
महाराष्ट्र के सांगली जिले के ब्लॉक पालुस की ग्राम पंचायत खानदोबाची वाड़ी को साल 2023 में एक करोड़ रुपए का इनाम मिला है। इस पंचायत को राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार 2023 की गरीबी मुक्त एवं आजीविका संवर्धन पंचायत थीम का पहला पुरस्कार मिला। हालांकि राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार की शुरुआत साल 2011 से हो गई थी, लेकिन 2023 में पहली बार थीम पर आधारित पुरस्कार दिया गया। गांव के सरपंच विनायक गायकवाड़ ने डाउन टू अर्थ से कहा, “अप्रैल 2022 में हमने संकल्प लिया था कि हम साल 2030 तक गांव में गरीबी दूर करने और ग्रामीणों की आजीविका का इंतजाम करेंगे। इस दिशा में हमारे कोशिशों को देखते हुए हमारी पंचायत को राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार का पहला इनाम मिला है। हमारी कोशिशों के चलते गांव की ज्यादातर महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर आजीविका कमा रही हैं। पुरुषों को भी अलग-अलग योजनाओं से जोड़कर रोजगार व स्वरोजगार से जोड़ा है।
इस ग्राम पंचायत का चयन नेशनल पंचायत परफॉर्मेंस असेसमेंट कमेटी ने किया। इस थीम पर तीन ग्राम पंचायतों को पुरस्कार दिया गया, जबकि इस तरह की कुल 9 थीम पर 27 ग्राम पंचायतों को पुरस्कार दिए गए। यूं तो देखने में यह एक सालाना सरकारी प्रोत्साहन योजना जैसा लग रहा है, लेकिन यह पुरस्कार आम सरकारी योजनाओं से हटकर इसलिए है, क्योंकि इसे सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की ओर बढ़ते भारत का असल व जमीनी प्रयास माना जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि दुनिया की तरह भारत को भी सतत विकास लक्ष्यों को साल 2030 तक हासिल करना है। जनवरी 2016 से भारत ने इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपना काम शुरू किया और साल 2018 के अंत में नीति आयोग ने पहली एसडीजी इंडिया इंडेक्स रिपोर्ट जारी की। इसके बाद हर साल यह इंडेक्स जारी किया जाता है। इसके माध्यम से राज्यों में एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने की कवायद को मापा जाता था, लेकिन 68 फीसदी से अधिक आबादी वाले ग्रामीण भारत में सतत विकास लक्ष्यों को हासिल किया जा रहा है या नहीं, यह पता करने के लिए साल 2019 में सतत विकास लक्ष्यों का स्थानीयकरण (एलएसडीजी) का विचार नीति आयोग ने सरकार को दिया। इसकी जिम्मेवारी केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय को सौंपी गई और मई 2021 में एलएसडीजी में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका पर मंत्रालय को सलाह देने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया। विशेषज्ञ समूह ने 27 अक्टूबर 2021 को रिपोर्ट प्रस्तुत की।
इस रिपोर्ट के आधार पर पंचायत मंत्रालय ने 17 सतत विकास लक्ष्यों को 9 व्यापक विषयों (थीम) में बांट दिया, ताकि पंचायतों के माध्यम से जमीनी स्तर पर सतत विकास लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। इसके लिए “संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज दृष्टिकोण” अपनाया गया। इन नौ थीमों में न केवल 17 लक्ष्यों को समाहित किया गया, बल्कि 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में भारतीय संविधान की 11वीं अनुसूची में शामिल 29 विषय भी इन नौ थीमों में समाहित हैं (देखें; लक्ष्यों का एकीकरण,)।
स्थानीय सतत विकास लक्ष्योंको हासिल करने के लिए पंचायत मंत्रालय ने हर पंचायत में बनने वाली ग्राम विकास पंचायत योजना को थीम के आधार पर तैयार करने को कहा। इन नौ थीमों में पहली, गरीबी मुक्त और उन्नत आजीविका वाला गांव, दूसरी स्वस्थ गांव, तीसरी, बच्चों के अनुकूल गांव, चौथी, पर्याप्त जल वाला गांव है। पांचवी थीम, स्वच्छ और हरा-भरा गांव, छठी आत्मनिर्भर बुनियादी ढांचे वाला गांव, सातवीं सामाजिक रूप से न्यायसंगत और सामाजिक रूप से सुरक्षित गांव, आठवीं, सुशासन वाला गांव और आखिरी यानी नौंवी थीम महिला अनुकूल गांव है।
अप्रैल 2022 में यह कवायद कागजों से निकल कर जमीन पर आई और 24 अप्रैल 2022 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के मौके पर सभी ग्राम पंचायतों ने स्थानीय सतत विकास लक्ष्यों के अलग अलग विषयों को अपने गांवों में फलीभूत करने का संकल्प लिया। और इन संकल्पों को पूरा करने की दिशा में काम करने वाली पंचायतों को साल 2023 से राष्ट्रीय पंचायत पुरुस्कार देने की शुरुआत की गई। यही पुरस्कार विनायक गायकवाड़ की पंचायत को मिला है। इसी तरह सांगली जिले के पालुस ब्लॉक के ही कुडल पंचायत को “स्वच्छ एवं हरित पंचायत” थीम का पहला पुरस्कार मिला है। भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव चंद्र शेखर कुमार बताते हैं कि एलएसडीजी के लक्ष्य हासिल करने के लिए पंचायतों को कोई अतिरिक्त इंसेटिव नहीं दिया जा रहा है, लेकिन पुरस्कार देकर उन्हें लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कुमार के मुताबिक, एलएसडीजी की खास बात यही है कि सरकार इसके लिए अतिरिक्त से कोई राशि खर्च नहीं कर रही है, बल्कि इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि पंचायतों को पहले से अलग-अलग कार्यों के लिए जो राशि मिल रही है, उन्हीं कार्यों को थीम में परिवर्तित कर दिया गया है। कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पंचायतें इन थीम को हासिल करने के लिए कितना काम कर रही हैं, इसका सालाना आकलन करने के लिए हर साल पंचायत डेवलपमेंट इंडेक्स भी जारी किया जाएगा। हालांकि, यह साल 2023 में जारी किया जाना था, लेकिन नवंबर 2024 तक जारी नहीं किया जा सका है।
पंचायतों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने का जो बीड़ा सरकार ने उठाया है, उसे एक बेहद महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बहुत महत्वपूर्ण पहल है। ग्रामीण विकास पर काम कर रही संस्था प्रदान (प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन) के कार्यकारी निदेशक सरोज महापात्रा ने डाउन टू अर्थ से कहा, “पंचायतों के पास सतत विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन, स्वच्छ जल, स्वच्छता और शिक्षा से जुड़े ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है। पंचायतें जमीनी स्तर की चुनौतियों का समाधान करने के लिए अच्छी स्थिति में हैं और सामुदायिक संस्थाओं (सीबीओ) के साथ मिलकर वे इसे आसानी से हासिल कर सकती हैं।”
पंचायतें यह जमीनी काम पहले से कर रही हैं, बस उन्हें सतत विकास लक्ष्यों से जोड़कर की गई यह अभिनव कल्पना क्या हकीकत बन पाएगी, इसके लिए जमीनी हकीकत जानना जरूरी है।
हालात वैसे नहीं हैं, जैसे दिखाए जा रहे हैं। भारत को यदि सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना है तो उसके बड़े राज्यों को इस दिशा में तेजी से काम करना होगा। इनमें से एक है, उत्तर प्रदेश। आबादी की दृष्टि से अव्वल और बहुआयामी गरीबी सूचकांक में तीसरे नंबर पर रहे उत्तर प्रदेश में कुल ग्राम पंचायतों की संख्या 58,187 है। जबकि पूरे देश में ग्राम पंचायतों की संख्या 2.63 लाख है। यानी पूरे देश के मुकाबले लगभग 23 फीसदी पंचायतें अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। उत्तर प्रदेश में पंचायतों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में क्या काम हो रहा है, यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ राजधानी दिल्ली से सटे जिला गाजियाबाद के लोनी ब्लॉक में पहुंचा। शनिवार 28 सितंबर 2024 को लोनी खंड विकास कार्यालय (बीडीओ) में मौजूद सहायक खंड विकास अधिकारी (एडीओ) विपिन कुमार ने बताया कि उनके ब्लॉक की सभी 22 पंचायतों में सतत विकास लक्ष्यों की थीमों पर काम चल रहा है। हर साल 2 अक्टूबर को जीपीडीपी की तैयारी के लिए पंचायत की बैठक होती है। बैठक में ग्रामीणों से प्रस्ताव मांगे जाते हैं, उन्हें एलएसडीजी की थीम के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है और उस पर विचार विमर्श के बाद अगले साल 31 जनवरी तक जीपीडीपी को अंतिम रूप दे दिया जाता है। जीपीडीपी को राज्य सरकार के पास भेजा जाता है, जिसे मंजूरी मिलने के बाद अगले वित्त वर्ष में जीपीडीपी के आधार पर काम शुरू कर दिया जाता है। जब डाउन टू अर्थ ने कुमार से पूछा कि किस पंचायत ने किस थीम पर फोकस करने का संकल्प लिया है तो उन्होंने बताया, “यह सब जानकारी कंप्यूटर में दर्ज है, जबकि ऑपरेटर एक माह पहले इस्तीफा देकर चला गया, अब जब तक नया ऑपरेटर नहीं आएगा, तब तक डाटा फीडिंग का सारा काम रुका रहेगा।” डाउन टू अर्थ ने पूछा कि क्या वह किसी एक ऐसे गांव का दौरा करा सकते हैं, जहां संकल्प के आधार पर एलसीडीजी को हासिल करने की दिशा में काम हो रहा हो तो एडीओ ने कंप्यूटर ऑपरेटर न होने की स्थिति में इसमें भी असमर्थता जताई। खास बात यह है कि पंचायतों के डिजिटलीकरण के दावे केंद्र सरकार लगातार कर रही है और लगभग सभी काम मोबाइल ऐप व अलग अलग साफ्टवेयर के जरिए किए जा रहे हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली से सटे लोनी ब्लॉक में एक माह से कंप्यूटर ऑपरेटर न होने के कारण काम पूरी तरह ठप से पड़ा है।
एडीओ के मना करने के बाद डाउन टू अर्थ ने खंड विकास कार्यालय आए सुरेश बैंसला से बात की तो पता चला कि उनकी पत्नी निकटवर्ती गांव मेवला भट्टी की प्रधान हैं और उनके गांव में सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के कारण उनकी पंचायत को पुरस्कार भी मिल चुका है। संवाददाता जब उनके साथ उनके गांव पहुंचा तो गांव काफी खुशहाल नजर आया। गांव में लगभग हर तरह की सुविधा उपलब्ध है। प्रधान कुसुम बैंसला ने बताया कि उनके गांव के सभी बच्चे नियमित स्कूल जाते हैं, जबकि लगभग 40 बच्चे आंगनबाड़ी में इनरोल हैं। उनकी नियमित स्वास्थ्य जांच होती है। इसलिए उन्हें बाल हितैषी पुरस्कार मिला हुआ है। इसी तरह गांव में दो तालाबों के सौंदर्यीकरण व हैंडपंपों के पास व्यर्थ पानी को जमीन के भीतर पहुंचाने के लिए सोख्ते बनाए गए हैं। इस वजह से उनके गांव को जल पर्याप्त गांव का पुरस्कार मिला है। गांव में सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। हालांकि गांव में पीने के पानी के लिए लगभग सब घरों में समर्सिबल पंप लगए गए हैं, लेकिन अब वहां जल जीवन मिशन के लिए पानी की टंकी लगाई जा रही है।
दरअसल उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जिला स्तर व ब्लॉक स्तर के अलग-अलग थीम पर साल 2021-22 के पुरस्कार मिले हैं। लेकिन उन्हें इस बात का नहीं पता कि उन्होंने किस-किस थीम का संकल्प लिया है। बैंसला बताती हैं कि इसकी जानकारी पंचायत सचिव ही दे सकते हैं। जबकि पंचायत सचिव उस समय गांव में नहीं थे। यह बात दीगर है कि राष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं दिखता। साल 2023 में घोषित राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार के नौ थीम के पहले तीन स्थानों में प्रदेश की केवल एक पंचायत को बाल हितैषी गांव थीम का तीसरा पुरस्कार मिला।
बेशक भारत सरकार ने ढाई लाख से अधिक पंचायतों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने का जो बीड़ा उठाया है, वो बेहद जरूरी और महत्वपूर्ण है, लेकिन इस तरह लक्ष्यों को हासिल करने की चुनौतियां तो हैं ही, इसमें गड़बड़ियों की आशंका भी खड़ी हो गई है। एलएसडीजी को हासिल करने के लिए सबसे बड़ी चुनौती पंचायतों की योजनाओं को मिला कर एक (कंवर्जनस) करना है। एक गांव में 36 विभाग अलग-अलग काम करते हैं, लेकिन इनके बीच कोई समन्वय नहीं होता और ना ही वे स्थापित करना चाहते हैं। बहुत से विभाग काम करने के लिए सरपंच तक से बात नहीं करते।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम कर रहे राष्ट्रीय पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान के पंचायती राज केंद्र के मुखिया एवं असोसिएट प्रोफेसर अंजन कुमार भांजा कहते हैं, “इन लाइन विभागों के बीच समन्वय नहीं होना, सबसे बड़ी चुनौती है। यदि ये विभाग एक साथ मिलकर एलएसडीजी के थीम पर फोकस करके काम करें तो हर पंचायत तय समय पर सभी लक्ष्यों को हासिल कर लेंगी।”
पंचायतों में अक्सर विकास परियोजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रशासनिक, वित्तीय और तकनीकी क्षमता का अभाव होता है, जैसा कि डाउन टू अर्थ ने लोनी में देखा। पंचायत को प्रशिक्षण व सशक्तिकरण की सख्त जरूरत है। सरोज महापात्रा कहते हैं कि जीपीडीपी हर साल बनाने की बजाय तीन या पांच साल के लिए बनने चाहिए। वित्तीय संसाधन की कमी पंचायतों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। पंचायतों को अक्सर कम धन मिलता है और एसडीजी से संबंधित कार्यक्रमों को निष्पादित करने के लिए संसाधनों तक उनकी सीमित पहुंच होती है। राज्य और केंद्र सरकार के वित्तपोषण पर निर्भरता उनकी स्वायत्तता को सीमित करती है।
साल 2030 तक पूरी दुनिया को सतत विकास लक्ष्य हासिल करने हैं। मात्र छह साल रह गए हैं। ऐसे समय में पंचायतों को भी इस दौड़ में शामिल कर लिया गया है। कहीं, यह पंचायतों की पीठ पर बंदूक रखने जैसा तो नहीं है। हाल ही में जब देश को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित करने के बाद सरकार से जवाब तलबी हुई तो केंद्र ने अपना बचाव करते हुए कहा कि सभी गांवों ने खुद को ओडीएफ घोषित किया है। कहीं, ऐसा ही कुछ तो सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नहीं किया जा रहा। इसके जवाब में महापात्रा कहते हैं कि यह एक जायज चिंता है। सरकार ने जिस तरह समय से पहले पूरे देश को खुले में शौच मुक्त घोषित किया था, सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति समय से पहले घोषित की जा सकती है। इसलिए उनका मानना है कि एक मजबूत और रियल टाइम निगरानी, मूल्यांकन, प्रशिक्षण की प्रणाली होनी चाहिए, ताकि ग्रामीण सही जरूरत के आधार पर योजना बना सकें। साथ ही, सरकार को एक नियमित समीक्षा करनी होगी। एसडीजी की वैश्विक रिपोर्टिंग के लिए बॉक्स पर टिक करने के बजाय, सार्थक व दीर्घकालिक परिवर्तन पर जोर दिया जाना चाहिए, जो वास्तव में लोगों के जीवन को प्रभावित करता है। वह एलएसडीजी हासिल करने के लिए पंचायतों को आर्थिक सहयोग देने की भी वकालत करते हैं।
सरपंचों से संकल्प को पूरा कराने की ठोस व्यवस्था न होने पर मामला बिगड़ सकता है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के आदिवासी कार्यकर्ता गंगा राम पेकरा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि आदिवासी इलाकों के पंच-सरपंचों को न तो ऑनलाइन फॉर्म भरना आता है और न ही साइन करना। वे पूरी तरह से सचिव व पंचायत अधिकारियों पर निर्भर होते हैं। उनसे संकल्प भरवाया गया या नहीं, उन्हें नहीं पता है। इसलिए आशंका है कि सरकार के अन्य लक्ष्यों की तरह एसडीजी भी अधिकारी कागज में ही पूरा कर लेंगे।