कोरोना की दूसरी लहर और मनरेगा-4: राजस्थान में इस बार मनरेगा नहीं बना मददगार

राजस्थान में केन्द्र सरकार पर मजदूरों के 87.62 करोड़ रुपए की मजदूरी बकाया है
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में भंवर सिंह और नर्मदा इस लॉकडाउन के बाद से बेरोजगार हैं। इन्हें मनरेगा में काम मांगने के बाद भी रोजगार नहीं मिला है। फोटो: माधव शर्मा
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में भंवर सिंह और नर्मदा इस लॉकडाउन के बाद से बेरोजगार हैं। इन्हें मनरेगा में काम मांगने के बाद भी रोजगार नहीं मिला है। फोटो: माधव शर्मा
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कोविड-19 महामारी के पहले दौर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ने ग्रामीणों को बहुत सहारा दिया। सरकार ने भी खुल कर खर्च किया। लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर में मनरेगा ग्रामीणों के लिए कितनी फायदेमंद रही, यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने देश के पांच सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्यों में मनरेगा की जमीनी वस्तुस्थिति की विस्तृत पड़ताल की है। इस कड़ी की पहली रिपोर्ट में आपने पढ़ा, सरकार ने नियमों में किया बदलाव और दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, मध्य प्रदेश में मनरेगा का हाल। तीसरी कड़ी में बिहार की स्थिति का आकलन किया गया था। आज पढ़ें अगली कड़ी-

इस बार मनरेगा ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए ज्यादा मददगार साबित नहीं हो पाया। कोरोना वायरस की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में राज्य सरकार ने बेहद कम संख्या में मस्टर रोल चलाई हैं। इसकी वजह से बाहरी राज्यों से लौटे प्रवासी और स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाया। राज्य में लॉकडाउन के दौरान अधिकतर मस्टरोल बिलकुल बंद थीं।

भीलवाड़ा जिले की मोगर ग्राम पंचायत में रहने वाले भंवर सिंह रावत (45) और नर्मदा देवी को इस वित्तीय वर्ष में अब तक सिर्फ 10 दिन काम मिला है। जबकि बीते साल लॉकडाउन के दौरान भी काम मिला और पूरे साल में इन्होंने 90 दिन काम के पूरे किए।

भंवर कहते हैं, ‘इस बार लॉकडाउन में सरकार ने मनरेगा को बंद कर दिया। घर के खर्चे के लिए मैंने अपनी 5 हजार रुपए की जमा पूंजी खर्च कर दी। जरूरत पड़ी तो गांव के साहूकार से 15 हजार रुपए सूद पर कर्ज भी लिया है।’ भंवर की पत्नी नर्मदा भी यही सब दोहराती हैं। कहती हैं, ‘लॉकडाउन हटने के बाद अब 9 जून को साइच चालू की है, जिसमें 5 दिन काम मिला है। अगर हमें पिछली साल की तरह इस साल भी लॉकडाउन के दौरान काम मिल जाता तो आर्थिक तंगी से नहीं गुजरना पड़ता।’

इसी तरह धौलपुर जिले के सरमथुरा कस्बे की रहने वाली विरमा रजक (60) भी इस बार मनरेगा में काम ना मिलने से मायूस हुई हैं। आम दिनों में घरों में साफ-सफाई कर गुजारा करने वाली विरमा का कहना है, ‘इस साल लॉकडाउन के बाद घरों में काम पर बुलाना बंद कर दिया। मनरेगा भी नहीं चला। मैं एक-एक पैसे के लिए मोहताज हो गई। जबकि बीते साल लॉकडाउन में भी सरकार ने मनरेगा चालू रखा था। इससे रोजाना के खर्चे के लिए एक रकम उपलब्ध हुई थी।’

मई माह में लक्ष्य के 60% ही मानव दिवस सृजित हुए

मनरेगा के आंकड़े बताते हैं कि इस वित्तीय वर्ष के ढाई महीनों में सरकार दिए गए लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है। राजस्थान में इस साल मई माह में 8,09,24,006 मानव दिवस सृजन करने का लक्ष्य रखा गया, लेकिन सृजन सिर्फ 4,78,57,164 मानव दिवस यानी 59% ही हो पाए।

जबकि इसी अवधि में वित्तीय वर्ष 2020-21 में लक्ष्य 7,79,25,509 रखा और 100 फीसदी लक्ष्य पूरा भी किया गया। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2021-22 में जून माह में 13 करोड़ से ज्यादा मानव दिवस सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अभी तक सिर्फ 4.79 करोड़ (36%) मानव दिवस ही सृजित हो पाए हैं। जबकि बीते साल जून महीने में 17.55 करोड़ का लक्ष्य था और 17.89 करोड़ (101%) मानव दिवस सृजित किए गए। बता दें कि राजस्थान में मनरेगा में फिलहाल 1.34 करोड़ कार्यशील मजदूर हैं। जो कि कुल मजदूरों का 51 फीसदी हैं।

मजदूरों के 87 करोड़ रुपए बकाया

कोरोना महामारी के बीच ग्रामीण इलाकों में काम की बेहद कमी है। जिन लोगों को मनरेगा में थोड़ा बहुत काम मिल रहा है उन्हें सरकार वक्त पर मजदूरी नहीं दे पा रही है। राजस्थान में केन्द्र सरकार पर मजदूरों के 87.62 करोड़ रुपए की मजदूरी बकाया है। सरकार समय पर ये मजदूरी मनरेगा मजदूरों के खाते में नहीं पहुंचा पाई है। इसके अलावा केन्द्र सरकार के हाल ही में योजना में किए गए संशोधनों पर भी काफी विरोध दर्ज किया जा रहा है। इन संशोधनों के अनुसार अलग-अलग मजदूरों की श्रेणियां बनाई गई हैं। इसमें एससी,एसटी व अन्य के लिए अलग लेबर बजट और फंड ट्रांसफर ऑर्डर बनाने का प्रावधान किया गया है।

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