समय तक व्यवस्था थी कि राजस्थान ग्रामदान आयोग द्वारा निर्धारित कोई भी प्रतिनिधि गांव पहुंच कर लोगों के बीच आम सहमति से चुनाव कराएंगे। रामेश्वर प्रसाद ने यही किया और गांव में सभी लोगों ने बैठकर बाबरू राम को प्रधान मान लिया। रामेश्वर प्रसाद कहते हैं कि विनोबा भावे की यही सोच थी कि लोग मिल बैठकर अपना प्रधान चुने।

साथ ही एक समिति भी गठित कर ली जाए, जो सारा काम देंखे, लेकिन राजनीतिक दलों को यह व्यवस्था पसंद नहीं आई। उन्होंने इस व्यवस्था को समाप्त करने के लिए सबसे पहले ग्राम सभा के चुनावों के प्रति निष्क्रियता दिखानी शुरू की और बार-बार सरकार व ग्रामदान बोर्ड से आग्रह के बावजूद चुनाव नहीं कराए गए।

सीड़ ग्रामसभा के सचिव केशुराम मीणा कहते हैं कि ग्राम दान व्यवस्था को कमजोर करने के लिए राज्य सरकार ने राजस्थान ग्रामदान अधिनियम 1971 की धारा 43 को हटा दिया। धारा 43 के तहत ग्रामदानी ग्राम सभा को पंचायत के समान अधिकार दिए गए थे। लेकिन यह अधिकार खत्म होते ही सीड़ गांव को ग्राम पंचायत के अधीन कर दिया गया। एक ग्राम पंचायत के अधीन आठ गांव आते हैं, जिनमें सीड़ भी शामिल है।

इसका सीधा सा मतलब है कि जहां सीड़ को एक पंचायत के बराबर दर्जा मिला हुआ था, जब वह आठ गांवों में बराबर बंट गया। बाबरू राम कहते हैं कि अब तो हम केवल राजस्व विभाग की तरह केवल रिकॉर्ड कीपर का काम कर रहे हैं। गांव का जमीन सारा लेखा जोखा हमारे पास है, लेकिन हम इसके अलावा कोई काम नहीं कर सकते।

राजस्थान ग्रामदान बोर्ड के सहायक सचिव रामबाबू शर्मा ने "डाउन टू अर्थ" को बताया कि ग्रामसभा का चुनाव कराने की जिम्मेवारी ग्रामदान बोर्ड के पास थी। बोर्ड के प्रतिनिधि हर तीन साल में गांव-गांव जाते थे और सभी गांव वासियों को इकट्ठा करके हाथ खड़े करवाकर प्रधान का चुनाव कराते थे। आम तौर पर आम सहमति से चुनाव होते थे और एक दिन में दो-दो गां के चुनाव करा दिए जाते थे, लेकिन 2008 में राज्य सरकार ने ग्रामदान अधिनियम में संशोधन कर दिया कि ग्रामदानी गांवों में चुनाव बैलेट पेपर के आधार पर होंगे।

शर्मा बताते हैं कि ग्रामदान बोर्ड के पास इतनी क्षमता नहीं थी कि वे बैलेट पेपर के आधार पर एक साथ सभी गांवों का चुनाव करा दें, इसलिए बोर्ड ने हाथ खड़े कर दिए और प्रशासन की मदद से चुनाव होने लगे। आखिरकार साल 2016 में सरकार ने एक और संशोधन कर ग्रामदानी गांवों में ग्राम सभा के चुनाव की जिम्मेवारी कलेक्टर को सौंप दी। इस सारी प्रक्रिया के चलते ग्रामसभाओं के चुनाव लगातार बाधित हो रहे हैं।

सरकार ने जमीनों का रिकॉर्ड ऑनलाइन करना शुरू कर दिया है, लेकिन सीड़ गांव की जमीन का रिकॉर्ड ऑनलाइन नहीं हो पा रहा है। स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत हुए किशन लाल मीणा कहते हैं कि उन्होंने खेती के लिए गांव के ही एक व्यक्ति से जमीन खरीदी थी, लेकिन रिकॉर्ड मेरे नाम पर नहीं हो रहा है। कहा जाता है कि ऑनलाइन व्यवस्था होने के बाद ही जमीन का हस्तांतरण होगा।

इसके लिए ग्राम दान की अलग से आईडी (पहचान संख्या) बनेगी, लेकिन आईडी नहीं बन रही है। वह कहते हैं कि ग्रामसभा के पदाधिकारी भी अब रूचि नहीं लेते। पहले हर महीने और कभी-कभी महीने में दो बैठकें ग्राम सभा की होती थी, जिसमें गांव के विकास के साथ-साथ जमीन के हस्तांतरण संबंधी कामकाज किए जाते थे, लेकिन अब तो बैठकें तक नहीं होती।

किशन लाल कहते हैं कि ग्रामदान के समय में एक लिफ्ट योजना शुरू हुई थी, जिससे खेतों की सिंचाई होती थी, लेकिन अब यह योजना भी ठप पड़ी है।

ग्रामसभा के पदाधिकारियों को सरकारी सहयोग नहीं मिलने के कारण वे अपना कामकाज ढंग से नहीं कर सकते। ग्राम पंचायत के सरंपच प्रकाश चंद्र मीणा कहते हैं कि ग्रामदानी गांव के कामकाज में सहयोग के लिए यदि एक पटवारी की ड्यूटी लगा दी जाए तो जमीन संबंधी कामकाज आसानी से हो सकते हैं।

साथ ही, ग्रामसभा की ऑनलाइन आइडी भी बन जाएगी। वह तो यह कहते हैं कि वह खुद पंचायत के सरपंच हैं, बावजूद इसके वह चाहते हैं कि सीड़ को ग्रामदान के सभी अधिकार सौंप दिए जाएं और ग्राम पंचायत से अलग कर दिया जाए।

आगे पढ़ें: एक और ग्रामदानी गांव की कहानी...

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