संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने अपनी नई रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यदि आठ लाख करोड़ रुपए (9,700 करोड़ डॉलर) की अतिरिक्त धनराशि न उपलब्ध कराई गई तो बहुत से देश, 2030 तक राष्ट्रीय शैक्षिक लक्ष्यों की हासिल करने में नाकाम हो जाएंगे।
ऐसे में रिपोर्ट में वित्त की तत्काल समीक्षा की भी बात कही है। “कैन कन्ट्रीज अफोर्ड देयर नेशनल एसडीजी 4 बेंचमार्क्स?” नामक यह रिपोर्ट इस महीने यूनेस्को द्वारा जारी की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक यदि महत्वाकांक्षा कम भी कर दें तो भी आर्थिक रूप से कमजोर 79 देशों में 2030 तक शिक्षा से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हर साल 9,700 करोड़ डॉलर की दरकार है।
इस रिपोर्ट में 2030 के लिए निर्धारित सतत विकास के चौथे लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका उद्देश्य सभी के लिए बेहतर, समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित कराना है। साथ ही जीवन भर शैक्षिक अवसरों को बढ़ावा देना है। इस रिपोर्ट में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार यदि देशों को अपने शैक्षिक लक्ष्यों को हासिल करना है, तो शिक्षा क्षेत्र के लिए अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता होगी।
रिपोर्ट के मुताबिक इसके लिए अतिरिक्त संसाधनों के आबंटन के अलावा, धनराशि की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए भी रणनीतियों की जरूरत है। पता चला है कि शिक्षा के लिए धन की सबसे ज्यादा किल्लत सब-सहारा अफ्रीका में है। जो करीब 575,718 करोड़ रुपए (7,000 करोड़ डॉलर) प्रतिवर्ष है।
इस क्षेत्र में हालात इतने बुरे हैं कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। नतीजन प्राइमरी स्कूल की उम्र के करीब 20 फीसदी बच्चे और अपर सेकेंडरी स्कूल जाने योग्य आयु के करीब 60 फीसदी बच्चे स्कूलों से बाहर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार यदि डोनर अपने संकल्पों को पूरा करें और कमजोर देशों में बुनियादी शिक्षा को प्राथमिकता दें तो पैसे की इस किल्लत के करीब एक तिहाई हिस्से की भरपाई की जा सकती है।
आर्थिक रूप से कमजोर देशों में है शिक्षकों की भारी किल्लत
वहीं यूनेस्को द्वारा सितम्बर 2022 में जारी एक अन्य रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि शिक्षा में मौजूद असमानताओं के चलते अभी भी 24.4 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। देखा जाए तो इस मामले में सब सहारा अफ्रीका सबसे ऊपर हैं जहां अब थी 9.8 लाख करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से दूर हैं। यह वो क्षेत्र भी है जहां शिक्षा से दूर इन बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वहीं इस मामले में मध्य और दक्षिण एशिया दूसरे स्थान पर हैं। जहां ऐसे बच्चों की संख्या करीब साढ़े आठ करोड़ है।
इस बारे में यूनेस्को की महानिदेशिका ऑड्रे अजूले का कहना है कि इन परिणामों को देखकर लगता है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक सबके लिए बेहतर शिक्षा का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसे हासिल करने पर जोखिम मंडरा रहा है।" ऐसे में उनके अनुसार शिक्षा को अन्तरराष्ट्रीय एजेंडा में सबसे ऊपर रखने के लिए वैश्विक सक्रियता की जरूरत है।
यूनेस्को द्वारा प्रकाशित आंकड़ें सकारात्मक बदलाव को भी दर्शाते हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में स्कूली शिक्षा से वंचित लड़के और लड़की के बीच का अंतर अब दूर हो चुका है। जहां 2000 में प्राइमरी स्कूली शिक्षा की उम्र के बच्चों में यह अंतर ढाई फीसदी था वहीं सैकंडरी स्तर की आयु के बच्चों में 3.9 फीसदी रिकॉर्ड किया गया था। अब यह अंतर मिट चुका है। हालांकि इस मामले में क्षेत्रीय स्तर पर कुछ अंतर अब भी मौजूद है।
इस रिपोर्ट में जिन अन्य मुद्दों पर प्रकाश डाला है उनमें शिक्षकों का मुद्दा भी शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक निम्न-आय वाले देशों में प्री-प्राइमरी शिक्षकों की संख्या को तिगुना और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में दोगुणा करने की जरूरत है। इसी तरह निम्न-आय वाले देशों में प्राइमरी स्कूल टीचर्स की संख्या में करीब 50 फीसदी की वृद्धि करने की जरूरत है।
गौरतलब है कि निम्न और निम्न-मध्य आय वाले दो तिहाई देशों ने, 2020 में कोविड महामारी के पहले वर्ष में, सार्वजनिक शिक्षा के खर्च में कटौतियां कर दी थी। कोविड-19 महामारी से शिक्षा में जो बाधाएं पैदा हुई थी उसके प्रभाव अब तक पूरी तरह ज्ञात नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार इस लागत में बड़े पैमाने पर बच्चों के सीखने को हुए नुकसान की भरपाई भी शामिल है, जिसने पहले से मौजूद सीखने के संकट को और बढ़ा दिया है। देखा जाए तो बच्चों और किशोरों की केवल आधी आबादी आबादी ऐसे भविष्य के लिए तैयार है जहां उनकी शिक्षा पूरी होगी और पढ़ने में न्यूनतम कुशलता हासिल होगी।
एक डॉलर = 82.25 भारतीय रुपए