
मध्य प्रदेश के बरगी बांध से मात्र दो से तीन किलोमीटर ऊपर किंदरई गांव (विकास खंड घंसौर, जिला सिवनी) में परमाणु बिजली घर को न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा मंजूरी प्रदान कर दी गई है।
इस मंजूरी के खिलाफ किंदरई गांव के आसपास के दो दर्जन से अधिक गांव के लोग विगत दो दिनों से लगातार विरोध-प्रदर्शन और बैठक आयोजित कर रहे हैं। यह विरोध उस समय और अधिक तेज हो गया जब स्थानीय ग्रामीणों ने देखा कि उनके खेतों में उनसे अनुमति के बिना ही सर्वे करने के लिए प्रशासनिक अधिकारी उनके खेतों में पहुंच गए।
ग्रामीणों का कहना है कि इन अधिकारियों ने न तो गांव के सरपंच को सूचित किया और न ही किसी ग्रामीण से पूछा। ऐसे हालात देख स्थानीय गांव के लोग अधिकारियों के खिलाफ आक्रोशित हो गए और उनसे जवाब-तलब करने लगे कि आखिर वे हमसे पूछे बिना हमारे खेतों में कैसे पहुंच गए।
ग्रामीणों का कहना है कि वे संभवत: जांच के लिए मिट्टी का सेंपल एकत्रित कर रहे थे। परियोजना के लिए सरकारी कार्यवाही की तेजी से क्षेत्र के ग्रामीण लोग सशंकित हो उठे हैं। इन तमाम विपरित परिस्थतियों के चलते किंदरई गांव के आसपास के 15 गांव के लोगों ने एक बैठक किंदरई में रखी और जिले के घंसौर विकासखंड में इस परियोजना के खिलाफ एक विशाल रैली निकाली।
रैली में हजारों ग्रामीण शामिल हुए। आखिर में ग्रामीणों ने खेतों में किए जा रहे सर्वे के खिलाफ एक ज्ञापन स्थानीय प्रशासन को सौंपा। ध्यान रहे कि नर्मदा नदी के ठीक इसके दूसरी ओर चुटका गांव हैं, वहां भी परमाणु परियोजना का बनना प्रस्तावित है। ग्रामीणों के विरोध के कारण पिछले 15 सालों से इसका निर्माण कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया है।
ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले क्षेत्रीय जन सुरक्षा समिति किंदरई के अध्यक्ष पीडी गिरियाम का कहना है कि हमारा इलाका बरगी बांध से भी विस्थापित हो चुका है। इस क्षेत्र को अब तक बरगी बांध से एक बूंद पानी तक नहीं मिला।
उनका कहना है कि लगभग चार दशक पहले विस्थापित होने के बाद अब क्षेत्र के ग्रामीणों ने जैसे-तैसे अपने को बस जीने लायक बनाया है तो अब एक और विस्थापन की तलवार सरकार ने लटका दी है।
गांव के ही एक अन्य ग्रामीण राजेश मारावी ने कहा कि हम आसपास की तमाम ग्राम सभाओं में इस परमाणु परियोजना के खिलाफ प्रस्ताव पारित करेंगे क्योंकि इस परियोजना से बड़ी संख्या में ग्रामीण विस्थापित होंगे। उनका कहना था कि वैसे भी हम विस्थापित लोग ही हैं, अंतर बस यह है कि पहले पानी के नाम पर हुए थे अब बिजली के नाम पर विस्थापित होंगे।
किंदरई गांव के ही एक अन्य ग्रामीण हीरा लाल सरयाम का कहना था कि पूर्व में ही प्रस्तावित चुटका परमाणु परियोजना के कारण हमारे घंसौर क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा विकिरण से प्रभावित होने वाला है। अब किंदराई परमाणु परियोजना प्रस्तावित होने से तो क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा।
गांव के एक अन्य ग्रामीण हरिओम नागेश ने बताया कि हमारा घंसौर क्षेत्र की नर्मदा पट्टी पूर्व में भी बरगी बांध से विस्थापित एवं प्रभावित हो चुका है। विस्थापन के कारण बड़ी संख्या में लोगों की आर्थिक स्थिति दयनीय है और ग्रामीण रोजगार के लिए बाहर पलायन करने को मजबूर हैं।
उनका कहना है कि हमारे केदारपुर और गोरखपुर क्षेत्र के किसानों द्वारा बरगी जलाशय से सिंचाई के लिए पानी की मांग की जाती रही है, परन्तु इन मांगों पर प्रशासन द्वारा आज तक विचार नहीं किया गया है। जबकि दूसरी ओर झाबुआ पावर प्लांट को बरगी बांध से ही पानी दिया जा रहा है और इस पावर प्लांट का राखड़ हमारे आसपास के गांवों के खेतों को खराब कर रहा है।
इस परमाणु परियोजना के खिलाफ किंदरई गांव में आसपास के दो दर्जन से अधिक गांवों के लोगों ने 22 दिसंबर को ही एक बैठक आयोजित की थी। बैठक में इस परियोजना से प्रभावित होने वाले लगभग 26 गांव के ग्रामीणों भाग लिया था और समवेत स्वर में इस परियोजना का विरोध किया। इनमें पौडी, चरगांव, केदारपुर, धुमामाल, पुटरई, पीपरटोला, छिंदवाहा, बखारी, जामनपानी, किन्दरई, चौरई, बरेली, राजगढ़, धर्मुकोल, पिपरिया, कारीथून, गोकला, रोटो, दलका, कुरोठार, चिनगा, अंडिया,कुसुमी, सुदामपुर, गढी, फुलेरा आदि शामिल हैं।
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ के सदस्य राजकुमार सिन्हा ने बताया कि बरगी बांध से 162 गांव के 10 हजार परिवार प्रभावित हुए थे। जिसमें सिवनी जिले के 48 गांव शामिल है। घंसौर विकास खंड के केदारपुर क्षेत्र में किसानों ने 2011 में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बरगी जलाशय द्वारा सिंचाई उपलब्ध कराने की मांग रखी थी। इस सबंध में केदारपुर कार्यक्रम में घोषणा भी की गई थी लेकिन इस अथाह जल भंडार का स्थानीय लोगों के उपयोग के लिए अब तक एक बूंद पानी भी नहीं मिला है।