बैठे ठाले: तारीफ के पुल
सोरित / सीएसई

बैठे ठाले: तारीफ के पुल

पाटलिपुत्र नरेश ने सेनापति से कहा, “यह इक्कीसवीं सदी है। अब युद्ध सेना नहीं बल्कि पुल लड़ते हैं”
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पाटलिपुत्र शहर में आज बड़ी रौनक थी। पाटलिपुत्र नरेश लगातार रंग बदलते हुए नौंवी बार राजा चुन लिए गए थे और पिछले घंटे भर में आज उनका नौंवी बार राज्याभिषेक हो रहा था। शहर के हर गली-नुक्कड़ में रंगीन कागज के तिकोने टुकड़ों को सुतली में चिपकाकर सजाया गया था। टूटी-फूटी सड़कों पर लगे हर बिजली के खम्भे को तिरंगे चाइनीज एलईडी झालरों से लपेटा गया था।

शाम ढलने से पहले डीजे की तेज अवाज से शहर की इमारतों की खिड़कियों के शीशे थरथराने लगे। स्कूल-कॉलेज की खिड़कियों पर इसका कोई खास असर नहीं था क्योंकि उनके शीशे पिछले कई सौ वर्षों पहले तोड़े जा चुके थे।

आखिरकार वह वक्त आ ही गया जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था। पाटलिपुत्र नरेश दरबार में एंटर हुए और अपने सिंहासन की ओर बढ़ने लगे कि अचानक गोदी चैनल के एक एंकर ने उनका रास्ता रोक लिया और बोला, “नरेश मैं आपको देश में बाहरी शक्तियों के हमले के फायदे बताता हूं!”

पाटलिपुत्र नरेश बोले, “हमने तो अपने राज्य में नशाबंदी की हुई है फिर तुम आज कहां, कब और कैसे “चीप-थ्रिल” के प्रभाव में आ गए?”

एंकर ने उनके कान में फुसफुसाते हुए बोला, “नरेश गजबे हो गया है! हमारे राज्य पर मंगोलों का आक्रमण हो गया है।”

नरेश ने कहा, “तो इसमें घबराने की क्या बात है? रास्ता छोड़ो!”

एंकर कुछ बोलता, इससे पहले ही सेनापति ने कहा, “मान्यवर, हमारे हमारी सेना में आज की डेट में जवान कम और ठेके के अग्निवीर ज्यादा हैं। ऐसे में लड़ेगा कौन?”

पाटलिपुत्र नरेश ने कहा, “हमको पता है। बहुत स्मार्ट बनने का कोशिश न कीजिए। इक्कीसवीं सदी में सेना युद्ध नहीं लड़तीं, इतना भी नहीं मालूम?”

इतना कहते हुए वह सिंहासन पर विराजमान हो गए। पाटलिपुत्र नरेश ने दायीं ओर कुर्सी पर बैठे अपने पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट मंत्री की ओर देखकर कहा, “राज्य की सभी नदियों पर पुलों का निर्माण शुरू कर दीजिए। अपने सभी दागी ठेकेदारों को इस काम पर लगा दीजिए।”

सेनापति और एंकर हक्के-बक्के होकर एक-दूसरे को देख रहे थे। जो सवाल पाटलिपुत्र नरेश ने थोड़ी देर पहले एंकर को किया था अब वही सवाल एंकर नरेश से करना चाह रहा था पर उसे पता था कि नरेश ने पिछले हजारों वर्षों में एक भी ओपन प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की थी।

जल्द ही सभा विसर्जित कर दी गई। नरेश की आज्ञा के अनुसार, जल्द ही राज्य की सभी नदियों पर एक के बाद एक पुल बना दिए गए।

पुलों की यह खबर जब मंगोल सेना तक पहुंची तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। जल्द ही मंगोल सेना ने पाटलिपुत्र की ओर कूच कर दिया। लाव-लश्कर-हाथी-घोड़े लेकर मंगोल सेना पुलों से होकर जा ही रही थी कि पुल भर-भरा कर गिर पड़ा और मंगोल सेना नदी में जा गिरी। ऐसा एक नहीं हर पुल के साथ हुआ। मंगोल सेना में भगदड़ मच गई। उनके सरदार ने घोषणा की कि, “मैंने तय किया है कि मुड़!”

यह वापस जाने का आदेश था पर मंगोल सेना ने “तय” और “मुड़” शब्दों को ही सुना। आगे चलकर इस सरदार का नाम “तय-मुड़” या तैमूर पड़ गया।

उधर पाटलिपुत्र में सब खुशी से पागल हुए जा रहे थे। देश की जनता पुलों की तारीफ में पुल बांधने लगे।

पाटलिपुत्र नरेश ने सेनापति से कहा, “यह इक्कीसवीं सदी है। अब युद्ध सेनाएं नहीं बल्कि पुल लड़ते हैं। आप शुक्र मनाइए कि “सेनापति” की पोस्ट अभी भी कायम है। कल क्या पता इसे भी अग्निपथ स्कीम के हवाले कर दिया जाए।”

मंगोलों की इस हार को सेलिब्रेट करने के लिए पाटलिपुत्र को एक बार फिर से सजाया जाने लगा।

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