देश का राजस्थान एक मात्र ऐसा राज्य है जहां जंगली बबूलों (जूलिफ्लोरा) ने अपनी जड़ें इतनी गहरी बना ली कि इससे किसानों की हजारों-लाखों बीघा उपजाऊ जमीनें तेजी से बंजर हो रही हैं। लेकिन अजमेर के तिलोनियां गांव से बाहर निकलते हैं तो इन जंगली बबूलों के बीच एक ऐसी जगह दिख पड़ती है, जहां अनगिनत नालियां खुदी हुई हैं और तीन फीट गहरी इन नालियों (पेंच) के बीच में छोटे-छोटे और गहरे गड्ढे भी दिख पड़ रहे हैं।
जी हां, यहां कोई भूल-भुलैया की संरचना तैयार नहीं हो रही, बल्कि भविष्य के लिए एक ऐसी जगह (चारागाह) तैयार हो रहा है जहां की उगी घास खाने पर गायों व भैसों की दूध देने की क्षमता दोगुनी तक बढ़ जाएगी। यह भूल-भुलैयानुमा संरचना वास्तव में तिलोनियां ग्राम पंचायत की ऐसी जगह तैयार करने की सोची-समझी रणनीति है, जिसके तहत 1800 औषधीय पौधे लगाने की तैयारी की जा रही है और यह काम लॉकडाउन के दौरान अप्रैल के आखिरी हफ्ते में शुरू हुई मनरेगा योजना की बदौलत संभव हुआ है।
इस संबंध में गांव के सरपंच नंदलाल भादू ने बताया कि यहां पर केवल चारागाह ही विकसित नहीं किया जाएगा, बल्कि भविष्य में आस-पास के बबूलों की सफाई कर एक जंगल तैयार किया जाएगा, ताकि इस चारागाह को और सुरक्षित बनाया जा सके। सरपंच ने दावा किया कि यदि समय पर इंद्र देवता बरस पड़ तो आगामी ढाई माह के अंदर चारागाह का पहला चरण पूरा कर लिया जाएगा। जिसके तहत घासों व औषधीय पौधों को रोपा जाएगा।
लॉकडाउन के दौरान तिलोनियां गांव के 250 लोगों (मनरेगा) ने इस चारागाह के लिए जमीन को विकसित किया है। इन ग्रामीणों में 10 फीसदी श्रमिक प्रवासी भी थे। ग्रामीणों की उम्मीद इस विकसित हो रहे चारागाह पर इस कदर बढ़ गई है कि जब-तब वे अपने सरपंच से कभी फोन से तो कभी आमने-सामने पूछ बैठते हैं कि चारागाह कब तक तैयार होगा? क्योंकि गत वर्ष गांव के दूसरे छोर पर विकसित किए गए चारागाह में केवल स्टायलो हमाटा (एक प्रकार की घास जो पशुओं के दुग्ध क्षमता को बढ़ाती है) नामक घास लगाने से जब उसकी बिक्री की गई तो ग्राम पंचायत को 25 हजार रुपए की नगद आमदनी हुई। क्योंकि यह आमदनी हर हाल में भविष्य में ग्रामीणों के हितों को सुरक्षा देने में काम आएगी। शायद यही कारण है कि अन्य गांवों के मुकाबले तिलोनियां में ग्रामीणों ने मनरेगा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और यह काम ढाई माह में ही पूरा कर दिया।
तीन हजार की आबादी वाला तिलोनियां गांव हालांकि राजस्थान का एक जाना-माना गांव है। इसीलिए इस गांव में हो रहे कार्यों पर आस-पास के तमाम ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों की नजर गढ़ी होती हैं। इसी का नतीजा है कि तिलोनियां के आस-पास की ग्राम पंचायतों के स्थानीय प्रशासन पर अच्छा काम करने का एक मानसिक दवाब हमेशा बना रहता है।
नंदलाल बताते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष में भी हमने ऐसा ही चारागाह गांव के दूसरे छोर विकसित किया है और उसमें उगी घास को बेचने पर पंचायत को आमदनी हुई है।
चारागाह के रूप में विकसित हो रही 25 बीघा यह जमीन ग्राम पंचायत की थी, लेकिन इस पर दबंगों ने कब्जा किया हुआ था। गत तीन सालों से पंचायत ने इन कब्जाधारियों के खिलाफ ना केवल कानूनी लड़ाई लड़ी बल्कि ग्रामीणों के सहयोग से पूरी जमीन को मुक्त कराने में भी सफल रही।
इस चारागाह के तकनीकी पक्षों के बारे में अजमेर जिला परिषद के असिस्टेंट इंजीनियर अमित माथुर बताते हैं कि यह सही है कि यहां पर कुछ तकनीकी पहलुओं को ग्रामीणों को समझाना आसान नहीं था, लेकिन ज्यादातर ग्रामीणों के उत्साह को देखते हुए हमने अपनी तरफ से किसी प्रकार की कोर-कसर नहीं छोड़ी और जब काम करने वाला व्यक्ति यह सोच ले कि यह उसका खुद का काम है तो हर हाल में ऐसे लोग जिस योजना से जुड़े होते हैं उसकी सफलता में कोई संदेह नहीं रह जाता।