अंतत: अमीर देशों में बढ़ते गरीब बच्चे बने चिंता का सबब

गरीबी उन्मूलन नीतियों और कार्यक्रमों को बच्चों पर केंद्रित करने की जरूरत है जिससे उनकी भविष्य की बुनियाद मजबूत हो सके
इलेस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद
इलेस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद
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ऐसे समय में जब दुनिया अप्रत्याशित संपन्नता से गुजर रही है, तब दुनिया में वयस्कों से अधिक बच्चे गरीब हैं। यह गरीबी से दूरी का संकेत कतई नहीं है।

सितंबर 2023 में विश्व बैंक और यूनिसेफ ने अनुमान लगाया कि दुनिया में चरम गरीबी से जूझ रहा हर दूसरा शख्स बच्चा है जो 2.15 डॉलर प्रतिदिन से कम पर अपना जीवन गुजार रहा है। इसका आशय यह है कि 2022 में 33.3 करोड़ बच्चे (18 वर्ष से कम आयु) चरम गरीबी में पल रहे थे। इस अनुमान के मुताबिक, दुनिया में वयस्कों से अधिक बच्चों में गरीबी है।

आय और संपत्ति की असमानता पर वैश्विक स्तर पर अक्सर बात होती है, लेकिन बच्चों पर इनके प्रभाव को स्पष्ट करने वाले अधिक अध्ययन नहीं हैं। एक गरीब बच्चा आमतौर पर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति की संकेतक होता है। इस लिहाज से देखें तो यह आंकड़ा समग्र गरीबी का भी संकेत देता है।

लेकिन असमानता भारी इस दुनिया में एक वाजिब सवाल यह है कि क्या एक गरीब बच्चा अल्पावधि में बेहतर जीवन जीने के लिए गरीबी से बचने में समक्ष है? चरम गरीबी में जीने वाले बच्चे का दीर्घकाल में क्या भविष्य होगा?

अगर बचपन में गरीबी की परिस्थितियां बरकरार रहती हैं तो क्या ये बच्चे हमेशा गरीब बने रहेंगे? इसके अलावा, चरम गरीबी में पलने वाले बच्चों पर किस प्रकार का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ेगा?

विश्व बैंक और यूनिसेफ के अनुमानों के मुताबिक, बच्चों में चरम गरीबी कम विकसित व गरीब देशों में अधिक है, खासकर अफ्रीकी और एशियाई देशों में। 2022 में उप सहारा अफ्रीका में विश्व की 75 प्रतिशत चरम बाल गरीबों की आबादी थी।

अत्यधिक बाल गरीबी वाले देशों के आंकड़ों से यह चिंताजनक प्रवृत्ति पता चलती है कि शानदार आर्थिक विकास के बाद जब वयस्कों की गरीबी में कमी आती है, तब भी बाल गरीबी दर में उस अनुपात में कमी नहीं आ पाती।

उदाहरण के लिए निम्न मध्यम आय वर्गीय देश भारत में आकर्षक आर्थिक विकास दर है। विश्व बैंक और यूनिसेफ के मूल्यांकन के अनुसार, यहां पिछले छह वर्षों (2017-22) में चरम बाल गरीबी में महज 0.2 प्रतिशत की ही कमी आई है।

हालिया आंकड़े बताते हैं कि बाल गरीबी दुनिया भर में विकास के समक्ष चुनौती है। दिसंबर में जारी हुई यूनिसेफ की रिपोर्ट “चाइल्ड पॉवर्टी इन मिड्स्ट ऑफ वेल्थ” बताती है कि बाल गरीबी उच्च आय और यूरोपीय यूनियन के उच्च मध्यम आय वर्ग के देशों एवं आर्थिक सहयोग व विकास संगठन (ओईसीडी) में व्यापक स्तर पर फैली हुई है।

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे पता चलता है कि इन देशों की नीतियां बाल गरीबी उन्मूलन के संदर्भ में कारगर नहीं रही हैं। इन देशों में करीब 6.9 करोड़ बच्चे चरम गरीबी में जी रहे हैं। इनमें अमेरिका समेत वे देश भी शामिल हैं जो दुनिया के सबसे अमीर देश माने जाते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय संपत्ति इस बात की गारंटी नहीं है कि देश बाल गरीबी के खिलाफ जंग को प्राथमिकता देंगे। सच तो यह है कि अमीर देशों में बाल गरीबी दर को घटाने की प्रवृत्ति कम ही होती है।  

रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब भी मिलता है कि दीर्घकाल में बचपन की गरीबी के क्या मायने हैं। रिपोर्ट साफ कहती है, “गरीबी के दुष्परिणाम ताउम्र झेलने होंगे।” बचपन में गरीबी और उसके बाद में भी इसके बने रहने का यह भी मतलब है कि शिक्षा ग्रहण करने के बहुत कम अवसर मिलेंगे।

इसका नतीजा कौशलता में कमी के रूप देखने को मिलेगा जो बेहतर जीवन के लिए अनिवार्य गुण है। एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य को यूनिसेफ की रिपोर्ट ने उजागर किया है, जिसमें अध्ययनों के हवाले से कहा गया है, “वंचित क्षेत्रों में जन्म लेने वाला शख्स संपन्न क्षेत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति की तुलना में 8-9 साल कम जीता है।”

इसका मतलब है कि बचपन की गरीबी, कुपोषण और साफ पेयजल तक पहुंच व स्वच्छता जैसी चुनौतियों के समान ही हैं। इनके प्रभाव एक समान हैं। इनसे ही तय होगा कि बच्चे का विकास कैसा होगा और वह स्वस्थ व बेहतर जीवन जीने में समक्ष हो पाएगा या नहीं।

अत: यह वक्त गरीबी उन्मूलन नीतियों और कार्यक्रमों को बच्चों पर केंद्रित करने का है जिससे उनकी भविष्य की बुनियाद मजबूत हो सके और वे स्वस्थ और समृद्ध जीवन जी सकें।

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