मनरेगा: केवल 2 फीसदी परिवारों को मिला 100 दिन का काम

केंद्र से मिली राशि का लगभग 91 फीसदी खर्च हो चुका है और अब तक औसतन एक परिवार को 38 दिन का काम मिला है
लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के काम में काफी तेजी देखी गई। फाइल फोटो: विकास चौधरी
लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के काम में काफी तेजी देखी गई। फाइल फोटो: विकास चौधरी
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कोरोना काल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी (मनरेगा) योजना को काफी महत्व मिला। राज्य सरकारों ने दावा किया कि ग्रामीणों और गांवों में लौटे प्रवासियों को मनरेगा के तहत काफी काम दिया गया, लेकिन मनरेगा के अब तक आंकड़े बताते हैं कि साल 2020-21 में इस योजना के तहत बेशक 6.26 करोड़ परिवारों को काम दिया गया, लेकिन 100 दिन का काम 13,53,994 (2.16 प्रतिशत) परिवारों को ही मिल पाया है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के पोर्टल रुरल दीक्षा के मुताबिक, औसतन 199.12 रुपए प्रति दिन प्रतिदिन दी गई। वहीं एक परिवार ने औसतन 38.24 दिन का काम दिया गया। यानी कि एक परिवार को अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक सात माह के दौरान औसतन केवल 7,000 रुपए ही मिले। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मनरेगा का यह पैसा ग्रामीणों और प्रवासियों के कितने काम आया होगा।

91 फीसदी खर्च

मनरेगा के लिए केंद्र की ओर से 26 अक्टूबर तक 68 हजार 298 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके हैं। हालांकि बजट लगभग 72,658 करोड़ रुपए का है। लेकिन जो रकम केंद्र जारी कर चुका है, उसमें से 91.55 प्रतिशत यानी 66,521 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इसमें लगभग 48,212 करोड़ रुपए मजदूरी पर खर्च किए गए हैं। शेष 25.46 फीसदी राशि मैटेरियल और स्किल्ड वेज पर खर्च की गई है और 2.76 फीसदी राशि प्रशासनिक खर्च है। इस तरह एक व्यक्ति पर 263.73 रुपए खर्च किए गए हैं। हालांकि प्रति व्यक्ति मजदूरी 199.12 रुपए दी गई है।

कृषि से जुड़े कार्यों पर ज्यादा खर्च
मनरेगा के तहत इस साल अब तक जो काम हुए हैं, उनमें सबसे अधिक कृषि एवं कृषि से जुड़े कार्यों पर खर्च किया गया है। इस मद में 71.41 प्रतिशत खर्च किया गया है। अब तक 1.29 लाख काम पूरे हो चुके हैं, जबकि 1.75 लाख काम चल रहे हैं। अब तक 17.50 करोड़ जॉब कार्ड जारी हो चुके हैं, लेकिन इनमें 8.90 करोड़ जॉब कार्ड एक्टिव हैं। एक्टिव वर्कर्स की संख्या 13.80 करोड़ है, हालांकि पिछले सात महीनों में 9 करोड़ 59 हजार वर्कर्स को ही काम दिया गया।

कम हुई मांग
लॉकडाउन के बाद मनरेगा में काम मांगने वाले लोगों की संख्या में भारी वृदि्ध हुई थी और लगभग सभी राज्य सरकारों ने ग्रामीणों और प्रवासियों को मनरेगा का काम देने का दावा किया था। जून में सबसे अधिक काम की मांग की गई। इस महीने 4.47 करोड़ लोगों ने काम मांगा था, लेकिन इसके बाद वर्क डिमांड घटी और अक्टूबर में यह लगभग आधी रह गई। अक्टूबर में 2.28 लोगों ने काम की मांग की।

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