लोकसभा चुनाव 2024: हिमाचल में गायब हैं आपदाओं के लिए जिम्मेवार मुद्दे

देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने घोषणापत्र में पर्यावरण को आखिरी में शामिल तो किया लेकिन भाषणों और कैंपेनिंग में मुद्दे गायब रहे
लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में आपदाओं के लिए जिम्मेवार मुद्दों पर बात नहीं हो रही है। फोटो: रोहित पराशर
लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में आपदाओं के लिए जिम्मेवार मुद्दों पर बात नहीं हो रही है। फोटो: रोहित पराशर
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हिमालय की तलहटी में बसे हिमाचल में पर्यावरण में आ रहे बदलावों का असर स्पष्ट रूप से प्राकृतिक आपदाओं के रूप में साल-दर-साल देखने को मिल रहा है। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में यह मुद्दे जोरदार ढंग से नहीं उठ रहे हैं। 

हिमाचल प्रदेश में 4 लोकसभा क्षेत्रों में आम चुनाव और 6 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहा है। प्रदेश में लगभग 55 लाख 72 हजार मतदाता 7990 पोलिंग स्टेशनों में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण 1 जून को अपने मत का प्रयोग करेंगे।

चुनावों की घोषणा को एक माह से अधिक गुजर चुका है। सभी राजनीतिक दल प्रचार प्रसार में खूब जुटे हुए हैं लेकिन अब तक पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के बारे में किसी भी प्रत्याशी ने अपना विजन और रोडमैप जनता के सामने नहीं रखा है। 

चिपको आंदोलन में सुंदरलाल बहुगुणा के सहयोगी रहे और  हिमालय नीति अभियान  के अध्यक्ष कुलभूषण उपमन्यू ने डाउन टू अर्थ से कहा कि राजनीतिक दलों ने पर्यावरण के मुद्दों को घोषणापत्रों में डालकर केवल औपचारिकता की है। पर्यावरण बहुत बड़ा मुद्दा है और यह केवल हिमालय और इससे जुड़े राज्यों के लिए नहीं है, बल्कि इससे पूरा भारत जुड़ा हुआ है।

उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षाें में जो हिमाचल, उतराखंड और जम्मू कश्मिर में प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिली हैं उससे नीति निर्माण करने वालों को सचेत हो जाना चाहिए। उपमन्यू कहते हैं कि पर्यावरण के मुद्दे में उम्मीदवार तो चुप हैं साथ ही दलों के स्टार प्रचारक भी कुछ नहीं कर रहे हैं जो चिंता का विषय है।

हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2021 में मंडी लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनावों में पर्यावरण के मुद्दे ने अहम भूमिका निभाई थी। किन्नौर क्षेत्र के युवाओं ने अपने इलाके में बांध और जल विद्युत परियोजनाओं के खिलाफ 'नो मीन्स नो' कैंपेन चलाया था और चुनाव में नोटा का बटन दबाने की अपील की थी।

माना जाता है कि इस आंदोलन की वजह से राज्य और केंद्र में सतारूढ़ दल के प्रत्याशी की 6 हजार मतों के अंतर से हार हुई थी और 12,926 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था।

हिमालय क्षेत्र खासकर किन्नौर में बड़े-बड़े पावर प्रोजेक्टस का विरोध करने वाले युवाओं ने भी पर्यावरण के मुद्दे पर राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों से इस बार एक बार फिर से सवाल करने का मन बनाया है। किन्नौर जिला में पर्यावर्णिय मुद्दों के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने वाले युवाओं ने नो मीन्स नो कैंपेन चलाया है।

नो मिन्स नो कैंपेन चलाने वाले युवाओं में से एक सुंदर सिंह नेगी का कहना है कि इस बार हम हमारे यहां आने वाले प्रत्याशियों और पार्टी के स्टार प्रचारकों से पर्यावरण से जुड़े मामलों के प्रति सवाल करेंगे और हमारे संवेदनशील इलाके में वे किस तरह पर्यावरण के साथ सौहार्द बनाते हुए विकास को गति देंगे इसके बारे में रोड़मैप के बारे में जानकारी लेंगे।

शिमला लोकसभा सीट से भाजपा के प्रत्याशी सुरेश कश्यप ने कहा कि हमारी पार्टी पर्यावरण के मुद्दे के प्रति संवेदनशील है और हमने इसे अपने घोषणापत्र में भी शामिल किया है। हमने हिमाचल में पर्यावरणीय पहलुओं के आंकलन को लेकर कई मंचों में अपनी बात पहले भी रखी और आगे भी इसे पूरजोर तरीके से रखेंगे।

गौरतलब है कि पिछले वर्ष हिमाचल में आई भारी प्राकृतिक आपदा में 10 हजार करोड़ रुपए की संपति का नुकसान हुआ था और 391 व्यक्तियों की जानें चली गई थी। वहीं इस आपदा में 12 हजार भवनों को नुकसान पहुंचने के साथ लाखों हेक्टेयर भूमि की क्षति हुई थी।

मंडी लोकसभा विधानसभा क्षेत्र के युवा मतदाता रमन कांत ने डाउन टू अर्थ से कहा कि पिछले कुछ वर्षाें में हमारे क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाएं बहुत अधिक बढ़ गई हैं। अब समय आ गया है कि पर्यावरण और विकास दोनों को साथ में मिलकर आगे बढ़ा जाए। वे कहते हैं कि इन चुनावों में पार्टियों और प्रत्याशियों के विकास के मॉडल को ध्यान में रखते हुए वोट करेंगे।

मंडी लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी और वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह कहते हैं कि हमारी पार्टी हिमाचल में आई आपदा के समय में हिमाचल के लोगों के साथ खड़ी थी और राहत के लिए हमने 4500 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज भी जारी किया था।

इसके अलावा पर्यावरण में आ रहे बदलावों के लिए हमने अपने बजट में नीड बेस्ड एनवायरमेंट असेसमेंट करवाने, गावों में पर्यावरण मित्र रखने जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं।

भले ही सभी राजनीतिक दल और प्रत्याशी पर्यावरण के मुद्दे को अहमियत देने की बात कह रहे हों, लेकिन यह उनके प्रचार, रैलियों और भाषणों में देखने को मिल नहीं रहा है।

हाल ही आपदा से उभरे हिमाचल के मतदाताओं को ध्यान में रखने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसी आपदाएं न आएं और हिमाचल में विकास का मॉडल ऐसा हो जो पर्यावरण के अनुकूल हो तो उन्हें पर्यावरणीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मतदान करना चाहिए।

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