यदि कोई व्यक्ति आज जन्म लेता है, तो उसे इतना धनवान विश्व विरासत में मिलेगा, जितना वह पहले कभी नहीं था। हालांकि वह एक अत्यधिक असमान दुनिया का बाशिंदा होगा। यह असमानता उसके बड़े होने के साथ बढ़ती जाएगी। सबसे पहले अनुभव में वह पाएगा कि दुनिया की आधी आबादी के पास सभ्य जीवन जीने के लिए आवश्यक पूंजी नहीं है। हालांकि लोगों की आय अधिक होगी, लेकिन चुनिंदा लोगों के समूह तक ही सीमित होगी।
वह अपने देश को पहले की तुलना में ज्यादा अमीर पाएगा लेकिन सरकार को गरीब। दशकों के निजीकरण की होड़ के बाद उसकी सरकार के पास बहुत कम संपत्ति होगी। इसका मतलब है कि सरकार के पास आर्थिक झटके से निपटने के लिए पर्याप्त धन या पूंजी नहीं होगी। कोविड-19 महामारी में यह देखा भी गया है। सरकारों को निजी स्रोतों से उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। वहीं दूसरी ओर, शेष 50 प्रतिशत आबादी अधिक संपन्न हो गई है। इनके पास अपने देश की तुलना में अधिक धन है। इस लिहाज से विश्व की कुल सम्पत्ति कुछ व्यक्तियों के हाथों में केंद्रित है। इसके चलते आर्थिक ताकत कुछ व्यक्तियों के हाथों में हैं।
ऐसी स्थिति 20वीं शताब्दी की शुरुआत और उससे पहले थी, जब लोकतंत्र इतना व्यापक नहीं था और पश्चिमी साम्राज्यवाद चरम पर था। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात दुनिया के आधे सबसे गरीबों से संबंधित है। उनकी आय 1820 में उसी जनसंख्या समूह के अपने पूर्वजों की आय की आधी होगी।
दूसरी ओर, दुनिया के एक प्रतिशत अमीर 1990 के बाद से उत्पन्न विश्व की एक तिहाई से अधिक संपत्ति को नियंत्रित करते हैं। 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान अरबपतियों की संख्या में अब तक की सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई। यानी यह कहावत चरितार्थ हो गई है,“अमीर और अमीर हो रहा है व गरीब और गरीब।”
विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 दुनिया में बढ़ती असमानता की इसी विशेषता को इंगित करती है। यह रिपोर्ट महामारी के एक साल बाद आई है। इस दौर में वैश्विक अर्थव्यवस्था को धक्का लगा है, जिसने कई दशकों में पहली बार विश्व को अत्यधिक गरीबी की ओर धकेल दिया है।
वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में दुनियाभर के 100 से अधिक शोधकर्ताओं ने चार वर्षों से न केवल उस गति को मापा है, जिस पर असमानता बढ़ रही है बल्कि इसकी मात्रा भी निर्धारित की है। रिपोर्ट में धन, आय, लिंग और कार्बन उत्सर्जन में असमानता को मापा गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, लोकतंत्र के उदय, आर्थिक उदारीकरण और मुक्त बाजार के साथ आय और सम्पत्ति दोनों में व्यापक असमानता रही है। वर्तमान में वही हालात हैं जो 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी साम्राज्यवाद के चरम के समय थे। कई देशों में और बदतर हाल है।
1820 और 2020 के दौरान शीर्ष 10 प्रतिशत लोग ही कुल आय का 50-60 प्रतिशत हिस्सा अर्जित करते थे जबकि निम्न आय वाले 50 फीसदी लोग सिर्फ 5 से 15 प्रतिशत ही आय अर्जित करते थे। अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक लुकास चांसल कहते हैं कि आंकड़े असमानता के स्तर के बारे में स्पष्ट हैं, असमानता लगभग 200 साल पहले के स्तर पर बनी हुई है। वह कहते हैं, “यह असमानता लोकतंत्र से ज्यादा लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हमारे द्वारा चुने गए विकल्पों पर सवाल उठाती है।”
दूसरा चिंताजनक पहलू सम्पत्ति और आय के स्तर के बीच भारी असंतुलन है। समझने की दृष्टि से, सम्पत्ति एक पूंजी या आस्तियां (भौतिक सम्पत्ति के रूप में) है जो किसी देश या व्यक्ति के पास होती है और अगली पीढ़ी को विरासत में मिलती है।
आय किसी भी गतिविधि के लिए धन का प्रवाह है। धन या सम्पत्ति का स्तर अक्सर आय के स्तर को बढ़ाने की क्षमता तय करता है। 2020 में वैश्विक संपत्ति 510 ट्रिलियन यूरो (575 ट्रिलियन डाॅलर) आसपास है, जो आय स्तर का लगभग 600 प्रतिशत है।
1990 के दशक में यह अनुपात महज 450 फीसदी था। रिपोर्ट में कहा गया है, “450 प्रतिशत धन-से-आय के अनुपात (यानी राष्ट्रीय आय के 4.5 वर्ष के बराबर) का तात्पर्य है कि एक देश 4.5 साल के लिए काम करना बंद करने का फैसला कर सकता है और पहले जैसा जीवन स्तर का आनंद ले सकता है। ऐसा करने में सारी संपत्ति की बिक्री भी शामिल है।
इस अवधि के बाद देश के पास कोई संपत्ति नहीं रह जाएगी और अपनी जरूरतों को पूरा करने और नई पूंजी जमा करने के लिए फिर से काम शुरू करना होगा। वैश्विक स्तर पर 4.5 साल से छह साल तक की वृद्धि एक बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव है। 20वीं सदी के मध्य में धन से आय अनुपात में गिरावट के बाद इसमें समकालीन पूंजीवाद में आय के प्रवाह के सापेक्ष सम्पत्ति के आकार के स्टॉक की वापसी के संकेत भी प्रदर्शित होते हैं।”
आर्थिक मॉडल से उपजी असमानता
आय और सम्पत्ति की असमानता में भारत दुनिया के तमाम देशों में एक अलग उदाहरण है। उदाहरण के लिए नीचे की 50 प्रतिशत आबादी की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 53,610 रुपए जबकि शीर्ष 10 प्रतिशत व्यक्ति इसका 20 गुना कमाते हैं। इसी तरह देश के शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय आय के पांचवें हिस्से से अधिक है जबकि निचले 50 प्रतिशत के पास केवल 13 प्रतिशत है जो हाल के दशकों में कम हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, “1980 के दशक के मध्य से विनियमन और उदारीकरण नीतियों ने दुनिया में आय और धन असमानता में सबसे अधिक वृद्धि देखी है। समृद्ध अभिजात वर्ग के साथ भारत एक गरीब और बहुत असमान देश के रूप में उभरा है।”
भारत का सम्पत्ति वितरण संकेत देता है कि असमानता तेजी से बढ़ रही है। भारत में एक परिवार के पास औसतन 9,83,010 रुपए की संपत्ति है, लेकिन नीचे के 50 प्रतिशत से अधिक की औसत संपत्ति लगभग नगण्य या 66,280 रुपए या भारतीय औसत का सिर्फ 6 प्रतिशत है।
दुनियाभर में यह आबादी का वह समूह है जो धन से वंचित है या जिनके पास विरासत में पूंजी नहीं है। अमीर देशों के मामले में भी भले ही इस समूह के पास गरीब देशों के समूह की तुलना में अधिक धन है, लेकिन अगर कोई अपने उच्च स्तर के ऋण को समायोजित करता है, तो शुद्ध सम्पत्ति का मान शून्य के करीब होगा।
रिपोर्ट यह भी चेतावनी देती है कि यह स्थिति विशेष रूप से भविष्य की आय असमानता के स्तर के लिए चिंताजनक है, क्योंकि संपत्ति के स्वामित्व में असमानता का पूंजीगत आय के माध्यम से आय असमानता पर सीधा प्रभाव पड़ता है और अप्रत्यक्ष परिणाम असमान विरासत के माध्यम से होता है।
निजी क्षेत्र में धन का ऐसा संकेंद्रण है कि वे सरकार से अधिक सम्पत्ति और आय रखते हैं। आसानी से समझने के लिए यूं कहें कि सरकारें गरीब हो गई हैं। पिछले चार दशकों में देश तो अमीर बन गए हैं जबकि उनकी सरकारों ने लगातार संपत्ति में गिरावट दर्ज की है। पिछले पांच दशकों में सभी देशों में सार्वजनिक संपत्ति या सरकारों के पास संपत्ति में गिरावट आई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “सार्वजनिक अभिकरणों के पास सम्पत्ति का हिस्सा शून्य के करीब या अमीर देशों में नकारात्मक है, जिसका अर्थ है कि धन की समग्रता निजी हाथों में है।” 2020 तक अमीर देशों में निजी संपत्ति का मूल्य 1970 के स्तर से दोगुना हो गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “वास्तव में, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय संपत्ति में पूरी तरह से निजी संपत्ति होती है, क्योंकि शुद्ध सार्वजनिक संपत्ति नकारात्मक हो गई है।” चीन और भारत जैसे देशों में जब से उन्होंने विनियमित आर्थिक मॉडल को त्याग दिया और मुक्त बाजार को अपनाया है, निजी सम्पत्ति में वृद्धि अमीर देशों की तुलना में तेज हो रही है।