जीवन प्रत्याशा में सुधार और प्रजनन दर में गिरावट के कारण दुनियाभर में आबादी की रूपरेखा बदल रही है। 60 वर्ष या इससे अधिक उम्र वाली आबादी को वृद्ध माना जाता है और दुनियाभर में ऐसी आबादी 2022 के 110 करोड़ (1.1 बिलियन) के मुकाबले 2050 में बढ़कर लगभग दोगुनी यानी 210 करोड़ हो जाएगी। इस अवधि में यह वृद्धि विकसित देशों में 26 प्रतिशत से बढ़कर 34 प्रतिशत होगी, जबकि कम विकसित देशों में यह वृद्धि 11.5 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो कम विकसित क्षेत्रों में बुजुर्ग आबादी 2022 में 77.2 करोड़ से बढ़कर 2050 में 170 करोड़ पहुंच जाएगी।
भारत में 1 जुलाई 2022 तक 14.9 करोड़ (कुल आबादी का 10.5 प्रतिशत) आबादी बुजुर्ग थी। यहां 2050 में बुजुर्ग आबादी बढ़कर 34.7 करोड़ (कुल आबादी का 20.8 प्रतिशत) हो जाएगी। यानी 2050 में हर पांच में एक शख्स बुजुर्ग होगा। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन सांइसेस एंड यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड द्वारा प्रकाशित इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 में ये जानकारियां दी गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, बुजुर्गों की आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि स्वास्थ्य तंत्र, अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित करेगी।
भारत में यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड के प्रतिनिधि एंड्रिया एम वोजनार कहते हैं कि बहुत से राज्यों में बूढ़ी आबादी तेजी से बढ़ रही है। वह लिखते हैं कि विधवापन और महिलाओं में उच्च जीवन प्रत्याशा भारत की प्रमुख जनसांख्यीय विशेषता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कम आय अर्जित करती हैं। फेमिनाइजेशन का गरीबी से सीधा ताल्लुक है, इसलिए नीति निर्माताओं को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।