महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत यदि काम मांगने पर किसी मजदूर को 15 दिन के भीतर काम नहीं मिलता है तो वह बेरोजगारी भत्ते का हकदार है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान 7,124 मजदूरों को बेरोजगारी भत्ते के योग्य पाया गया, जबकि केवल 258 मजदूरों को ही बेरोजगारी भत्ता दिया गया। यानी कि लगभग तीन फीसदी मजदूरों को ही बेरोजगारी भत्ता मिला।
यह आंकड़ा ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज पर बनी संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट से सामने आया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय (ग्रामीण विकास विभाग) की 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के माध्यम से ग्रामीण रोजगार - मजदूरी दरों और उससे संबंधित अन्य मामलों पर एक अंतर्दृष्टि' पर सैंतीसवीं रिपोर्ट आठ फरवरी 2024 को सदन के पटन पर रखी गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा, 2005 की धारा 7(1) के अनुसार "यदि योजना के तहत रोजगार के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को पंद्रह दिनों के भीतर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है तो वह दैनिक बेरोजगारी भत्ते का हकदार होगा”।
यह भत्ता वित्त वर्ष के दौरान पहले तीस दिनों के लिए मजदूरी दर के एक चौथाई से कम नहीं होगा और वित्त वर्ष की शेष अवधि के लिए मजदूरी दर के आधे से कम नहीं होगा। अधिनियम की धारा 7 के पैरा 6 के अनुसार राज्य सरकार बेरोजगारी भत्ते के भुगतान की प्रक्रिया निर्धारित कर सकती है। राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ते के भुगतान के लिए आवश्यक बजटीय प्रावधान भी कर सकती हैं।
स्थायी समिति की रिपोर्ट में पिछले पांच वित्त वर्षों 2018-19 से चालू वित्त वर्ष 2023-24 (21.11.2023 तक) के दौरान बेरोजगारी भत्ते के लिए पात्र लाभार्थियों और मनरेगा के तहत बेरोजगारी भत्ते का भुगतान करने वाले लाभार्थियों का राज्य/केंद्र शासित प्रदेश-वार विवरण दिया गया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि यह आंकड़े नरेगा सॉफ्ट के आधार पर दिए गए हैं।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच साल में कर्नाटक ऐसा राज्य है, जहां सबसे अधिक मजदूरों को बेरोजगारी भत्ते के योग्य पाया गया। यहां 2467 मजूदरों को बेरोजगारी भत्ते के योग्य पाया गया, लेकिन एक भी मजदूर को यह भत्ता नहीं मिला। इसके बाद राजस्थान का नंबर आता है। पांच सालों में राजस्थान में 1831 मजदूरों को बेरोजगारी भत्ते के योग्य पाया गया, लेकिन केवल 9 मजदूरों को ही यह भत्ता मिल पाया।
खास बात यह है कि कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां बेरोजगारी भत्ता देने में तत्परता देखी गई हो। बड़े राज्यों की अगर बात करें तो बिहार में 773 मजदूरों को बेरोजगारी भत्ते के योग्य पाया गया, लेकिन को भी बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया गया। पश्चिम बंगाल में 389, झारखंड में 139 में से किसी को भी भत्ता नहीं दिया गया। उत्तर प्रदेश में 598 में से 173 मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता दिया गया।
अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि राज्य सरकारें अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार बेरोजगारी भत्ता प्रदान करने के लिए उत्तरदायी हैं। राज्य सरकारों को भी बेरोजगारी भत्ते के भुगतान के लिए आवश्यक बजटीय प्रावधान करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन्हें रोजगार प्रदान नहीं किया जाता, उन्हें बेरोजगारी भत्ता प्रदान करना आवश्यक है, इसलिए समिति की सिफारिश है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग को संबंधित राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के साथ मिल कर सभी संभावित उपाय सुनिश्चित करने चाहिए। ताकि राज्य सरकारें मनरेगा लाभार्थियों को बेरोजगारी भत्ता प्रदान करने के अपने वैधानिक कर्तव्यों में विफल न हों।
क्या रहा सरकार का रुख
बेरोजगारी भत्ते का भुगतान न करने के सवाल पर ग्रामीण विकास विभाग (डीओआरडी) के सचिव संसदीय समिति को आश्वासन दिया, जिसकी पंक्तियां थी- “बेरोजगारी भत्ते का भुगतान न करने के संबंध में हम इस पर गौर करेंगे।”
देरी से मजदूरी पर मुआवजा
मनरेगा अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि यदि मस्टर रोल बंद होने की तारीख से पंद्रह दिनों के भीतर मजदूरी का भुगतान नहीं किया जाता है, तो मजदूर अवैतनिक मजदूरी के 0.05 प्रतिशत की दर से देरी के लिए मुआवजे का हकदार होगा। वो भी, मस्टर रोल बंद होने के सोलहवें दिन से अधिक विलंब होने पर रोजाना यह मुआवजा देना होगा।
संसदीय समिति ने इस पर भी ग्रामीण विकास विभाग से विवरण मांगा। समिति को 2018-19 से लेकर 21 नवंबर 2024 तक की जानकारी दी गई। बताया गया कि इस दौरान सभी राज्यों में देरी से भुगतान पर मुआवजा के लिए कुल 13 करोड़ 24 लाख 67 हजार 394 रुपए की राशि मंजूर की गई, लेकिन भुगतान 9,96,39,298 रुपए ही किया गया। यानी कि 3 करोड़ 28 लाख 28 हजार 096 रुपए अभी भी बकाया है।
इस पर केंद्र सरकार का रुख क्या रहा, ग्रामीण विकास विभाग के सचिव की टिपण्णी से समझा जा सकता है। उन्होंने संसदीय समिति को बताया कि ब्याज का भुगतान करना राज्य सरकार की जिम्मेवारी है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि मनरेगा एक मांग आधारित मजदूरी रोजगार योजना है जो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के लिए प्रत्येक वित्त वर्ष में प्रत्येक परिवार को कम से कम एक सौ दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करती है। यह आजीविका सुरक्षा प्रदान करती है, यानी जब कोई बेहतर रोजगार अवसर उपलब्ध नहीं होता है तो ग्रामीण परिवारों के लिए आजीविका के लिए वैकल्पिक विकल्प प्रदान करती है।