25 दिसंबर से जोशीमठ ही नहीं, उत्तराखंड के इन इलाकों में भी धंस रही है जमीन?

डाउन टू अर्थ ने जोशीमठ के दूरदराज के गांवों में जाकर देखा तो पाया कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह से वहां भी दरारें आ रही हैं
गांव सेलंग में घरों में भी दरारें आ रही हैं। फोटो: सनी गौतम
गांव सेलंग में घरों में भी दरारें आ रही हैं। फोटो: सनी गौतम
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बेशक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने जोशीमठ के धंसने की रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट से हटा दिया है, लेकिन स्थानीय लोग साफ तौर यह बताते हैं कि उनके घर-आंगन-खेतों में दरारें चौड़ी होने की घटना दिसंबर के अंतिम सप्ताह में बहुत तेजी से घटी।

दिलचस्प बात यह है कि डाउन टू अर्थ की टीम जोशीमठ के अलावा वहां से लगभग 17 किलोमीटर ऊपर (सड़क मार्ग से) सुभाई गांव के अलावा जोशीमठ से नीचे की ओर लगभग 215 किलोमीटर दूरी पर स्थित गांव अटाली गई। इन दोनों गांवों में भी दिसंबर के आखिरी सप्ताह में दरारें देखी गई। सुभाई गांव के लोग दरारें आने का कारण नहीं बता पा रहे हैं, लेकिन अटाली गांव के लोगों का कहना है कि उनके गांव के ठीक नीचे रेलवे द्वारा बनाई जा रही सुरंग और स्टेशन के कारण उनके घरों और खेतों में दरारें आ रही हैं।

सुभाई गांव में दरारें 

सुभाई वह गांव है, जहां पहले 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर के टूटने से आई भारी बाढ़ और फिर 17 जून 2021 को हुई अप्रत्याशित भारी बारिश  के कारण प्रभावित रैणी गांव के परिवारों को बसाया जाना था। लेकिन अब सुभाई गांव में ही दरारें आने लगी हैं। हालांकि सुभाई गांव के लोगों ने पहले ही रैणी गांव के परिवारों को अपने यहां बसाने से इंकार कर दिया था और रैणी गांव के प्रभावित परिवार अभी भी अपने उन्हीं घरों में रह रहे हैं, जिन्हें असुरक्षित घोषित कर दिया गया था।

सुभाई गांव समु्द्र तल से लगभग 2600 मीटर ऊपर है। यहां से भविष्य बद्री के लिए पैदल का रास्ता लगभग तीन किलोमीटर है। भविष्य ब्रदी मंदिर वह स्थान है, जिसके बारे में कहा जाता है कि एक समय के बाद विष्णुप्रयाग के पास पतमिला में जय और विजय के पहाड़ गिर जाएंगे, जिस कारण बद्रीनाथ धाम में जाने का मार्ग बहुत ही दुर्गम हो जायेगा जिसके परिणामस्वरूप बद्रीनाथ का फिर से प्रत्यावर्तन होगा और भविष्य बद्री में बद्रीनाथ की पूजा की जाएगी।

सुभाई गांव के सुरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लगभग एक सप्ताह पहले वह दिन में अपने परिवार के साथ खाना खा रहे थे कि उनके घर के किचन की दीवार अचानक गिर गई। वह कुछ समझ नहीं पाए। उस समय भूकंप जैसा भी कुछ महसूस नहीं किया गया, बल्कि अचानक ही यह हुआ। सुरेंद्र कहते हैं कि 7 फरवरी 2021 को जब ऋषिगंगा में बाढ़ आई थी तो उसके झटके उनके गांवों में भी महसूस किए गए थे, इसके बाद जून 2021 में हुई भारी बारिश के बाद उनके गांव के कुछ मकानों की दीवारों में दरारें आई थी, लेकिन उन्हें ठीक करा दिया गया था, परंतु अब दिसंबर 2022 के आखिरी सप्ताह में उनके गांव के अधिकांश घरों में दरारें देखी जा रही हैं।

प्रेम सिंह रावत कहते हैं कि उन्होंने दो साल पहले ही अपना मकान बनाया था, लेकिन अब उसमें भी दरारें आ रही हैं। उनके मकान में आठ दस दिन पहले से ही दरारें दिखनी शुरू हुई हैं। 

120 परिवारों वाले सुभाई में लगभग 75 प्रतिशत घरों में दरारें देखी जा रही हैं, जबकि चार-पांच घरों में काफी क्षतिग्रस्त हुए हैं। हालात यह थे कि लोगों में  डाउन टू अर्थ टीम को अपने घर की दरारें दिखाने की होड़ सी लग गई। लक्ष्मण सिंह रावत, रूप सिंह फरस्वाण, नंदन सिंह रावत, हीरा सिंह राणा, भंगुली देवी, जवाहर सिंह फरस्वाण, गब्बर सिंह रावत आदि ने बताया कि उनके घरों में दिसंबर के आखिरी सप्ताह के बाद से  दरारें दिख रही हैं। इसकी सूचना प्रशासन को भिजवाई गई है, लेकिन अब तक प्रशासन ने सर्वे तक नहीं करवाया है। ये लोग बहुत स्पष्ट नहीं हैं कि उनके घरों में दरारों का कारण क्या हो सकता है, लेकिन प्रेम सिंह रावत कहते हैं कि हो सकता है कि तपोवन में बन रहे एनटीपीसी के बांध की वजह से कुछ हलचल हो रही हो। प्रशासन को इसकी जांच करानी चाहिए।

सेलंग भी जोशीमठ की राह पर 

दिसंबर के आखिरी सप्ताह में सेलंग गांव में भी दरारें देखी गई। सेलंग वह गांव है, जहां एनटीपीसी का हाइड्रो पावर प्लांट है। एनटीपीसी ने साल 2005 में गांव की जमीन का अधिग्रहण भी किया। लोगों का कहना है कि उनके गांव के ठीक नीचे चट्टान के भीतर पूरा पावर प्लांट बना हुआ है। गांव के नरेंद्र बिष्ट इस प्लांट में काम कर चुके हैं, वह कहते हैं कि पहाड़ को अंदर से खोखला करके एनटीपीसी ने वहां सात मंजिला बिल्डिंग बना दी है। अंदर रेल लाइन बिछाई गई है, जिस पर लोको ट्रेन चलती है। उनके गांव से मात्र 100 मीटर की दूरी पर एनटीपीसी का सर्ज साफ्ट है जो कि बाहर से भी दिखता है।

वह बताते हैं कि 2007 में काम चालू हुआ था, तब इतने ज्यादा विस्फोट होते थे कि उनके गांव के लगभग सभी घर क्षतिग्रस्त हो गए। कुछ मकानों को एनटीपीसी ने रिपेयर भी किया था। बाकी लोगों ने मुआवजा के पैसों से नए मकान बनवा लिए, परंतु अब इन मकानों में भी दरारें आ गई हैं। गजेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने मुआवजे की राशि से 2006-07 में अपना घर बनाया था, लेकिन 10-15 दिन पहले उन्होंने अपने घर में दरारें देखी। सेलंग में लगभग 150 घर हैं। लगभग हर घर में दरारें देखी जा रही हैं, हालांकि कई घरों में बहुत कम हैं, लेकिन जोशीमठ में घट रही घटनाओं को देखते हुए लोग डरे हुए हैं। नरेंद्र बिष्ट कहते हैं कि एक सप्ताह पहले सब लोग इकट्टा होकर जोशीमठ गए थे और एसडीएम को ज्ञापन दिया था, लेकिन पूरे प्रशासन का ध्यान जोशीमठ पर ही है, जिसकारण प्रशासन का कोई भी अधिकारी कर्मचारी उनके यहां नहीं आया।

नरेंद्र बताते हैं कि यह सही है कि हेड रेस टनल (हेड रेस टनल) का काम टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) से किया जा रहा है, लेकिन इसके अलावा भी टनल बनाई जाती हैं, जिसका काम ब्लास्ट से ही किया जाता है। दिन में कम से कम दो बार ब्लास्ट होता है, जिसका असर उनके घरों तक में होता है।

महिला मंगल दल, सेलंग की प्रधान भवानी देवी कहती हैं कि उन्होंने स्वयं सहायता समूह से कर्ज लेकर नया मकान बनाया था, क्योंकि दरारों के कारण पुराने मकान में रहना संभव नहीं था, लेकिन अब इस घर में भी दरारें आने लगी हैं। वह कहती हैं कि जब विस्फोट होता है कि उनके घरों के शीशों तक में आवाज आती है।

श्रीकांत बिष्ट बताते हैं कि उनके पिता की मौत के बाद उनके व उनके भाइयों के ऊपर परिवार की जिम्मेवारी आ गई थी। 2016 में उन्होंने पूरे परिवार के लिए मकान बनाया था, क्योंकि उनका पुराना मकान टूट रहा था, लेकिन अब इसमें भी दरारें आ रही हैं। मकान में उन्होंने मुआवजे का पैसा लगाया था। नरेंद्र बिष्ट बताते हैं कि मुआवजे के तौर पर एनटीपीसी ने वनटाइम सेटेलमेंट किया था, जिसमें एक परिवार को 1 लाख रुपए दिए गए थे, तब नौकरी भी देने का वायदा किया गया था, लेकिन यह नौकरी ठेका कंपनियों के माध्यम से दी गई, जिनका काम पूरा होने के बाद उन्हें काम से निकाल दिया गया।

रेल परियोजना का शिकार बना अटाली

वहीं टिहरी गढ़वाल जिले के ब्यासी से सटे अटाली गांव में भी 25 दिसंबर 2022 से दरारें दिखनी शुरू हुई। गांव के जय सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 25 दिसंबर को उन्होंने सबसे पहले अपने खेतों में दरारें देखी। फिर उन्होंने ध्यान से देखा तो उनके आंगन में भी  दरारें देखी। ऐसी ही दरारें उन्होंने मकान की दीवारों पर भी देखी। इसकी सूचना उन्होंने रेलवे विकास निगम लिमिटेड के अधिकारियों व प्रशासनिक अधिकारियों को दी। दो-तीन दिन बाद जब रेलवे अधिकारी उनके घर आए तो उन्होंने आंगन में एक सीमेंटेड टेप लगाई और कहा कि अगर इसमें भी दरारें आ जाएं तो उन्हें सूचित कर दें।

एक दिन बाद उसमें भी दरारें आ गई, इसकी सूचना रेलवे विभाग को दे दी गई है। दरअसल अटाली के नीचे रेलवे की सुरंग और स्टेशन बन रहा है। जय सिंह का कहना है कि इस टनल के लिए अकसर विस्फोट किया जाता है, जिसकी वजह से उनके गांव के कई घरों में भी दरारें आ रही हैं। साथ ही खेतों में भी दरारें आ रही हैं। यहां रेलवे ने 2020 से काम शुरू किया था। यहां से गुजर रही रेल लाइन ऋषिकेश कर्णप्रयाण रेल प्रोजेक्ट का हिस्सा है।

वह बताते हैं कि रेलवे ने उनकी खेतों की जो जमीन अधिग्रहण की थी, उसका मुआवजा दे दिया। उस मुआवजे से उन्होंने घर बनाया, लेकिन अब इसी घर में दरारें आने लगी हैं। गांव के लिए पानी के तीन स्रोत थे, इनमें से एक पूरी तरह सूख गया। जबकि दो में पानी का बहाव बहुत कम रह गया है। जल संस्थान ने पीने के पानी के लिए पांच किलोमीटर दूर से पाइप लाइन बिछाई है, लेकिन वहां भी पानी सूख रहा है। इसलिए जहां पहले एक घंटा पानी आता था, वहीं अब 15 मिनट पानी आता है।

वह कहते हैं कि आने वाले दिनों में पानी के संकट की वजह से उनका गांव में रहना दूभर हो जाएगा। खेतों की दरारें इतनी चौड़ी हो गई हैं कि रेलवे ने प्लास्टिक लगाकर ढक दिया है, ताकि बारिश का पानी उन दरारों में न भर जाए, क्योंकि ऐसा हुआ तो गांव के नीचे से गुजर रही सुरंग पर भी खतरा मंडरा सकता है। गांव के गोविंद सिंह चौहान, प्रेम सिंह चौहान, बसंती देवी आदि ने भी अपने घरों की दीवारों पर दरारों की शिकायत की। जून 2021 में डाउन टू अर्थ ने लगभग एक साल पहले की अपनी रिपोर्ट बताया था कि रेलवे प्रोजेक्ट के लिए बन रही सुरंगों के कारण डोगी पट्टी के गांवों में पानी के स्रोत सूख रहे हैं और लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं।

बेशक अभी यह जांच का विषय है कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह के बाद उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में जमीन धंसने व दरारें आने की घटनाओं में तेजी आने का कारण क्या है, लेकिन लोग किसी ने किसी परियोजना को अपनी इस मुसीबत का कारण बता रहे हैं। 

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