जल संरक्षण के कामों को केंद्र बिंदु में रखने वाले मनरेगा में भुगतान एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है। इस योजना की क्षमता को बीते वर्ष 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद बेहतर तरीके से पहचाना गया था। बीते वित्त वर्ष में मनरेगा न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति दी थी बल्कि यह योजना एक करोड़ से अधिक प्रवासी और स्थानीय श्रमिकों के लिए आजीविका का प्रमुख साधन बनकर सामने आई थी। इस वर्ष कोविड की दूसरी खतरनाक लहर के दौरान अप्रैल और मई महीने में देश के अधिकांश राज्य तालाबंदी में रहे।
लेकिन राज्यों की ओर से मनरेगा के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाई दिया। इसकी एक वजह भुगतान न मिलने की वजह से श्रमिकों का मोहभंग और दूसरी वजह यह थी कि ऐसे कोई नियम और मानक नहीं तैयार हो पाए जो कोरोना संक्रमण के जोखिम को कम करते हुए श्रम को जारी रख पाते। भारत में मनरेगा के तहत भुगतान में देरी का मामला बीते पांच वर्षों में बढ़ता गया है। देश में मनरेगा के तहत भुगतान में 16 से 30 दिनों की देरी का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है।
बीते वर्ष देशव्यापी लॉकडाउन के दर्मियान जितना काम मनरेगा में मांगा और दिया गया, वैसा बीते पंद्रह वर्षों में नहीं देखा गया था। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और असम जैसे राज्यों में कार्यदिवस की संख्या भी काफी बढ़ाई गई थी। लेकिन इन राज्यों ने विलंब भुगतान में शीर्ष जगह बनाई है। वहीं इस वर्ष इन राज्यों में मनरेगा के तहत कार्यदिवसों में भी बड़ी कमी दिखाई देती है।
देश में कोविड की पहली लहर के दौरान वित्त वर्ष 2020-21 में मनरेगा के तहत अप्रैल महीने में कुल 17.57 करोड़ कार्यदिवस अनुमानित था और इस अनुमान का 80 फीसदी यानी 14.16 करोड़ ही कार्यदिवस सृजित हो पाया था। जबकि 2020 मई महीने में 67.63 करोड़ कार्यदिवस अनुमानित था और इस अनुमान के मुकाबले 105 फीसदी यानी 71.13 करोड़ कार्यदिवस सृजित किया गया।
कोविड की पहली तालाबंदी के बाद आर्थिक संकट काफी गहरा हुआ और वित्त वर्ष 2021-22 के अप्रैल महीने में कार्यदिवस सृजन का अनुमान 2020-21 के मुकाबले करीब दोगुना 33.57 करोड़ रखा गया और अप्रैल माह में कुल 34.10 करोड़ कार्यदिवस सृजित हुए। लेकिन मई महीने में स्थिति खराब हो गई। मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 के मई महीने में भी कुल 79.94 कार्यदिव कुल 54.13 करोड़ कार्यदिवस सृजित किए गए। मनरेगा के तहत अप्रैल-मई में कुल सृजित कार्यदिवस का यह आंकड़ा स्पष्ट तौर पर बताता है कि अप्रैल महीने में कार्यदिवस बीते वित्त वर्ष के मुकाबले बेहतर रहा लेकिन मई महीने में बीते वित्त वर्ष के मुकाबले बड़ी गिरावट आई है। कोविड संक्रमण की पहली लहर में मनरेगा की बदौलत ग्रामीण भारत ने देश की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया था।