राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: जानें इतिहास, महत्व और देश की समृद्ध विरासत

हथकरघा क्षेत्र महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि 70 फीसदी से अधिक हथकरघा बुनकर और इससे जुड़ी श्रमिक महिलाएं हैं।
भारतीय हस्तशिल्प सदियों पुरानी हैं और हमारे देश की बोलियों और विभिन्न प्रकार के भोजन की तरह ही यह भी अलग-अलग है।
भारतीय हस्तशिल्प सदियों पुरानी हैं और हमारे देश की बोलियों और विभिन्न प्रकार के भोजन की तरह ही यह भी अलग-अलग है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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भारत के हथकरघा बुनकर देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं। राष्ट्रीय हथकरघा दिवस हर साल सात अगस्त को स्वदेशी उद्योगों और विशेष रूप से हथकरघा बुनाई का जश्न मनाने के अवसर के रूप में मनाया जाता है। यह दिन जिसे पहली बार 2015 में मनाया गया था, यह स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की याद में मनाया जाता है।

यह दिन भारत के हथकरघा बुनकरों की कड़ी मेहनत और रचनात्मकता की याद दिलाता है। इस अवसर पर, भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका का जश्न मनाया जाता है। अपनी समृद्ध हथकरघा विरासत की रक्षा और संरक्षण करना जरूरी है, साथ ही इसकी उत्कृष्ट शिल्पकला पर गर्व करना अहम है।

भारतीय हस्तशिल्प सदियों पुरानी हैं और हमारे देश की बोलियों और विभिन्न प्रकार के भोजन की तरह ही यह भी अलग-अलग है। भारत के प्रत्येक जिले में बुनाई की एक समृद्ध विरासत है जो पुरानी तकनीकों के साथ फलती-फूलती रही हैं।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्देश्य भारत के हथकरघा कामगारों को सम्मानित और प्रोत्साहित करना है। साथ ही इस क्षेत्र में शामिल हथकरघा बुनकरों में सम्मान का भाव जागृत करना है। इससे संबंधित समारोह का उद्देश्य हथकरघा क्षेत्र के महत्व और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के योगदान के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

साड़ी भारत का प्रसिद्ध पारंपरिक परिधान है, जिसे प्राचीन काल से लोग पहनते आ रहे हैं और हथकरघा से बनी साड़ियों की बात ही कुछ और होती है। दक्षिण एशियाई संस्कृति में साड़ियों का भावनात्मक महत्व बहुत अधिक है। वे एक बेशकीमती पारिवारिक विरासत के रूप में काम आ सकती हैं या विशेष अवसरों को मनाने के लिए पहनी जा सकती हैं।

पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2015 में चेन्नई में एक कार्यक्रम के दौरान मनाया गया था, जो सात अगस्त, 1905 को स्वदेशी आंदोलन के शुभारंभ का प्रतीक था। महात्मा गांधी ने खादी का इस्तेमाल करके इस आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने हाथ से काते गए कपड़े का इस्तेमाल किया और हर भारतीय से आग्रह किया कि वे अपना सूत कातें और गर्व से खादी पहनें। इस पहल के चलते, लगभग हर घर में खादी बनने लगी।

यह दिन भारतीय हथकरघा के समृद्ध इतिहास के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए अहम है, क्योंकि सिंथेटिक कपड़ों ने आधुनिक वस्त्र उद्योग पर कब्जा कर लिया है। हथकरघा उद्योग देश की शानदार सांस्कृतिक विरासत है और यह अवसर बुनकरों द्वारा बनाए गए समृद्ध रंग-बिरंगे कपड़ों का जश्न मनाने का है।

इस जानकारी को सामने लाना भी बहुत जरूरी है कि हथकरघा क्षेत्र महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि 70 फीसदी से अधिक हथकरघा बुनकर और इससे जुड़ी श्रमिक महिलाएं हैं।

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