लुटता हिमालय: भूमि उपयोग और आवरण में बदलाव से सूख रही हैं धाराएं

धाराएं केवल हिमालय क्षेत्र की 5 करोड़ आबादी ही नहीं बल्कि वास्तव में 15 करोड़ की आबादी के लिए महत्वपूर्ण हैं
हिमांशु कुलकर्णी 
(संस्थापक, एडवांस्ड सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेस डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट)
हिमांशु कुलकर्णी (संस्थापक, एडवांस्ड सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेस डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट)
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भारतीय हिमालय क्षेत्र में करीब 30 लाख जल धाराएं हैं। इनमें से लगभग आधी धाराएं सूख रही हैं अथवा सूखने के विभिन्न चरणों में हैं। 2018 में प्रकाशित नीति आयोग की रिपोर्ट में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे। धाराओं के सूखने के चार मुख्य कारण हैं। पहली वजह है कि इस क्षेत्र में लंबी अवधि की बारिश में कमी आई है। हिमालय राज्यों के बड़े क्षेत्र में ऐसा हुआ है। कुछ जगह इतनी बारिश होती है कि भूस्खलन और बाढ़ की स्थिति बनती है, लेकिन औसत वार्षिक वर्षा में कमी दर्ज की गई है। सभी जिलों का विश्लेषण करने के बाद हमने पाया था कि यह कमी अलग-अलग स्तर की है।

दूसरी वजह यह है कि क्षेत्र का भूमि उपयोग और भूमि आवरण भी परिवर्तित हो गया है। मतलब, कहीं जंगल कम हो गया तो कई जगह प्राकृतिक खेती कम हो गई है। ये बदलाव स्थानीय स्तर पर और आधारभूत संरचना की वजह से हुए हैं। जरूरी नहीं है कि भूमि आवरण या उपयोग में बदलाव बड़ी आधारभूत परियोजनाओं से हुए हों, बल्कि गांव में सड़क पहुंचने और कंक्रीट के छोटे निर्माण जैसे बदलाव भी अहम हैं।

तीसरी वजह यह है कि भूस्खलन और उसकी वजह से धरती एक स्थान से दूसरे स्थान पर खिसक जाती है, जिससे धाराएं नष्ट होती हैं। बारिश से संबंधित सूखा चौथी बड़ी वजह है। इनके अतिरिक्त बाढ़ को भी धाराओं को खत्म करने वाली एक वजह के तौर पर देखा जा सकता है। गौर करने वाली बात यह कि ये तमाम प्रक्रियाएं उस क्षेत्र में हो रही हैं जो बहुत नाजुक और पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील है।

धाराओं का पानी जमीन के भीतर के एक्विफर से आता है। भले ही पहाड़ में बड़े-बड़े एक्वफर नहीं हैं, लेकिन कुछ ऐसी व्यवस्थाएं, कुछ ऐसे पत्थर हैं जिनमें सछिद्रता व पारगम्यता है। इनमें पानी रुकता है। पानी की ये परतें जमीन को पानी देती हैं। भूजल का यही पानी धाराओं के रूप में फूटता है। जिस क्षेत्र से जमीन के भीतर पानी रिसता है और धाराओं से कहीं और बाहर आती है, वह प्राकृतिक रिचार्ज क्षेत्र है। ऐसी बहुत सी जगह पर ऊपर बताए गए कारणों का प्रभाव पड़ा है। हमने जम्मू एवं कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर पूर्व के सभी राज्यों में नोटिस किया कि धारा के पानी में समस्या है। भारत के अलावा नेपाल और भूटान में यह देखा जा रहा है।

नीति आयोग की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि हिमालय के एक व्यक्ति के पीछे हर साल दो लोग आते हैं। कहने का मतलब यह है कि हिमालय क्षेत्र की 5 करोड़ आबादी का फुटप्रिंट उसका तीन गुणा यानी करीब 15 करोड़ है। सरल शब्दों में कहें तो आबादी के मुकाबले तीन गुणा पर्यटक आते हैं। यह एक बहुत ही दिलचस्प तथ्य है। इसे देखते हुए कहा जाता है कि धाराएं केवल हिमालय क्षेत्र की 5 करोड़ आबादी ही नहीं बल्कि वास्तव में 15 करोड़ की आबादी के लिए महत्वपूर्ण हैं।

हिमालय के सिस्टम के साथ समस्या यह है कि नदी नालों से ऊपर आबादी की ओर पानी ले जाना हो तो उसकी भारी लागत आती है। इसलिए यह वहनीय नहीं है। धारा पानी के स्थानीय स्रोत हैं। ये परंपरागत स्रोत भी हैं। परंपरागत स्रोत से लोगों को हटाना मुश्किल होता है। विकास की पूरी परियोजना में धाराओं का स्थान अहम रहने वाला है। अगर ये खत्म हो रहे हैं तो हमें कुछ करना पड़ेगा। अच्छी बात यह है कि सभी राज्य सरकारों ने स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट का स्वीकृत किया है। भूजल मैनेजमेंट की तुलना में धारा का प्रबंधन निर्विवादित रूप से आसान भी है।

30 लाख धाराओं से निकलने वाला पानी जो नदी नालियों में मिलता है, वह हिमालयी नदियों का मूल प्रवाह है। धाराओं का पानी 12 महीने नदी को प्रवाह देता है। अगर धाराएं खत्म हो जाएंगी तो स्वाभाविक रूप से नदी नालों का मूल प्रवाह गिर जाएगा और उनमें पानी की कमी हो जाएगी, खासकर गर्मियों के दौरान। ईकोसिस्टम पर भी धाराओं का असर होता है। धाराओं के साथ यह ईकोसिस्टम भी खत्म होने के आसार हैं। धारा भले ही पानी का छोटा स्रोत दिखे, लेकिन उसका कैनवास बहुत बड़ा है।

मैं मानता हूं कि यह केवल अदृश्य पानी नहीं है। बड़े जलस्रोतों की तुलना में भले ही यह छोटा नजर आए लेकिन उनकी अहमियत बहुत है। हमें पानी की बड़े स्रोत ही नजर आते हैं। धाराओं को देखने के लिए हमें अपनी आंखें खोलनी पड़ेंगी।

(भागीरथ से बातचीत पर आधारित)

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