उत्तराखंड में मनरेगा-2: लॉकडाउन में ढाई गुणा बढ़ी काम की मांग

लॉकडाउन के कारण लौटे प्रवासियों को जब मनरेगा के तहत काम करने को कहा गया तो राज्य में काम की मांग बढ़ गई
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के गांव बूंगा में मनरेगा कार्य में जुटे युवा प्रवासी। फोटो: श्रीकांत चौधरी
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के गांव बूंगा में मनरेगा कार्य में जुटे युवा प्रवासी। फोटो: श्रीकांत चौधरी
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कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने के लिए जब पूरे देश में लॉकडाउन हुआ और काम धंधे बंद हो गए तो सबसे पहले मनरेगा के काम शुरू हुए। मकसद था, शहरों से लौटे प्रवासियों और ग्रामीणों को फौरी राहत पहुंचाना। उत्तराखंड में भी मनरेगा के तहत अप्रैल के आखिरी सप्ताह में काम शुरू हो गए थे। लेकिन क्या मनरेगा उत्तराखंड के प्रवासियों को अपने गांव में ही रोक सकता है? क्या मनरेगा उत्तराखंड के ग्रामीणों के काम आ रहा है? क्या मनरेगा से उत्तराखंड में हालात बदल सकते हैं? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश डाउन टू अर्थ ने की है। इसे कड़ी-दर-कड़ी प्रकाशित किया जाएगा। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, उत्तराखंड में मनरेगा-1: प्रवासियों के लिए कितना फायदेमंद? । पढ़ें, अगली कड़ी 

लॉकडाउन के बाद राज्य में मनरेगा कार्य की मांग बढ़ी है। पिछले साल जुलाई 2019 में जहां 90,623 परिवारों ने मनरेगा का काम मांगा था, वहीं इस साल जुलाई में लगभग ढाई गुणा अधिक 2,40,221 परिवारों ने मनरेगा का काम मांगा है। इससे पहले अप्रैल में 74,951 परिवारों ने मनरेगा के काम की मांग की थी, जबकि मई में 1,95,182 परिवारों ने काम मांगा तो जून में 2,24,510 परिवारों ने काम मांगा था। जबकि 2019-20 में अप्रैल माह में काम मांगने वाले परिवारों की संख्या 1,27,912, मई में 99,651, जून में 82,107 थी।

उत्तराखंड सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक कोविड-19 लॉकडाउन शुरू होने और जुलाई के मध्य तक उत्तराखंड में 3.30 लाख प्रवासी लौटे हैं। राज्य के मनरेगा प्रभारी मोहम्मद असलम बताते हैं कि 31 जुलाई 2020 तक लगभग 78 हजार प्रवासियों ने मनरेगा के तहत रजिस्ट्रेशन कराया था। इनमें से 62 हजार प्रवासियों को काम दे दिया गया है। जबकि स्थानीय लोगों को भी यदि शामिल कर लिया जाए तो लगभग 1.15 लाख लोग मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं।

असलम बताते हैं कि उत्तराखंड सरकार ने बजट 2020-21 में मनरेगा के लिए लगभग 701 करोड़ रुपए का बजट रखा था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से अप्रैल में नए सत्र का काम शुरू नहीं हुआ। केंद्र से छूट मिलने के बाद 20 अप्रैल से काम शुरू हुए। लेकिन जब लॉकडाउन में ढील के बाद प्रवासियों ने आना शुरू किया तो एक विशेष मुहिम शुरू की गई। इस मुहिम के तहत कोरांटीन सेंटर में जाकर प्रवासियों को मनरेगा का काम करने के लिए प्रेरित किया गया।

उन्होंने कहा कि बजट के मुताबिक सरकार का लक्ष्य था कि 31 जुलाई तक 72 लाख मानव दिवस का काम कराया जाएगा, लेकिन प्रवासियों के आने के कारण लगभग 88 लाख मानव दिवस काम करवाया जा चुका है।

हालांकि कोरोनावायरस संक्रमण फैलने और लॉकडाउन के बाद प्रवासियों पर उत्तराखंड ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग की ओर से दो सर्वे किए गए। अपने इन सर्वे के आधार पर जारी रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि प्रवासी मनरेगा के तहत काम करने के लिए तैयार नहीं हैं। 

इससे उलट पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक के गांव बूंगा के प्रवासी युवा रोजाना काम कर रहे हैं। डाउन टू अर्थ ने इन युवाओं को हाथ में संबल लिए पहाड़ी पत्थर खोदते हुए पाया। हाथ में संबल लिए एमकॉम के छात्र मोहित सिंह कहते हैं कि कोविड-19 में जब सब काम बंद है तो यह काम करने में क्या बुराई है? बेशक इसमें करियर नहीं बनाया जा सकता, लेकिन कुछ दिन तक दिहाड़ी कमा कर अपना खर्च तो निकाला ही जा सकता है। 

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