तेज आर्थिक विकास में न प्रकृति मायने रखती है और न ही लोग: रवि चोपड़ा

पर्यावरणविद रवि चोपड़ा मानते हैं कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी, भूगोल और सांस्कृतिक विशेषताओं के संदर्भ में तीव्र नहीं बल्कि टिकाऊ विकास होना चाहिए
Photo: Jo Chopra McGowan
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दरारों और भूधसांव के चलते त्रासदी के मुहाने पर पहुंच चुके उत्तराखंड के ऐतिहासिक नगर जोशीमठ से स्थानीय निवासियों सुरक्षित स्थानों पर भेजा रहा है। स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों ने तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना और शहर के पास शुरू की गई हेलंग बाईपास परियोजना को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि दोनों का काम फिलहाल रोक दिया गया है। 

उत्तराखंड में चारधाम परियोजना को हिमालय पर हमला करार देने वाले वयोवृद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा से डाउन टू अर्थ ने बात कर जोशीमठ की वर्तमान स्थिति पर उनकी राय जानी :

डाउन टू अर्थ : जोशीमठ आपदा पर आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या है? आपने पिछली फरवरी में कहा था कि हिमालय पर हमला जारी है। क्या जोशीमठ की आपदा उसी हमले को पुष्ट करता है?

रवि चोपड़ा: मुझे लगता है कि जोशीमठ एक बहुत बड़ी आपदा है। यह खत्म नहीं हुई है बल्कि अभी बढ़ ही रही है। मैं अब भी मानता हूं कि हिमालय पर हमला जारी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सतत और न्यायसंगत तरीके से विकास परियोजनाओं को शुरू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। अत: आप कह सकते हैं कि यह मेरे पहले के मत की पुष्टि है।

डाउन टू अर्थ: इस आपदा का बुनियादी विज्ञान क्या है? आखिर क्यों इतने बड़े स्तर पर यह त्रासदी घटित हो रही है?

रवि चोपड़ा : जोशीमठ का पहाड़ पुराने और प्राकृतिक भूस्खलन के मलबे पर स्थित है जो सैकड़ों वर्षों में स्थिर हो गया है। इसका मतलब यह है कि यह कई सौ से एक हजार मीटर गहरी विशाल, मोटी परत है जो कुछ चट्टानों पर टिकी हुई है। यह मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) के क्षेत्र में स्थित है। इसलिए इस परत को सहारा देने वाली अंदर की चट्टानें कमजोर हो गई हैं क्योंकि उन्हें ऊपर धकेल दिया गया है। ये टूट चुकी हैं और टूट चुकी सामग्री बहुत मजबूत नहीं हैं।

यह ऐसे क्षेत्र में हैं जिसे संवेदनशील ढलान के रूप में जाना जाता है। 1976 में सरकार द्वारा नियुक्त एमसी मिश्रा समिति ने पहले ही चेतावनी दी थी कि निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए, विशेष रूप से इसकी संवेदनशीलता के कारण पहाड़ी के ढलाव पर निर्माण नहीं होना चाहिए। बावजूद इसके सरकार ने विभिन्न प्रकार के विकास कार्यों को आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिसमें पहाड़ों से गुजरने वाली एक सुरंग और एक नया बाईपास हेलंग-मारवाड़ी बाईपास रोड शामिल है।

डाउन टू अर्थ : आपकी नजर में तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना को हरी झंडी क्यों दी गई थी?  

रवि चोपड़ा : सरकार तेज आर्थिक विकास चाहती है। इसके लिए ऊर्जा का त्वरित वाणिज्यिक दोहन जरूरी है। इसलिए तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना प्रारंभ की गई। सरकार टिकाऊ विकल्पों को देखने और बढ़ते जलवायु संकट के संदर्भ में अपनी सोच पर सवाल उठाने को तैयार नहीं है। यहां एक बहुत मजबूत लॉबी है जो बड़े बांध बनाने का काम कर रही है। शायद यही कारण है कि सरकार पनबिजली परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है।

जहां तक हेलंग-मारवाड़ी बाईपास का संबंध है, यह चार धाम परियोजना का हिस्सा है। एचपीसी (हाई पावर कमिटी) ने इसे बहुत ध्यान से देखा था और महसूस किया था कि अगर पर्यटक बाईपास से गुजरेंगे तो इससे शहर की अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। इसलिए, समिति ने प्रस्ताव दिया था कि उत्तर की ओर बद्रीनाथ जाने वाले यातायात को शहर से होकर जाना चाहिए ताकि स्थानीय अर्थव्यवस्था को कम से कम नुकसान हो।  बद्रीनाथ से लौटने वाला यातायात बाईपास से होकर आ सकता था। इससे ढलानों पर दबाव कम होगा।

सरकार दोतरफा यातायात के लिए 10 मीटर चौड़ी सड़क बनाना चाहती थी। एचपीसी ने सिफारिश की थी कि इसे संकरा किया जाए। उसने यह भी सुझाव दिया कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले एक सावधानीपूर्वक भूवैज्ञानिक, भूभौतिकीय और भू-तकनीकी जांच की जानी चाहिए क्योंकि सड़क की लोकेशन पहाड़ी के तल पर थी। 

जहां तक तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना का संबंध है, 2013 और 2014 में मैंने जिस समिति का नेतृत्व किया था, उसने सिफारिश की थी कि एमसीटी से ऊपर पैराग्लेशियल क्षेत्रों में कोई बांध नहीं बनाया जाना चाहिए। तपोवन-विष्णुगाढ़ परियोजना को रद्द कर देना चाहिए था और जोशीमठ के ऊपर धौलीगंगा और ऋषिगंगा पर कोई भी बांध नहीं बनाया जाना चाहिए था। अगर उन्होंने हमारी बात मानी होती तो फरवरी 2021 की और जोशीमठ आपदा को टाला जा सकता था।

डाउन टू अर्थ: उत्तराखंड में हिमालय संवेदनशील और नाजुक है। यहां कई ऐतिहासिक पर्यावरणीय आंदोलन भी हुए हैं। ऐसे में उत्तराखंड में हिमालय को ‘विकास’ के लिए क्यों खोल दिया गया है?

रवि चोपड़ा:  यह सरकार का दायित्व है कि वह न्यायसंगत विकास करे। आप देश के किसी क्षेत्र को नजरअंदाज नहीं कर सकते, खासकर तब जब वहां लोग रहते हों। लेकिन क्षेत्र की पारिस्थितिकी, भूगोल और सांस्कृतिक विशेषताओं के संदर्भ में विकास टिकाऊ होना चाहिए।

लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा है, सरकार तेजी से आर्थिक विकास पर तुली हुई है जिसमें न तो प्रकृति और न ही लोग मायने रखते हैं। 

डाउन टू अर्थ : आपने पिछले साल फरवरी में अपने पत्र में कहा था कि मानवता प्रकृति को विजय की वस्तु मानती है। इस धारणा को बदलने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

रवि चोपड़ा: इस प्रश्न का मानक उत्तर लोगों को शिक्षा के माध्यम से जागरूक और संवेदनशील बनाना है। लेकिन मुझे लगता है कि अब इसके लिए बहुत देर हो चुकी है, खासकर इस क्षेत्र में। प्रकृति ने तय कर लिया है कि अब बहुत हो गया।

यह अब और अधिक तोड़ मरोड़ को स्वीकार नहीं करेगी और खुद ही समाधान निकालेगी। आगामी आपदाएं लोगों को प्रकृति के संरक्षण के प्रति अधिक संवेदनशील होने के लिए मजबूर करेंगी।

डाउन टू अर्थ:  ये आगामी आपदाएं क्या होंगी?

रवि चोपड़ा: विकास कार्यों को रोकने की जरूरत नहीं हैं। बस उन्हें सोच-समझकर और सावधानी से करने की जरूरत है जिससे वे टिकाऊ हो सकें। लेकिन अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदाओं में तेजी आएगी, जिससे ढलानों की अस्थिरता, जंगल की आग और वन्यजीवों की हानि होगी और इसके परिणामस्वरूप लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।  

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