भागीरथी नदी की बेहद संवेदनशील घाटी में सड़क निर्माण और मलबा डंपिंग से बढ़ा भूस्खलन का खतरा

भागीरथी इको सेंसेटिव जोन के लिए 2012 में केंद्र सरकार ने विस्तृत अधिसूचना जारी की थी लेकिन इसका जोनल मास्टर प्लान आजतक मंजूर नहीं हो पाया है।
Photo : Hemant Dhyani
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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के  पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में ग्राम बायणा से लेकर ग्राम स्याबा तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत पहाड़ काटकर सड़क निर्माण किया जा रहा है। अभी यह निर्माण जामक-कामर संवेदी क्षेत्र में हो रहा है साथ ही नियमों के विरुद्ध इसका मलबा पहाड़ी ढ़लानों पर ही गिराया जा रहा है। 100 किलोमीटर दायरे में फैले भागीरथी नदी के नाजुक क्षेत्र में पेड़ों की कटाई और मलबे की गलत डंपिंग के चलते कई बार आपदा हुई है। हालांकि इस परियोजना से जुड़ी जानकारियों और मंजूरी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।

ग्राम बायणा से लेकर ग्राम स्याबा तक का क्षेत्र भागीरथी इको सेंसेटिव जोन के तहत ही आता है। 2012 में केंद्र सरकार ने भागीरथी पर्यावरण संवेदी क्षेत्र की अधिसूचना जारी की थी। ऐसे सेंसेटिव जोन में किसी भी तरह की परियोजना के लिए अनुमित हासिल करने के विशेष प्रावधान हैं। ऐसे में स्थीय कार्यकर्ताओं ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को सड़क निर्माण परियोजना के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई है।  

 उत्तरकाशी में पर्यावरण के मुद्दों पर काम करने वाले कार्यकर्ता हेमंत ध्यानी ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि 14 अप्रैल को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण के शीर्ष अधिकारियों को इस सड़क निर्माण कार्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है। उन्होंने कहा कि वन भूमि डायवर्जन के साथ ही इस परियोजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय के एफएसी स्टेज-1 क्लीयरेंस में भागीरथी इको सेंसेटिव जोन अधूसचना, 2012 का ख्याल नहीं रखा गया है।

भागीरथी इको सेंसेटिव जोन के लिए 2012 में केंद्र सरकार ने विस्तृत अधिसूचना जारी की थी लेकिन इसका जोनल मास्टर प्लान आजतक मंजूर नहीं हो पाया है। उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने अधिसूचना को विकास कार्यों का रोड़ा मानते हुए इसमें बदलाव की मांग उठाई थी। हालांकि, केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के जोनल मास्टर प्लान में कमियों को देखते हुए उसे रद्द कर दिया था। बहरहाल राज्य का एक और मास्टर प्लान अब भी केंद्र के पास लंबित है। 

इस अधिसूचना में पर्वतीय सड़कों को लेकर कई दिशा-निर्देश दिए गए हैं। मसलन, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट, निगरानी समिति के जरिए कार्यों की समीक्षा, मलबे का इस्तेमाल सड़क निर्माण में ही करने की बात कही गई है। जबकि मंत्रालय को की गई शिकायत में इन सभी विषयों का उल्लंघन बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि यह अति संवेदनशील घाटी में आपदा को न्यौता देने जैसा है।

बायणा से स्याबा गांव तक के क्षेत्र में सड़क निर्माण को इको सेंसेटिव जोन से बाहर दिखाया गया है जबकि राज्य के मास्टर प्लान में यह सड़क इको सेंसेटिव जोन में ही है। वहां यह सड़क एक तीव्र ढ़ाल वाली पहाड़ी पर आंध्री-गाढ़ के जलग्रहण क्षेत्र से गुजरता है। यह गंगा नदी की सहयोगी जलधारा है। 2002 में यहां बादल फटने के कारण नदियों से आस-पास के क्षेत्र में काफी तबाही हुई थी।    

उत्तराकाशी में ही अप्रैल में महीने में दो बार (3 अप्रैल, 27 अप्रैल) को धरासू थाने के पास काफी पहाड़ी मलबा सड़कों पर गिरा, जिसके कारण बुनियादी सामानों को इधर से उधर ले जाने वाले ट्रकों को भी फंसना पड़ा था। गंगोत्री हाईवे ठप हो गया। वहीं भागीरथी के तट पर ही वैकल्पिक मार्ग बनाया गया था लेकिन वह भी इस्तेमाल के लाक नहीं बचा है। केंद्र सरकार के चारधाम परियोजना में धरासू भी परियोजना का हिस्सा था, जहां पेड़ और पहाड़ों की कटाई की गई जिसके कारण लगातार भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं।

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