ग्रैमी विजेता रिक्की केज: जो संगीत की धुनों से देते हैं पर्यावरण को बचाने का संदेश

उनका नया एल्बम डिवाइन टाइड्स सुनने वालों का बाहर की बजाय अपने अंदर देखने के लिए प्रेरित करता है
दूसरी बार ग्रैमी पुरस्कार जीतने वाले रिक्की केज। Photo: twitter@rickykej
दूसरी बार ग्रैमी पुरस्कार जीतने वाले रिक्की केज। Photo: twitter@rickykej
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बंगलुरू के रहने वाले रिक्की केज एक बार फिर चर्चा में है। उनको एक बार फिर ग्रैमी पुरस्कार से नवाजा गया है। रिक्की का मानना है कि संगीत एक सशक्त माध्यम है। वह प्रकृति के संरक्षण के लिए लिखे गानों पर धुन बनाते हैं। उनके मुताबिक, ‘ हमें वे गीत याद हैं जो हमने अपने बचपन में सीखे थे, उनकी नैतिक सीख आज भी हमारे साथ जुड़ी हुई है।

2015 में उनके एल्बम ‘विंड्स ऑफ समसारा’ को ग्रैमी अवार्ड मिला था। अपने नए एल्बम डिवाइन टाइड्स को उन्होंने स्टीवर्ट कोपलैंड के साथ मिलकर तैयार किया है। कोपलैंड पूर्व ब्रिटिश-अमेरिकी बैंड ‘द पोलिस’ के ड्रमर हैं। यह एल्बम 21 जुलाई 2021 को जारी हुआ था। 
इसके गानों में यह संदेश दिया गया हे कि हम जलवायु परिवर्तन का सामना केवल अपने व्यवहार में बदलाव लाकर ही कर सकते हैं। इसके लिए हमें सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों का इंतजार किए बिना एक के बाद एक लगातार कदम उठाने होंगे। हालांकि दक्षियानी पालिचा के साथ बातचीत में वह यह भी मानते हैं कि अपने जीवन के अस्तित्व के लिए जूझ रहे लोगों से यह उम्मीद कैसे की जा सकती हैं कि वे जलवायु परिवर्तन की चिंता करेंगे। बातचीत के मुख्य अंश -

आपका एल्बम ऐसे समय में जारी हुआ है, जब दुनिया में जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाएं हो रही हैं। क्या एल्बम में कोई ऐसा गाना है, जो इन हालातों पर फिट बैठता हो ?
जलवायु परिवर्तन इंसान के सामने सबसे बड़ा अस्तित्वगत खतरा है। मेरा मानना है कि व्यवहार में बदलाव के माध्यम से ही हम वास्तव में इसके प्रभावों का मुकाबला या कम कर सकते हैं। मुझे लगता है कि हम सभी परिवर्तन लाने के लिए लगातार किसी और क इंतजार कर रहे हैं, यानी कि सरकारों, अंतर-सरकारी निकायों या गैर-सरकारी संगठनों का लेकिन अपने जीवन में बदलाव लाकर ही हम किसी भी तरह के विकास के लिए काम कर सकते हैं।
 
डिवाइन टाइड्स मे हमने इसी का प्रयास किया है यानी कि यह हमें इसके लिए प्रेरित करता है कि हम कहीं और की बजाय अपने अंदर झांकें। इसमें संगीतकार और गायक सलीम मर्चेंट का एक गाना है, जिसके बोल हैं -‘ आई एम चेंज’। यह गाना एक ऐसे कस्तूरी मृग के लिए लिखा गया है, जो चारों ओर एक शानदार खुशबू फैला रहा है। हालांकि इस मृग को यह नहीं पता कि यह खुशबू कहां से आ रही है। वह पूरे जीवन यही पता लगाने के लिए खोजता फिरता रहता है, बिना यह जाने कि यह खुशबू उसी के पास से आ रही है। यानी कि गाने का संदेश हे कि अगर आप दुनिया में कोई बदलाव लाना चाहते हैं तो पहले वह बदलाव अपने अंदर लाएं।

आपने एल्बम के म्यूजिक वीडियोज की रिकार्डिंग कैसे की ?
पहला वीडियो जो हमने तैयार किया, उसका नाम है - हिमालयाज । महामारी से ठीक पहले भारतीय सेना ने मुझे लेह में एक सम्पूर्ण संगीत-कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था। दस हजार सैनिकों के लिए होने वाला यह कार्यक्रम 12,000 फुट यानी जमीन से 3.65 किलोमीटर की ऊंचाई पर होना था।

मौसम के अनुकूल खुद को ढालने  के लिए हम 4-5 दिन पहले ही वहां पहुंच गए थे। इससे हमें वहां कुछ फिल्माने का मौका मिला। हालांकि यह गाना अपने आप में अधूरा था लेकिन मुझे पता था कि चूंकि यह पहाड़ों के लिए एक श्रद्धांजलि है, इसलिए इस पर फिल्म बनाना जरूरी है। बाद में, जब स्टीवर्ट आए, तो हमने इन्हें लॉस एंजिल्स, संयुक्त राज्य अमेरिका में दूर दराज के इलाकों में फिल्माया और फिर दोनों वीडियो को एक साथ जोड़ दिया।

एक अन्य वीडियो, तमिलनाडु में स्वामी मलाई के कारीगरों पर था, जिनकी कांस्य प्रतिमाओं की ढलाई की दो हजार साल पुरानी परंपरा है। इसे तैयार करने की प्रक्रिया में मुख्य सामग्री में से एक कावेरी नदी के तल की रेत है। हमने वहां इस प्रक्रिया को फिल्माया। मेरे लिए, यह एक प्राचीन परंपरा को खूबसूरती से प्रदर्शित करता है और नदी के महत्व को दोहराता है।

क्या कोविड-19 ने आपके एल्बम की संकल्पना और उसकी रिकार्डिग पर असर डाला?
2015 में जब मुझे ‘विंड्स ऑफ समसारा’ के लिए ग्रैमी अवार्ड मिला था, तब से मैं उसी तरह का दूसरा एल्बम बनाना चाहता था। पिछले 5-6 सालों के दौरान मैंने तमाम ध्ुानों और लय से जुड़े विचारों को अपने दिमाग में बुना और उन्हें लिखा।

मुझे इस बात का बेहतर अंदाजा था कि एल्बम कैसा होना चाहिए और साथ ही इसका भी कि मेरे सपने और इसके लिए मेरी उम्मीदें कैसी हैं। हालांकि लगातार दौरे के कार्यक्रमों के कारण, मेरे लिए इसे रिकॉर्ड करने के लिए समय निकालना नामुमकिन हो गया।

केवल 2019 में ही मैंने 13 देशों में संगीत-कार्यक्रम किए, उससे पिछलेे साल भी ऐसा ही रहा था। यानी कि एल्बम का विचार केवल मेरे दिमाग में था। पिछले साल, जब महामारी आई तो हर कोई अपने घर में कैद था। जबकि हम लोग अपने स्टूडियो में फंसे थे। इसी दौरान हमें एल्बम की रिकार्डिंग और उससे जुड़े काम करने का मौका मिला।

स्टीवर्ट कोपलैंड के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा ?  
दो लोगों के बीच सहयोग अलग-अलग तरीकों से होता है। इस खास मामले में, मैं बहुत भाग्यशाली था कि स्टीवर्ट को मेरे पास पहले से मौजूद विचारों और मेरे पेश किए गए संगीत से प्यार था। हम दोनों की दृष्टि में समानता थी। इसके अलावा स्टीवर्ट के पास खुद के बेहतरीन विचार थे और उनके काम करने का एक तरीका था। वह एल्बम में कई बदलाव चाहते थे। तो मैंने खुद से वादा किया कि वह जो कुछ भी चाहते हैं, वह सब मैं एल्बम में करूंगा और जितना संभव हो, उनसे सीखूंगा।

कई बार मैं उनसे सहमत नहीं होता था लेकिन फिर भी उनके कहने पर एल्बम में वह बदलाव करता था और इसके नतीजे चौंकाने वाले होते थे। जहां तक परिकल्पना का सवाल है तो मेरा संगीत पर्यावरण और स्थिरता के बारे में है।

स्टीवर्ट के सोचने की तरीका अलग है। उनका मानना है कि संगीत के पीछे जो हम महसूस करते हैं, वह भावना महत्वपूर्ण है। उन्होंने महसूस किया कि अगर इस संगीत का भावनात्मक प्रभाव इतना मजबूत है कि वह वास्तव में लोगों को सकारात्मक प्रभाव की ओर प्रेरित करता है, तो वह संगीत अपने आप में पूर्ण है।

आपके ज्यादातर गाने भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रभावित होते हैं। क्या आपको लगता है कि इनसे पर्यावरण के बारे में संदेश साझा करना उपयुक्त है ?
संगीत की कोई भी शैली पर्यावरण के बारे में बोलने के लिए उपयुक्त है, चाहे वह पॉप म्यूजिक हो, लोक संगीत, या फिर भारतीय शास्त्रीय संगीत। तो, मैं बस इसी तरह खुद को अभिव्यक्त करता हूं।
 
मेरी पूरी जिंदगी पर्यावरण के आपसपास घूमती रही है। दूसरी ओर, एक संगीतकार के रूप में मैं भारतीय संगीत सुनते हुए बड़ा हुआ हूं और हरिप्रसाद चौरसिया, उस्ताद जाकिर हुसैन, पंडित शिव शंकर जैसे कलाकारों की कद्र करता हूं। यही वजह है कि मैं अपने को भारतीय संगीत के जरिए ही व्यक्त करता हूं।

जब मैं किसी भावना को संगीत में ढालता हूं तो पहले मैं भारतीय संगीत का कोई एक पहलू चुन लेता हूं। यहां तक कि अगर मैं एक ऐसा संयोजन बनाने की कोशिश भी करूं जो पश्चिमी प्रकृति का हो, तो उसमें भी थोड़ा सा भारतीय संगीत आ जाता है।

आपके गानों में प्रकृति से लकर शरणार्थी संकट जैसे अलग-अलग मुद्दे शामिल होते हैं। क्या आप मानते हैं कि वे सभी एक दूसरे के साथ और पर्यावरण के बड़े विषय के साथ भी जुड़े हुए हैं ?
जब मैंने केवल पर्यावरण और स्थिरता के बारे में लिखने की इस यात्रा की शुरुआत की और विशेष रूप से ग्रामीण भारत की यात्रा शुरू की, तो मैंने महसूस किया कि आप इन मुद्दों को पूरी तरह से अलग-थलग नहीं देख सकते।
 
भारत जैसे विकासशील देश में, लोगों को पर्यावरण को समझाने और उनका समर्थन हासिल करने के लिए, आपको भूख, गरीबी, लैंगिक समानता, शिक्षा, स्वच्छता और पानी जैसी अन्य समस्याओं को ध्यान में रखना होगा।
 
मेरा मानना है कि भारत में दो तरह की समस्याएं हैं - पहली, लोगों के सामने उनके अस्तित्व से जुड़ी समस्याएं और दूसरी वे समस्याएं जो समय के साथ फलती-फूलती जा रही हैं। जब तक हम अस्तित्व की समस्याओं का ध्यान नहीं रखेंगे, तब तक किसी को भी दूसरी तरह की समस्याओं  की परवाह नहीं होगी। जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण, वनों की कटाई को दूसरी तरह की समस्याओं के रूप में देखा जाता है, लेकिन दरअसल वे भी वास्तव में भूख, समानता, लैंगिक समानता, लैंगिक हिंसा और शिक्षा की तरह हमारे अस्तित्व से जुड़ चुकी हैं।
 
आप भारत के किसी गरीब गांव में जाइए और लोगों से कहिए कि वे हमारे बच्चों की खातिर एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए बिजली का इस्तेमाल न करें। वे इस सवाल के जवाब में आपसे पूछेंगे कि फिर उनकी दुनिया का क्या होगा ? उनके बच्चों के लिए स्कूल नहीं हैं, सफाई नहीं है, बिजली नहीं है। यही वजह है कि मेरा संगीत इतना विविध है। मैं अपने काम और संदेशों में एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) उच्चायुक्त और संयुक्त राष्ट्र बाल आपातकालीन कोष जैसी एजेंसियों के साथ काम करता हूं।

सामाजिक जागरुकता लाने में संगीत की क्या भूमिका होती है?
एक संदेश को प्रसारित करने के लिए संगीत न केवल एक शक्तिशाली भाषा है बल्कि यह बस बात को भी सुनिश्चित करता है कि वह संदेश और उसका लोगों से संबंध बना रहे। हमें वे गाने याद हैं जो हमने अपने बचपन में सीखे थे, उनकी नैतिक सीख आज भी हमारे साथ जुड़ी हुई है।
आप एक हजार भाषण दे सकते हैं, आप लोगों के सामने टनों वैज्ञानिक आंकड़े पेश कर सकते हैं लेकिन लोगों पर यह असर नहीं डालता। लेकिन अगर आप संगीत और कला के माध्यम से इन आंकड़ो या इसके पीछे के विचारों और समस्याओं की व्याख्या करते हैं, तो यह लोगों के दिलों तक पहुंच जाता है।
 
यह उनको भावनात्मक तौर पर स्पर्श करता है और उनके व्यवहार में बदलाव ला सकता है। लोग कभी-कभी दूसरों को ख्ूान से भरे चित्र दिखाकर और दुनिया की वास्तविक स्थिति को उदास तरीके से समझाकर उन्हें शर्मसार महसूस कराते हैं। यह जो कुछ मामलों में ठीक भी है और यह भी चलते रहना चाहिए। हालांकि मेरा मानना है कि सकारात्मक तरीके से लोगों को ताकत देना सबसे अच्छा रास्ता है।
 
सेनेगल के प्रसिद्ध वानिकी इंजीनियर बाबा डियूम ने एक बार कहा था - ‘अंत में हमारे पास केवल वही बचेगा, जिसे हम प्यार करते हैं। हम केवल उसी को प्यार करेंगे, जिसे हम समझते हैं, और हम केवल वही समझेंगे, जिसे हमें सिखाया गया है।’ मेरा मिशन भी वैसा ही है: मैं सकारात्मकता पैदा करना चाहता हूं। जब सुनने वाले किसी संगीत-कार्यक्रम में आते हैं तो आप उन्हें केवल संदेश सुनाकर परेशान नहीं करना चाहते क्योंकि अगर आप ऐसा करेंगे तो वे आपसे दूर चले जाएंगे।

जब आपकी कला पूरी तरह से पर्यावरण जैसे ध्रुवीकरण की अवधारणा के लिए समर्पित है, तो क्या यह व्यावसायिक कामयाबी भी पा सकती है ?
जब कला किसी मुद्दे को खासतौर से उठाती है तो वह व्यावसायिक कामयाबी की संभावना को खो देती है। इसीलिए हम देखते हैं कि तमाम कलाकार कोई सामाजिक संदेश नहीं देते। यदि आप जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को देखें, तो बहुत से देशों में इसे विज्ञान की तरह माना जाता है, लेकिन अमेरिका जैसे कुछ देशों में तो यह एक राजनीतिक एजेंडा है।

जब आप किसी सामाजिक मुद्दे को उठाते हें तो आपको यह बात दिमाग में रखनी होगी कि इससे आपके कुछ श्रोता कम हो जाएंगे। सबसे जरूरी बात यह है कि आपका संगीत या आपकी कला बेहतर हो। आप अपने संदेश में पर्यावरण के तमाम संदेश दे सकते हैं लेकिन अगर वह संगीत ही लोगों को नहीं लुभाएगा तो आपके संदेशों का लोगों पर कोई असर नही पड़ेगा। अपना संगीत सुनने वालों का ध्यान तो आपको खींचना ही होगा।
 

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