क्या नरवा, गरवा, घुरवा से सुधरेगी छत्तीसगढ़ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था

नीति आयोग की बैठक में जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपनी इस योजना का जिक्र किया तो पूरे देश का ध्यान इस ओर गया है। आइए, जानते हैं क्या है यह योजना...
फोटो: अवधेश मलिक
फोटो: अवधेश मलिक
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रायपुर से अवधेश मलिक  

ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में है। ऐसे समय में छत्तीसगढ़ ने पूरे देश को एक राह दिखाने की कोशिश की है। छत्तीसगढ़ सरकार ने – नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी नाम की योजना की शुरूआत की है। प्रदेश में हो रहे इस प्रयोग की चर्चा मुख्यमंत्री बघेल ने नीति आयोग की हालिया बैठक में भी की थी और जल्द ही इस मॉडल का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर करने की बात कही। छत्तीसगढ़ में हो रहे इस प्रयोग की सराहना अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के अलावा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की।

ज्यादा से ज्यादा लोगों की इस योजना में भागीदारी हो, इसके लिए मुख्यमंत्री खुद इस योजना की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। वहीं, छत्तीसगढ़ के तेज तर्रार एडिशनल चीफ सेक्रेटरी आर.पी. मंडल को इस योजना की कमान सौंपी गई है। वर्तमान में प्रथम चरण में यह योजना राज्य के 15 प्रतिशत (1665) ग्राम पंचायतों में लागू की जा रही है तथा संचालन की जिम्मेदारी ग्राम समितियों को सौंपी गयी है।

छत्तीसगढ़ में इसकी आवश्यकता क्यूं ?

राज्य बनने के बाद से अब तक 18 से अधिक वर्ष बीत गए। प्रदेश सर्वाधिक तेजी से विकसित होने वाले राज्यों के सूची में शामिल रहा, लेकिन इसके बावजूद यहां के मूल निवासी एवं रहवासियों को विकास का वो लाभ नहीं मिल सका, जिनके वे हकदार थे। गिरता हुआ भू-जल स्तर, खेती में लागत की बढ़ोत्तरी, मवेशी के लिए चारा संकट, महंगाई आदि ने स्थिति को और भयावह बना दिया।

कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह कहते हैं कि भाजपा सरकार को पता था कि छत्तीसगढ़ की 85 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है, उसके बावजूद सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि को अनदेखा किया। पिछले 15 वर्षों में ढांचागत (भवन, फ्लाईओवर, सड़कों का जाल बिछाना) निर्माण, खनन क्षेत्र विस्तार आदि पर ध्यान दिया गया। इससे गैरबराबरी के विकास से समाज में असंतुलन पैदा हुआ,  खेती चौपट हुई और अधिकांश लोग किसान से खेतीहर मजदूर बन गए और कर्ज में दबे कई किसानों को आत्महत्या तक करनी पड़ी। ऐसे में आम छत्तीसगढ़िया खुद को विकास के नाम पर ठगा सा महसूस करने लगे।

क्या है नरवा, गरवा, घुरवा बाड़ी योजना ?

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश की सत्ता संभालते ही नारा दिया- छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरवा, घुरवा अउ बाड़ी एला बचाना हे संगवारी (छत्तीसगढ़ की पहचान के लिए चार चिन्ह हैं, नरवा (नाला), गरवा (पशु एवं गोठान), घुरवा (उर्वरक) एवं बाड़ी (बगीचा), इनका संरक्षण आवश्यक है। राज्य सरकार का मानना है कि इस योजना के माध्यम से भूजल रिचार्ज, सिंचाई और आर्गेनिक खेती में मदद, किसान को दोहरी फसल लेने में आसानी, पशुओं को उचित देखभाल सुनिश्चित हो सकेगी, परंपरागत किचन गार्डन एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती आएगी तथा पोषण स्तर में सुधार आएगा।

नरवा- इसके तहत आवश्यकतानुसार नालों तथा नालों में एवं नहरों में चेक डेम का निर्माण किया जा रहा है। ताकि बारिश का पानी का संरक्षण हो सके और वाटर रिचार्ज से गिरते भू-स्तर पर रोक लग सके। इससे खेती में आसानी होगी।

गरवा- इसके तहत गांवों में जो भी पशु धन है उन्हें एक ऐसा डे-केयर सेंटर उपलब्ध करवाना है जिसमें वे आसानी रह सके और उन्हें चारा, पानी उपलब्ध हो। इसके लिए उसके लिए गोठान निर्माण से लेकर आवश्यक संसाधन, जमीन आदि प्रदान किए जा रहे हैं।

घुरवा- यह एक गढ्डा होता है, जिसमें मवेशियों को गोबर एवं मलमूत्र का संग्रहण किया जाता है। जिससे कि गोबर गैस एवं खाद बनाई जा सके।

बाड़ी- यह घर से लगा एक बगीचा है, जिसमें पोषण हेतु फल-फूल उगाई जा सके।

नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के नोडल अधिकारी बताते हैं कि रायपुर में इस योजना के तहत 21 ग्राम पंचायत में मॉडल गौठान तथा 97 गांवों  में गौठानों का निर्माण किया गया है। गौठान में चरवाहों को नियुक्ति के साथ-साथ महिला स्वयं सहायता समूहों को भी जोड़ा गया है। वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन करने के लिए उन्हें वर्मी किट प्रदान किए गए हैं। वर्मी कम्पोस्ट पहले किसानों को प्राथमिकता से दिया जाएगा, उसके बाद वन विभाग तथा कृषि विभाग को सेरिकल्चर, फ्लोरिकल्चर जैसे गतिविधियों को चलाने के लिए बेचने की योजना है। इस पूरे योजना से एक गांव में 10-15 परिवारों को आसानी से काम मिल जाएगा। पेड़ लगाने एवं संरक्षित रखने पर एक निश्चित रकम का भुगतान किया जाता है, इससे भी रोजगार मिलेगा।

चूंकि यह योजना पूरे प्रदेश भर में लागू है अतः जिला कलेक्टर को विशेष निर्देश है कि योजना की सफलता सुनिश्चित करें तथा यथोचित सहयोग प्रदान करें। बाड़ी लगाने के लिए मनरेगा से सहायता दी जा रही है तो वहीं स्वयं सहायता समूहों को महिला एवं समाज कल्याण के ओर से मदद दी जा रही है। ग्रामीण खुद ही आगे बढ़कर मदद कर रहे हैं। गांवों में आवारा मवेशी की समस्या कम हो रही है, इसलिए किसान दूसरी एवं तीसरी फसल लगाने को लेकर भी उत्साहित है।

मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा जो कि नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना के सृजन करता हैं का मानना है कि इस योजना से ग्रामीण क्षेत्र की कई समस्याओं का व्यवहारिक हल निकल सकता है। साउथ एशिया पेस्टोरल एलायंस के कन्वेनर अनु वर्मा का कहना है कि भारत में इस प्रकार की योजनाएं तो सुनने में काफी अच्छी लगती है, लेकिन अगर अमल ईमानदारी से न हो तो फिर उसका कुछ अर्थ नहीं निकलता। सफलता के लिए अमल के साथ-साथ लोगों में जागरूकता की भी आवश्यकता है।

हालांकि पूर्व पंचायत मंत्री एवं वर्तमान भाजपा विधायक अजय चंद्राकर का कहना है कि यह एक ऐसी योजना है जिसका न तो लक्ष्य निर्धारित है, न तो इसमें बजटीय प्रावधान है, न इसके बारे में न किसी विधायक को मालूम है, न ही सांसद को और न ही डिपार्टमेंट को, न इस संदर्भ में कभी चर्चा की गई है और वे जो करना चाहते हैं, वे गांव में लोग लंबे समय से करते आ रहे हैं। अतः ऐसी योजना के बारे में क्या कहा जाए।

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