ईस्ट कोलकाता वेटलैंड के ताबूत में कील साबित होगा फ्लाईओवर!

सरकार ने ईस्टर्न मेट्रोपोलिटन बाइपास को न्यू टाउन से जोड़ने के लिए एक फ्लाईओवर बनाने का फैसला लिया है, जो ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के ऊपर से होकर जाएगा
वेटलैंड में मछली पकड़ते मछुआरे। फोटो: उमेश कुमार राय
वेटलैंड में मछली पकड़ते मछुआरे। फोटो: उमेश कुमार राय
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हजारों हेक्टेयर में फैला ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स कोलकाता शहर से निकलने वाले 750 मिलियन लीटर तरल कचरे के लिए प्राकृतिक परिशोधन यंत्र का काम करता है। लेकिन, पिछले कुछ सालों से इस वेटलैंड्स लगातार अतिक्रमण के हमले झेल रहा है और हाल ही में एक ऐसे प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई है, जो ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को और ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा।

सरकार ने ईस्टर्न मेट्रोपोलिटन बाइपास को न्यू टाउन से जोड़ने के लिए एक फ्लाईओवर बनाने का फैसला लिया है, जो ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के ऊपर से होकर जाएगा। इस परियोजना पर 650 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

जानकार बताते हैं कि इस फ्लाईओवर से इस वेटलैंड्स के 10 से 12 वाटरबॉडीज पूरी तरह प्रभावित होंगे। नागरिक मंच के महासचिव व पर्यावरण को लेकर लंबे समय से काम कर रहे नव दत्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया, “इस फ्लाईओवर के लिए 10 से 12 वाटरबॉडीज में 180 से ज्यादा पिलर डाले जाएंगे। ये पिलर इन वाटरबॉडीज की प्रकृति को बुरी तरह नुकसान पहुंचाएंगे।” 

ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को रामसर साइट का दर्जा मिला हुआ है और सरकार का काम इसे संरक्षित कर रखना है, लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि सरकार इस दिशा में कुछ कर नहीं रही है और उल्टे ऐसी योजनाओं को मंजूरी दे रही है, जो इसे नुकसान पहुंचाएगी। नव दत्ता ने इस फ्लाईओवर के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा, “मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि आखिर ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के ऊपर से होकर फ्लाईओवर ले जाने की जरूरत ही क्या है!”

उन्होंने मेट्रो रेलवे की पटरी बिछाने के लिए आदिगंगा में पिलर डालने की मिसाल देते हुए कहा कि जब आदिगंगा में पिलर डाले जा रहे थे, तो उन्होंने इसका विरोध किया था, लेकिन रेलवे मंत्रालय ने पर्यावरणविदों की नहीं सुनी और कहा कि आदिगंगा को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा। “आज आप जाकर देख लीजिए, आदिगंगा नाला बन कर रह गई है”। 

यहां ये भी बता दें कि आदिगंगा कोलकाता के बीच से होकर गुजरती है और दक्षिण 24 परगना में सागरद्वीप में सागर से मिल जाती है। गंगा और सागर के मिलन बिंदू पर ही हर साल मकरसंक्रांति में गंगासागर मेला लगता है। इस मेले में देशभर के लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं और स्नान करते हैं। 

आदिगंगा कोलकाता से गुजरनेवाली गंगा की मूलधारा है। मेट्रो परियोजना के विस्तार के लिए आदिगंगा के ऊपर छह किलोमीटर तक रेलवेलाइन बिछाने के लिए पुल बनाया गया है और उसके लिए 100 से अधिक पिलर आदिगंगा में स्थापित किए गए हैं। इससे पानी का प्रवाह प्रभावित हुआ है।

ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के ऊपर से होकर फ्लाईओवर के निर्माण पर रोक लगाने की मांग को लेकर पर्यावरणविदों ने कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्रालय से क्लीयरेंस मिलने तक प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी है। इधर, बंगाल सरकार ने  फ्लाईओवर से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को होनेवाले नुकसान का आकलन कराने का भी निर्णय लिया है। इसके लिए कंसल्टिंग एजेंसी लगाई गई है।

ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को लेकर शोध करनेवाली स्वतंत्र शोधकर्ता ध्रुवा दासगुप्ता ने डाउन टू अर्थ से कहा, “मामला अभी हाईकोर्ट में है, इसलिए हमें कंसल्टेंट की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए। लेकिन, इतना जरूर कहा जा सकता है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के वक्त ये गहराई से देखा जाना चाहिए कि इससे वेटलैंड्स पर कितना असर पड़ रहा है।”

क्यों खास है ये आर्द्रभूमि

इस वेटलैंड्स की खासियत ये है कि इसमें मौजूद बैक्टीरिया, सूरज की रोशनी के साथ मिल कर सीवेज को मछलियों का खाद्य बना देता है। यही नहीं सीवेज का पानी भी इससे साफ हो जाता है, जिसका इस्तेमाल किसान खेतों में सिंचाई के लिए करते हैं। इस वेटलैंड्स के कारण कोलकाता से निकलनेवाले हजारों लीटर सीवेज की रीसाइकलिंग के लिए सूबे की सरकार को एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ता है।

चूंकि इस वेटलैंड्स में छोटे छोटे तालाब भी हैं, जहां मछली पालन होता है क्योंकि वेटलैंड्स से मुफ्त में मछलियों के लिए भोजन मिल जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, एक लाख से ज्यादा लोगों की रोजीरोटी इस वेटलैंड्स पर निर्भर है।

इस वेटलैंड्स की एक खासियत ये भी है कि इसके जरिए सीवेज का जो ट्रीटमेंट होता है, उससे एक कण कार्बन नहीं निकलता है। जानकार बताते हैं कि देश के मेट्रोपोलिटन शहरों में कोलकाता इकलौता शहर है, जहां कार्बन नेगेटिव नेचुरल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स के रूप में) है।

अतिक्रमण का शिकार है ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स

कुछ साल पहले ध्रुवा दासगुप्ता व अन्य तीन शोधकर्ताओं ने मिल कर ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को लेकर शोध किया था। इस शोध में जो बातें सामने आई थीं, वे हैरान करनेवाली थीं। नॉट ए सिंगल बिलबोर्ड : “द श्फ्टिंग प्रायरिटी इन लैंड यूज विदिन ए प्रोटेक्टेड  वेटलैंड्स ऑफ ईस्ट कोलकाता” नाम से सार्वजनिक हुई इस रिपोर्ट में बताया गया था कि ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स में पड़नेवाले भगवानपुर मौजा के 88.83 प्रतिशत हिस्से में आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) थी जो वर्ष 2016 में घट कर 19.39 प्रतिशत रह गई है। 

नव दत्ता ने बताया कि जब ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को रामसर साइट घोषित किया गया था, तब इसका क्षेत्रफल 12500 हेक्टेयर में फैला हुआ था, लेकिन अभी इसकी चौहद्दी सिमट कर 3900 हेक्टेयर रह गई है। उन्होंने ये भी कहा कि वर्ष 2007 से वर्ष 2019 तक ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर अवैध अतिक्रमण को लेकर 300 से ज्यादा एफआईआर विभिन्न थानों में दर्ज की गई, लेकिन इन एफआईआर पर संतोषजनक कार्रवाई नहीं की गई।

वहीं, आरटीआई के माध्यम से नव दत्ता को मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 2017 की जनवरी से लेकर 2018 के जून महीने तक बंगाल सरकार के पास नियमों को ताक पर रख कर वेटलैंड्स से छेड़छाड़ की 87 शिकायतें आईं, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

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