गणित, विज्ञान के मामले में लड़कों से कम नहीं लड़कियां, बस दकियानूसी सोच की हैं शिकार

यह सही है कि अब बच्चियां गणित, विज्ञान के मामले में लड़कों से पीछे नहीं हैं पर समाज की दकियानूसी सोच उन्हें आगे बढ़ने का मौका ही नहीं दे रही
गणित, विज्ञान के मामले में लड़कों से कम नहीं लड़कियां, बस दकियानूसी सोच की हैं शिकार
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यूं तो सारी दुनिया में बच्चियां बराबरी और मौके के लिए जद्दोजेहद कर रही हैं, लेकिन इस बीच एक अच्छी खबर भी सामने आई है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा जारी “2022 जेंडर रिपोर्ट: डीपनिंग द डिबेट ऑन दोस स्टिल लेफ्ट बिहाइंड” से पता चला है कि स्कूल में लड़कियां, गणित में लड़कों की तरह ही बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।

हालांकि इसके बावजूद अभी भी उनके रास्ते में बहुत सी ऐसी बाधाएं हैं, जो उन्हें आगे बढ़ने से रोक रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संगठन द्वारा जारी यह रिपोर्ट 120 देशों में प्राइमरी और सैकण्डरी शिक्षा क्षेत्र में कराए गए एक विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि शिक्षा के शुरुआती वर्षों में गणित के मामले में लड़के, लड़कियों की तुलना में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन लैंगिक असमानता की यह खाई सैकण्डरी स्तर पर जाकर खत्म हो जाती है। यहां तक की दुनिया के सबसे कमजोर और पिछड़े देशों में भी लड़कियों ने इस मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है।

इतना ही नहीं कई देशों में तो बच्चियां गणित के मामले में लड़कों से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। मसलन मलेशिया में 14 वर्ष की उम्र (कक्षा - 8) में लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों की तुलना में 7 फीसदी बेहतर था। वहीं कम्बोडिया में यह आंकड़ा तीन फीसदी और फिलिपीन्स में 1.4 फीसदी ज्यादा था। इतना ही नहीं कोंगों में भी लड़कियों का प्रदर्शन 1.7 पॉइंट बेहतर था।

पक्षपात और दकियानूसी सोच है बच्चियों के विकास में बड़ी बाधा

यूनेस्को का कहना है कि इस प्रगति के बावजूद, लड़कियों के साथ होता पक्षपात और दकियानूसी सोच बच्चियों की शिक्षा को लम्बे समय से प्रभावित कर रहे हैं, जिसके भविष्य में भी जारी रहने की आशंका है।  यही वजह है कि तमाम देशों में उच्च स्तर पर गणित के मामले में लड़कों का बोलबाला है। यह कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो लड़कियों के मन में कमतरी का भाव पैदा कर रही हैं, जो उनके विकास को प्रभावित कर रहा है।

यह समस्या विज्ञान के मामले में भी है। देखा जाए तो मध्यम और उच्च आय वाले देशों से लड़कियां सैकण्डरी स्तर पर विज्ञान विषयों में लड़कों की तुलना में काफी ज्यादा अच्छे अंक हासिल करती हैं। लेकिन इसके बावजूद उनके विज्ञान, टैक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में कैरियर बनाने के सम्भावना बहुत कम होती है। जो स्पष्ट तौर पर उनके सामने आने वाली सामजिक बाधाओं की वजह से है।

रिपोर्ट के मुताबिक जहां लड़कियां गणित और विज्ञान में अच्छा प्रदर्शन कर रहीं हैं। साथ ही रीडिंग में भी उनका प्रदर्शन लड़कों से अच्छा था। यदि रीडिंग में न्यूनतम निपुणता की बात करें तो इस मामले में भी लड़कियों की स्थिति लड़कों से बेहतर है।

यूनेस्को के अनुसार प्राइमरी शिक्षा में सबसे ज़्यादा अन्तर सऊदी अरब में है, जहां प्राथमिक शिक्षा में रीडिंग के मामले में न्यूनतम निपुणता हासिल करने वाली बच्चियों की संख्या 77 फीसदी है, जबकि इसके विपरीत लड़कों के लिए यह आंकड़ा 51 फीसदी ही था। इसी तरह थाईलैण्ड में भी रीडिंग के मामले में बच्चियों ने 18 अंकों से बाजी मार ली है जबकि डोनिमिकन रिपब्लिक में यह आंकड़ा 11 अंक और मोरक्को में लड़कों की तुलना में 10 अंक ज्यादा था।

इस बारे में बच्चियों की शिक्षा के लिए काम कर रही पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई का कहना है कि “लड़कियां यह साबित कर रही हैं कि अगर उन्हें शिक्षा के बेहतर अवसर मिलें तो वो कितना अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं।“

“लेकिन दुर्भाग्य की बात है, बहुत सी लड़कियों विशेष तौर पर जो पिछड़ी पृष्ठभूमि से आती हैं उन्हें शिक्षा हासिल करने का अवसर ही नहीं मिल पा रहा है।“ उनका कहना है कि हमें बच्चियों की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य देखिए की अफगानिस्तान जैसे देशों में उनकों अपने हुनर दिखाने का मौका तक नहीं मिलता।

इस मामले में यूनेस्को से जुड़े मानोस ऐण्टॉनिनिस का कहना है कि आज बच्चियां रीडिंग और विज्ञान के मामले में लड़कों से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन का रही हैं और कहीं-कहीं पर उन्होंने गणित में भी बढ़त हासिल की है, लेकिन उनके साथ होता पक्षपात और दकियानूसी सोच के चलते गणित में उनके शिखर तक पहुंचने की संभावनाएं कम ही हैं।

उनके अनुसार इसे दूर करने के लिए शिक्षा में लैंगिक समानता की दरकार है। साथ ही यह सुनिश्चित करने की भी जरुरत है कि हर किसी को अपने सपने सच करने का पूरा मौका मिले। अब समय आ गया है समाज अपनी इस छोटी सोच से आगे बढे, बेटे और बेटियों के बीच का यह अंतर अब खत्म होना चाहिए। आइए मिलकर इस बदलाव का हिस्सा बनें और अपनी बच्चियों के सपने को सच करने में उनका सेंटाक्लॉज बनें।

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