जोशीमठ भूधंसाव: अपने टूटे हुए घरों को लौटे लोग, 16 माह बाद भी नहीं बनी पुनर्वास नीति

लगभग 16 माह बाद भी सरकार जोशीमठ के लिए न तो पुनर्वास नीति बना पाई है और ना ही जोशीमठ के स्थिरीकरण की योजना पर काम शुरू हुआ है
जोशीमठ भूधंंसाव की वजह से जिन लोगों ने अपना घर छोड़ा था, वे लोग मजबूरन अपने टूटे घरों में लौट आए हैं। फोटो: प्रभात कुमार
जोशीमठ भूधंंसाव की वजह से जिन लोगों ने अपना घर छोड़ा था, वे लोग मजबूरन अपने टूटे घरों में लौट आए हैं। फोटो: प्रभात कुमार
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हरीश लाल अपने पूरे परिवार के साथ फिर से उसी पुश्तैनी घर में लौट आए हैं, जहां से उन्हें मजबूरन 3 जनवरी 2023 को जाना पड़ा था, क्योंकि उनका पूरा घर अचानक रात को धंसने लगा था। पहले उन्हें पास के एक होटल में ठहराया गया था, लेकिन एक महीने बाद उन्हें होटल से जाने को कहा तो वह लगभग 50 किलोमीटर दूर के शहर में किराए पर रहने लगे। बेटी जवान थी, रिश्ता तय हुआ तो पराए शहर और किराए के घर में शादी करने की हिम्मत नहीं हुई, इसलिए फिर से अपने पुश्तैनी घर में लौट आए, लेकिन तब से उनका परिवार हरदम सहमा रहता है। 

हरीश लाल का परिवार उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में रहने वाले उन परिवारों में शामिल है, जिनके घरों में दो-तीन जनवरी 2023 को दरारें आ गई थी। 

हरीश बताते हैं कि यही पुश्तैनी घर उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया था। ऊपर पूरा परिवार रहता था, जबकि नीचे चार दुकानें थी। दो दुकानों पर दोनों बेटे बैठते थे। जबकि दो दुकानें किराए पर चल रही थी। मेन ब्रदीनाथ रोड पर दुकानें होने के कारण अच्छी खासी आजीविका चल रही थी, यात्रा सीजन में यात्रियों के ठहरने का भी इंतजाम करते थे। वह खुद राजमिस्त्री का काम करते थे। 

लेकिन सवा साल से दुकानें खाली पड़ी हैं। दीवारों पर गहरी-गहरी दरारें आ गई हैं। उनका काम पूरी तरह ठप पड़ा है। दोनों बेटे और वह खुद बेरोजगार हैं। फिलहाल आमदनी का जरिया कोई नहीं है। 

उत्तराखंड का चमोली जिले का शहर जोशीमठ जनवरी 2023 में तब सुर्खियों में आया था, जब यहां के भूधंसाव होने लगा और 800 से अधिक भवनों के फर्श और दीवारों पर दरारें आ गई। प्रशासन ने तुरत-फुरत में कई कदम उठाए, जिनमें 181 भवन तो पूरी तरह खाली करा दिए गए, जबकि 800 से अधिक घरों में दरारें दिखने के कारण लाल निशान लगा दिए गए। उस समय कई परिवारों को प्रशासन की ओर से निजी होटलों, गेस्ट हाउसों के अलावा अलग-अलग जगह ठहराया गया था। लेकिन कुछ निजी होटल मालिकों ने अपने कमरे खाली करा लिए, जिस कारण कई लोग किराए के मकान पर चले गए तो कई लोग वापस अपने असुरक्षित घरों में लौट आए। 

मुआवजा मिला लेकिन रोजगार नहीं 

हालात यह हैं कि लगभग 16 माह भी स्थानीय लोगों के पुनर्वास की कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है। हालांकि लगभग 200 लोगों को उनके टूटे हुए भवनों के बदले मुआवजा राशि मिल गई है, लेकिन अभी भी उन्हें जमीन की कीमत नहीं दी गई है। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती बताते हैं कि लोगों के लगातार संघर्ष के बाद प्रशासन ने केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) की दर से भवनों की मुआवजा राशि तो तय कर दी है, लेकिन जिस जमीन पर ये भवन बने हैं, उस जमीन की कीमत तय नहीं की है। सती के मुताबिक भूधंसाव की वजह से अब तक  1200 से अधिक भवन और 1400 परिवार प्रभावित हो चुके हैं, लेकिन मुआवजा अभी 200 से कम परिवारों को मिला है। 

हरीश लाल को भी 37.72 लाख रुपए मुआवजा राशि मिली है। वह कहते हैं कि पहले जब मुआवजा देने की बात कही गई थी तब प्रशासन के अधिकारी ने बताया था कि उन्हें 58.30 लाख रुपए मिलेंगे, लेकिन मुआवजा 37.72 लाख रुपए ही मिला। जब उन्होंने अधिकारियों से पूछा कि मुआवजा कम हो गया तो उन्हें ठोस जवाब नहीं दिया गया। हरीश कहते हैं कि मकान बनाने के लिए उन्होंने लोन लिया था, मुआवजे की राशि से सबसे पहले बैंक लोन चुकाया। फिर बेटी की शादी की। अब इतना भी पैसा नहीं बचा है कि कोई रोजगार शुरू कर सकूं। वह कहते हैं कि उनकी जमीन मेन बद्रीनाथ रोड पर होने के कारण इसकी कीमत बहुत ज्यादा है, लेकिन प्रशासन जमीन की कीमत तक तय नहीं कर पा रहा है।  

डाउन टू अर्थ की टीम अप्रैल 2024 के पहले सप्ताह  जब जोशीमठ पहुंची तो शहर की सड़कें लगभग सूनी पड़ी थी। वहां के दुकानदार ने बताया कि इन दिनों जोशीमठ में पर्यटकों की चहल-पहल बढ़ जाती थी, लेकिन पिछले साल से यहां पर्यटकों ने आना बहुत कम कर दिया है, इसका असर सीधे-सीधे उनके रोजगार पर पड़ा है। 

सिंहधार के ही प्रकाश भोटियाल ने जैसे-तैसे पाई-पाई जोड़कर दो मंजिला मकान बनाया था। वह  नीचे के कमरे में सिलाई का काम करते थे, ऊपर पेइंग गेस्ट हाउस चलाते थे। यही घर उनकी आमदनी का जरिया थी। जब मकानों में दरारें आई तो वह भी परिवार के साथ प्रशासन के बताए कमरे में रहने लगे, लेकिन एक माह बाद उनसे कमरा खाली करा लिया गया तो वह मजबूरन अपने उन दो कमरों में रहने आ गए, जिनमें दरारें तो थी, लेकिन रहने की स्थिति में थे। प्रशासन के लोग गाहे-बगाहे आकर चेतावनी देते हैं कि घर खाली कर दें, लेकिन जाएं कहां, इसका जवाब प्रशासन के अधिकारी नहीं देते। 

प्रकाश कहते है कि हम अपने दरार वाले घरों में रह तो रहे हैं, लेकिन जब भी बारिश होती है, चाहे तो रात हो दिन हम अपने पूरे परिवार के साथ बाहर निकल आते हैं। उन्हें भी मुआवजा तो मिला है, लेकिन इस मुआवजा राशि का करें क्या, यह वह नहीं समझ पा रहे हैं, क्योंकि इस राशि से वह न तो रहने को ढंग का मकान बना पाएंगे और ना ही अपने रोजगार का साधन खड़ा कर पाएंगे। 

विस्थापन पर भी फैसला नहीं

जोशीमठ के विस्थापन को लेकर प्रशासन कई प्रस्तावों पर विचार कर चुका है, लेकिन कोई ठोस पहल अब तक नहीं हो पाई है। कुछ समय पहले प्रशासन ने लोगों के समक्ष प्रस्ताव रखा कि जिन घर असुरक्षित हैं, उन्हें जोशीमठ से लगभग 100 किलोमीटर दूर गोचर में बसाया जा सकता है। लेकिन लोगों ने प्रशासन का यह प्रस्ताव खारित कर दिया गया। लोगों का कहना है कि गोचर में वे अपना रोजगार नहीं खड़ा कर पाएंगे। 

सती कहते हैं कि लगभग 16 महीने बाद भी प्रशासन पुनर्वास नीति तय नहीं कर पाया है, बल्कि सरकार अपने एक आदेश (जीओ) जारी कर मुआवजा नीति की घोषणा कर दी, जिसमें भी यह तय नहीं किया गया कि जमीन का पैसा किस दर से दिया जाएगा। मुआवजा देने की गति भी धीमी है, अभी केवल 200 परिवारों को ही मुआवजा दिया गया है। 

अस्थायी टिन शेडों में सुविधा नहीं

जिन घरों में रहने की बिल्कुल भी संभावना नहीं है, वे परिवार अभी भी जहां-तहां रह रहे हैं। कुछ परिवार सरकार द्वारा दिए गए अस्थायी जगहों पर रह रहे हैं, लेकिन उन्हें भी प्रशासनिक कर्मचारी परेशान कर रहे हैं। लक्ष्मी अपने परिवार के साथ सिंहधार में रहती थी, लेकिन भूधंसाव की वजह से उनका मकान लगभग ढह गया। प्रशासन की ओर से उन्हें टिन शेड में रहने को कहा गया। जहां बिजली-पानी का भी इंतजाम किया गया था, लेकिन कुछ दिन पहले उनकी बिजली काट दी गई। बिजली काटने का कारण भी नहीं बताया गया।

लक्ष्मी को अपने मकान के बदले 13 लाख रुपए का मुआवजा मिला है, लेकिन इस पैसे से वह जोशीमठ या आसपास कहीं भी मकान नहीं खरीद सकती हैं, इसलिए इन टिन शेड में ही रह रही हैं। उनकी तरह छह परिवार भी यहीं रह रहे हैं, लेकिन बिजली कटने की वजह से उन्हें अपनी रात अंधेरे में बितानी पड़ रही है। 

लक्ष्मी कहती हैं कि प्रशासन कभी पानी काट देता है तो कभी बिजली। प्रशासन चाहता है कि हम यह जगह खाली कर दें, लेकिन प्रशासन यह बताने को तैयार नहीं है कि हम आखिर कहां जाएं?

धंसाव रोकने का इंतजाम नहीं  

एक ओर जहां प्रशासन ने जहां लोगों के पुनर्वास का इंतजाम नहीं किया है, वहीं भूधंसाव रोकने का भी कोई ठोस इंतजाम नहीं किया गया है। सती कहते हैं कि केंद्र सरकार ने जोशीमठ आपदा के लिए 1,400 करोड़ रुपए जारी किए हैं, इनमें 1,000 करोड़ रुपए स्थिरीकरण पर खर्च होने हैं। इसमें सुरक्षा दीवारें बनाने का प्रस्ताव है। साथ ही पानी निकासी के लिए सीवेज लाइनें, नालियां आदि बननी है, लेकिन इस दिशा में कोई काम शुरू नहीं हुआ है। 

भूधंसाव अभी पूरी तरह से थमा नहीं है। कई जगह दरारें चौड़ी हो रही हैं तो कई नई जगह दरारें दिख रही हैं। डाउन टू अर्थ की टीम ने पाया कि मनोहर बाग के एक घर के आंगन में हाल ही दरारें आई हैं और सीढ़ियां तो पूरी तरह ढह गई हैं। यह घर क्षेत्र के ब्लॉक प्रमुख रहे कामरेड गोविंद सिंह रावत का है। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी यहां रहती हैें, जो इन दिनों अपने बेटे के पास दिल्ली गई हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रशासन यहां एक पाइप लाइन बिछा रहा था, तब ही सीढ़ी ढह गई और आंगन में दरारें आ गई हैं। सती कहते हैं कि जोशीमठ के संवेदनशील इलाकों में थोड़ा बहुत भी जोर पड़ने से दरारें पड़ जा रही हैं। 

हालात ये हैं कि जोशीमठ आपदा को 16 माह बाद बीतने के बाद भी स्थानीय लोग डरे-सहमे रहते हैं। बरसात के दिनों में तो शहरवासियों की सांसें थमी रहती हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई तत्परता देखने को नहीं मिल रही है। 

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