जोशीमठ भूधंसाव: क्यों पदयात्रा पर निकले हैं ये दस युवा?

इस यात्रा में शामिल दस में से सात सदस्यों के परिवार पिछले दो महीने से होटल में शरणार्थी का जीवन व्यतीत कर रहे है
जोशीमठ आपदा के बारे में ध्यान आकर्षित करने के लिए जोशीमठ के युवा देहरादून तक पैदल यात्रा कर रहे हैं। फोटो: शिवानी पांडेय
जोशीमठ आपदा के बारे में ध्यान आकर्षित करने के लिए जोशीमठ के युवा देहरादून तक पैदल यात्रा कर रहे हैं। फोटो: शिवानी पांडेय
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हिमालय और जोशीमठ को बचाने का सन्देश लिए जोशीमठ से देहरादून की पैदल यात्रा पर निकले युवाओं के दल में शामिल 23 साल के ऋतिक हिंदवाल कहते है कि “जब हम यात्रा के बारे में सोच रहे थे तो हमें लगा कि 10-12 दिन अपने दोस्तों के साथ मस्ती करेंगे। लेकिन जब विस्थापन और पुनर्वास की मांग करने के लिए बैठी महिलाएं हमें विदा करते हुए हमारी माओं की तरह रोने लगी तो हमें अहसास हुआ कि हम कुछ बड़ा करने के लिए निकल रहे है। हमारी आस पास की इन महिलाओं, जो रिश्ते में हमारी चाची-ताई या बुआ लगती है, की बहुत सारी उम्मीदों का बोझ हमें महसूस हुआ।”
पिछले साल के आखरी महीनों और इस साल की शुरुआत में उत्तराखंड का अंतिम क़स्बा जोशीमठ भारत और दुनिया भर में खबरों में छाया हुआ था। जैसे जैसे दिन बीतते गये, दरारों के बढ़ने की रफ़्तार भी बढ़ने लगी और जिस गति से दरारें बढ़ रही थी उस से भी अधिक गति से जोशीमठ खबरों की दुनिया से गायब होता चला गया। ख़बरों से गायब होने का अर्थ था कि विस्थापन और पुनर्वास का सरकारी कामकाज का धीमी गति से होना।
स्थानीय लोग जनवरी महीने से लगातार जोशीमठ तहसील में धरना दे रहे है लेकिन दो महीने से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद स्थानीय लोगों की मांगों पर उचित कार्रवाई नहीं हो रही है। जोशीमठ की जमीन धसने का बड़ा कारण वैज्ञानिकों के शोधों में उत्तराखंड में हो अनियंत्रित और अवैज्ञानिक विकास परियोजनाएं है। और इन अनियंत्रित और अवैज्ञानिक विकास परियोजनाओं के कारण केवल जोशीमठ ही नहीं बल्कि पूरा हिमालयी क्षेत्र आपदाओं के मुहानों पर खड़ा है।
विनाशकारी विकास के ढांचे के खिलाफ, विश्व धरोहर हिमालय और जोशीमठ के पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर तथा जोशीमठ की जनता के लिए सुरक्षित वास स्थान और नए जोशीमठ के निर्माण की मांग के लिए एक मार्च से जोशीमठ क्षेत्र के दस युवाओं का एक दल जोशीमठ से देहरादून की 290 किलोमीटर लम्बी पैदल यात्रा पर निकला है। ये यात्रा हर दिन 25 से 30 की यात्रा तय करके 14 मार्च को देहरादून पहुंचेगी।
इस दल में सचिन रावत, आयुष डिमरी, मयंक भुंजवान, ऋतिक राणा, ऋतिक हिंदवाल, अभय राणा, कुणाल सिंह, तुषार धीमान, अमन भौटीयाल शामिल है। यात्रा के दौरान दल के सदस्य जोशीमठ आपदा और जल विद्युत परियोजनाओं से होने वाले विनाश के बारे में लोगों को जागरूक करते हुए अपनी यात्रा का पर्चा बांटते हुए चल रहे हैं। 
इस यात्रा का सबसे पहला ख्याल 20 वर्षीय पॉलिटेक्निक के छात्र सचिन रावत के मन में आया। सचिन कहते है, "जब जोशीमठ के बारे में वैज्ञानिकों की रिपोर्ट आई तो मैंने इस तरह की और घटनाओं के बारे में पढ़ना शुरू किया। तब पता चला कि जोशीमठ एकमात्र जगह नहीं है जो इस तरह की आपदा को झेल रहा है। बल्कि हमारा पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश और अन्य हिमालयी राज्य भी इस तरह की अनियंत्रित और अवैज्ञानिक विकास परियोजनाओं का नुकसान झेल रहे है।"
जोशीमठ आपदा ने सचिन के मन में कई सवाल खड़े किए। सचिन कहते हैं, " मुझे लग रहा था कि जोशीमठ की घटना के बाद सरकार कुछ नए प्रावधान करेगी, लेकिन मैंने देखा कि उत्तराखंड में ही रेलवे परियोजना का काम बिना किसी रुकावट के जारी था। मैंने इस बारे में अपने दोस्त आयुष डिमरी से बात की, तब दोनों ने निर्णय लिया कि अपनी इस पीड़ा को और लोगों तक पहुंचाने के लिए बाहर निकलना पड़ेगा और लोगों को हिमालयी क्षेत्रों में चालू विनाशकारी परियोजनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। इस सोच के साथ हमने इस यात्रा का सुझाव सोशल मीडिया पर डाला, जहां लोगों ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दी। जोशीमठ के अन्य युवाओं ने भी हमारे साथ जुड़ने की इच्छा जताई। यही से यह अभियान शुरू हुआ।"
सचिन रावत और आयुष डिमरी के इस सुझाव को जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने भी स्वीकार किया। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती कहते है कि “एक ऐतिहासिक और धार्मिक नगर का विकास परियोजनाओं से जमींदोज होने का खतरा स्थानीय लोग कई महीनों पहले भांप चुके थे, कई बार प्रदर्शन किए, लेकिन इसके बावजूद सरकारी मशीनरी को हरकत में आने में देर लग गयी। और अब जब पूरी दुनिया हमारी बात स्वीकार कर चुकी है, तब भी विस्थापन और पुनर्वास का काम कछुए की चाल में चल रहा है। हम जोशीमठ आपदा की बात जन-जन तक पहुंचाने के लिए किये जा रहे हर प्रयास को सहयोग दे रहे हैं। हम चाहते हैं कि जो आपदा जोशीमठ के बीस हजार लोग झेल रहे है वो हमारे राज्य और देश के लोग न झेले। इन युवाओं की पैदल यात्रा लोगों को जागरूक करने का ही प्रयास है।”
इस यात्रा में शामिल दस में से सात सदस्यों के परिवार पिछले दो महीने से होटल में शरणार्थी का जीवन व्यतीत कर रहे है। जहाँ कई तरह की असुविधाओं और भविष्य में जीवन का प्रश्न हर समय खड़ा है। 
ग्यारहवीं की परीक्षा में पास होकर बारहवीं में जाने वाले अठारह साल के अभिनीत कहते कि पूरा परिवार दो महीने से होटल में है। वहाँ पढाई का कोई माहौल नहीं बन पाया है। क्योंकि अभी घर वालों के सामने हमारी पढ़ाई से ज्यादा जरुरी हमारे जीवन और सुरक्षित छत की चिंता है।”
जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी और औली जैसे धार्मिक और पर्यटक स्थलों की यात्रा का अंतिम पड़ाव है। इस क्षेत्र के अधिकतर युवा पर्यटन से जुड़े रोजगार में शामिल होते है। जोशीमठ इनके लिए केवल घर नहीं बल्कि रोजगार का स्रोत भी है।
लेकिन इस यात्रा के बाद कई लोगों के सामने आजीविका का संकट आ गया है या भविष्य में आने वाला है। यात्रा में शामिल ज्यादातर युवा बारहवीं के बाद ही पर्यटन से आजीविका कमाते है। इस आपदा ने इन युवाओं के जीवन की भविष्य की संभावनाओं पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
यात्रा में शामिल स्नातक द्वितीय वर्ष में पढने वाले अठारह वर्षीय आयुष डिमरी कहते है कि “उत्तराखंड के युवा आज सरकार की अनियोजित अनियंत्रित विकास परियोजनाओं के कारण सड़कों पर है। न ही सरकार युवाओं को रोजगार देने में सक्षम है और न ही हमारे रोजगार के स्रोत व सांस्कृतिक धार्मिक नगरों की सुरक्षा के लिए कोई कदम उठा रही है। अभी जोशीमठ की स्थिति खराब है लेकिन आने वाले दिनों में पूरे उत्तराखंड का हाल जोशीमठ जैसा ही होने वाला है इसलिए हम सभी को समय पर जागरूक होने की जरूरत है”।
यात्रा का मुख्य उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है। इसलिए यात्रा में शामिल युवा यात्रा पड़ावों में आने वाले मुख्य शहरों से गुजरते हुए आम लोगों से भी मिल रहे है। यात्रा को उन लोगों का समर्थन मिल रहा है जो विकास परियोजनाओं के कारण प्रभावित हुए है। श्रीनगर में इस यात्रा को ऋषिकेश - कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना से प्रभावितों का समर्थन मिला। ये प्रभावित स्वयं सरकार को कई बार अवगत करवा चुके है लेकिन दो साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी न ही उचित मुआवजा मिला है और न रेलवे का काम प्रभावित हुआ।
ऋषिकेश - कर्णप्रयाग रेलवे लाइन परियोजना 327 किलोमीटर की रेल लाइन में लगभग 75 हजार करोड़ रूपए की लागत आने की उम्मीद है। इस परियोजना में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक कुल 125 किमी की रेल लाइन में 16 पुल और लगभग 107 किमी लम्बाई की 17 सुरंग बनाई जानी है, जिसमें देवप्रयाग में बनाई जाने वाली सुरंग भारत की सब से लम्बी सुरंग होगी जिसकी लम्बाई लगभग 15 किमी होगी। 
श्रीनगर के पास स्वीत गांव के अनिल नौटियाल बताते है कि "जोशीमठ आपदा में लोगों के घरों में आने वाली दरारों के लिए एनटीपीसी की जलविद्युत परियोजना की सुरंग है। एक पूरा शहर बर्बाद होने की कगार पर है लेकिन रेलवे लाइन ने सुरंग बनाने का काम लगातार जारी है। हमारे घरों में सुरंग बनाने का काम शुरू होने के बाद से लगातार दरारें आ रही है। विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय विधायक ने अपने चुनावी भाषण में कहा था कि चुनाव के बाद वे हमें मुआवजे की मांग को पूर्ण करेंगे।"
नौटियाल कहते हैं, "विधायक फिर से चुनाव जीत कर कैबिनेट मंत्री बन गए है लेकिन हमारी समस्याएं जस की तस बनी हुई है। दो साल से हमारी मांगों पर कोई कार्यवाही न होने पर फरवरी महीने में हम पौड़ी के जिलाधिकारी आशीष चौहान से मिलने गए थे उन्होंने हमें कहा कि अमेरिका में जिस कंपनी ने ट्विन टावर को गिराया वो कंपनी सर्वे के लिए आयेगी तब हम मुआवजे की प्रक्रिया पर काम करेंगे। हमें नहीं मालूम की वो मजाक कर रहे थे या ये सच है लेकिन समय के साथ हमारे घरों की दरारें बढ़ रही है जो हमारे डर भी बढ़ा रही है। अभी जोशीमठ के साथ खड़े होने की जरूरत है तभी पहाड़ खोदने वाली इन परियोजनाओं के प्रति लोग जागरूक हो पाएंगे, और ये पहाड़ों के विनाश करने का सिलसिला खत्म होगा"।

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