भारत ने डब्ल्यूटीओ के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में स्पष्ट कर दिया है कि वो मछुआरों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। गौरतलब है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दूसरे दिन मत्स्य पालन को दी जा रही सब्सिडी पर एक वार्ता सत्र का आयोजन किया गया था।
वार्ता में, भारत ने अपनी दृढ़ धारणा को एक बार फिर से दोहराया है कि मत्स्य पालन के साथ पर्यावरण को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए और इसके प्रति जवाबदेही होनी चाहिए। भारत का कहना है कि यह धारणा देश में मछुआरों के विविध समुदायों की परंपराओं और लोकाचार में गहराई से निहित है।
ऐसे में मछली पकड़ने की सब्सिडी पर किसी भी व्यापक समझौते में उन मछली पकड़ने वाले समुदायों के हितों और कल्याण को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, जो अपनी जीविका के लिए समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं। बैठक के दौरान भारत ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय मछुआरे मछली पकड़ने के दौरान पहले ही पर्यावरण का ख्याल रखते हैं और इस नाम पर उनकी रोजी-रोटी पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।
भारत का कहना है कि भारतीय मछुआरों की तुलंना विकसित देशो में मछली का कारोबार करने वाली कॉरपोरेट कंपनियों से नहीं की जानी चाहिए। भारत में मछुआरे अपनी जीविका और भरणपोषण के लिए मछली पकड़ने का काम करते हैं। ऐसे में यदि मत्स्य पालन पर सब्सिडी को लेकर कोई भी नियम बनता है तो उसके लिए एक व्यापक नीति बनाई जानी चाहिए।
भारत ने इस बात पर भी जोर दिया है कि अतीत में मत्स्य पालन क्षेत्र को दी गई सब्सिडी के चलते समुद्री संसाधनों का बहुत ज्यादा शोषण हुआ है। लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिए कि विकासशील देशों और छोटी अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह सब्सिडी बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि वे अपने मत्स्य उद्योग को बेहतर बना सकें और अपने मछुआरों की खाद्य सुरक्षा और जीविका की रक्षा कर सकें।
यह वार्ता स्थिरता की अवधारणा से जुड़ी है ऐसे में मत्स्य पालन को दी जाने वाली सब्सिडी पर किसी भी व्यापक समझौते में इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि अलग-अलग देशों की अपनी अलग-अलग जिम्मेवारियां और क्षमताएं हैं। ऐसे में इसे सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों एवं संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों का पालन करते हुए तैयार किया जाना चाहिए।
इसमें विशेष और विभेदक उपचार (एस एंड डीटी) के प्रावधानों को भी उचित रूप से शामिल किया जाना चाहिए, जैसा कि सभी डब्ल्यूटीओ समझौतों के लिए होता है। बता दें कि विश्व व्यापार संगठन के समझौतों में ऐसे प्रावधान शामिल हैं, जो विकासशील देशों को डब्ल्यूटीओ ढांचे के तहत विशेष अधिकार देते हैं। इन अधिकारों को "विशेष और विभेदक उपचार" प्रावधान कहा जाता है।
पर्यावरण के लिहाज से सही नहीं बड़े पैमाने पर होता दोहन
इसके साथ ही स्थिरता के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने और इस तरह के समझौते को प्रभावी और सशक्त बनाने के लिए ऐसी सब्सिडी देना बंद करना होगा, जो विशेष रूप से मछली पकड़ने के ईंधन के लिए नहीं है।
साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सरकारों के बीच सौदों के माध्यम से मछली पकड़ने के अधिकार बड़ी कंपनियों को हस्तांतरित न हों। साथ ही मछली पकड़ने के क्षेत्रों से दूर मौजूद देशों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी को नियंत्रित करना भी बेहद महत्वपूर्ण है, जैसा कि दस्तावेज आरडी/टीएन/आरएल/175 में भारत द्वारा सुझाया गया है।
भारत ने सभी सदस्य देशों से अपने जल क्षेत्र (ईईजेड) से परे मछली पकड़ने या सम्बंधित गतिविधियां चलाने वाले देशों से कम से कम 25 वर्षों तक सब्सिडी पर रोक लगाने के आग्रह किया है। बता दें कि समुद्र तट से 200 समुद्री मील से अधिक दूरी पर मछली पकड़ने को सुदूर क्षेत्र कहा जाता है।
भारत ने सदस्य देशों को यह भी यदि दिलाया है कि बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने को दी जा रही सब्सिडी, पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा सकती है। इतना ही नहीं इसकी वजह से समुद्री संसाधनों के उचित प्रबंधन पर भी असर पड़ता है।
ऐसे में भारत ने सदस्य देशों से कहा है कि उन्हें बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने और समुद्री संसाधनों के प्रबंधन पर सब्सिडी के नुकसानदायक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
हालांकि साथ ही भारत का यह भी कहना है कि विकासशील देशों और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं के लिए अपने मत्स्य क्षेत्र को विकसित करने और विविधता लाने के साथ-साथ मछुआरों की खाद्य सुरक्षा और जीविका की रक्षा के लिए सब्सिडी बेहद जरूरी है।
भारत का आगे कहना है कि बहुत ज्यादा और क्षमता से अधिक मछली पकड़ने (ओसीओएफ) को सम्बोधित करने के मौजूदा दृष्टिकोण में गहरी खामियां हैं। भारत के मुताबिक चूंकि सदस्य देश जरूरत से ज्यादा पकड़ी जा रही मछलियों के मुद्दे से निपटने के लिए एक सकारात्मक दृढ़ संकल्प दृष्टिकोण का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं, ऐसे में सदस्यों को इस पद्धति का उपयोग करना चाहिए।
इसके साथ ही भारत ने इस बात पर भी गौर करने को कहा है कि हर साल इस सब्सिडी के रूप में कितना पैदा दिया जा रहा है, जिसकी पूरी तस्वीर सामने नहीं आती है।
हमें इस बात पर भी विचार करने की जरूरत है कि प्रत्येक मछुआरे को कितनी सब्सिडी मिल रही है। साथ ही, किस देश का मछली पकड़ने का क्षेत्र (ईईजेड) कितना बड़ा है, उसकी तटरेखा कितनी लम्बी है और छोटे मछुआरों की आबादी कितनी है।
भारत ने दोहराया है कि सदस्य देशों द्वारा यूएनसीएलओएस के तहत उनके स्वयं के जल क्षेत्र (ईईजेड) में मत्स्य पालन के स्थाई प्रबंधन के लिए एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।
बता दें कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का यह 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 26 फरवरी 2024 से अबू धाबी में शुरू हो चुका है। इस सम्मेलन के दौरान भारत ने कृषि पर हुई वार्ता में पब्लिक स्टॉकहोल्डिंग (पीएसएच) के स्थाई समाधान को अंतिम रूप देने की वकालत की थी। गौरतलब है कि यह मामला पिछले 11 वर्षों से अटका है।