सिर्फ कमजोर देशों तक सीमित नहीं गरीबी, सबसे अमीर देशों का भी हर पांचवा बच्चा है इसका शिकार

यूनिसेफ के अनुसार पिछले सात वर्षों में अमीर देशों में बच्चों में व्याप्त गरीबी में आठ फीसदी की कमी आई है, लेकिन अभी भी 6.9 करोड़ बच्चे गरीब हैं
गरीबी का शिकार है अमेरिका में हर चौथा बच्चा; फोटो: आईस्टॉक
गरीबी का शिकार है अमेरिका में हर चौथा बच्चा; फोटो: आईस्टॉक
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गरीबी सिर्फ कमजोर देशों तक ही सीमित नहीं है, यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के 40 सबसे अमीर देशों का हर पांचवां बच्चा गरीबी से जूझ रहा है। इस मामले में कोलंबिया, तुर्किये, रोमानिया, स्पेन, अमेरिका, बुल्गारिया और इटली सबसे ऊपर हैं। जहां एक-चौथाई से भी ज्यादा बच्चे गरीबी का शिकार हैं।

इतना ही नहीं यूनिसेफ ने अपने नवीनतम रिपोर्ट कार्ड "चाइल्ड पॉवर्टी इन द मिड्स्ट ऑफ वेल्थ” में जानकारी दी है कि 2014 से 2021 के बीच फ्रांस, आइसलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और यूनाइटेड किंगडम में बच्चों में व्याप्त गरीबी में भारी वृद्धि देखी गई है।

वहीं इस दौरान बेल्जियम, ग्रीस, माल्टा, आयरलैंड, जापान, क्रोएशिया, पुर्तगाल, रोमानिया, कनाडा, एस्तोनिया, दक्षिण कोरिया, लिथुआनिया, लातविया, स्लोवेनिया, पोलैंड ने इसे कम करने में भारी सफलता हासिल की है। बता दें कि यूनिसेफ के अनुसंधान विंग द्वारा जारी यह नए निष्कर्ष आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) और यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों पर केंद्रित हैं। अपनी इस रिपोर्ट में यूनिसेफ ने 43 उच्च और उच्च मध्यम आय वाले देशों में बाल गरीबी के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

इस रिपोर्ट में विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बच्चों की सहायता के लिए मौजूद नीतियों का भी जायजा लिया है। रिपोर्ट के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक इन देशों में सात वर्षों के दौरान बच्चों में व्याप्त गरीबी में करीब आठ फीसदी की कमी आई है। मतलब की 2014 से 2021 के बीच इन समृद्ध देशों में गरीबी में जीवन यापन करने वाले बच्चों की संख्या में 60 लाख की कमी आई है।

हालांकि इसके बावजूद अभी भी 6.9 करोड़ से ज्यादा बच्चे ऐसे घरों में रह रहे हैं जिनकी आय उनके देशों की औसत आय के 60 फीसदी से भी कम है। आंकड़ों के मुताबिक डेनमार्क में बाल गरीबी दर सबसे कम 9.9 फीसदी है। वहीं फिनलैंड और स्लोवेनिया में हर दसवां बच्चा गरीबी की मार झेल रहा है। दूसरी ओर, बुल्गारिया, कोलंबिया, इटली, मैक्सिको, रोमानिया, स्पेन, तुर्की और अमेरिका में हर चौथा बच्चा गरीबी में जीने को मजबूर है।

मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक जहां अमेरिका में औसतन 26.2 फीसदी बच्चे गरीबी का शिकार हैं। वहीं कोलंबिया में 35.8 फीसदी, तुर्किये में 33.8, इटली में 25.5, ऑस्ट्रेलिया में 17 फीसदी, जर्मनी में 15.5, न्यूजीलैंड में 21.1 फीसदी बच्चे गरीबी की मार झेलने को मजबूर हैं।

2008 से 2010 के बीच वैश्विक मंदी के बाद कई देशों की अर्थव्यवस्था में सुधार का दौर शुरू हुआ। यह दौर कोरोना और यूक्रेन में युद्ध की शुरूआत तक चला। इसकी वजह से कई विकसित देशों ने बच्चों में व्याप्त गरीबी को दूर करने में अच्छी खासी सफलता भी हासिल की। ऐसा ही कुछ पोलैंड में देखने को मिला जहां बाल गरीबी को 38 फीसदी तक कम किया जा सका।

इसी तरह स्लोवेनिया, लातविया और लिथुआनिया ने भी इसमें 30 फीसदी तक की कटौती करने में सफलता हासिल की है। वहीं दूसरी ओर पाँच देशों - फ्रांस, आइसलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और यूनाइटेड किंगडम में बाल गरीबी में कम से कम 10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं यूनाइटेड किंगडम में तो इसमें करीब 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के वैश्विक अनुसंधान केंद्र इनोसेंटी के निदेशक बो विक्टर का कहना है कि, "बच्चों पर गरीबी का प्रभाव स्थाई और हानिकारक होता है।" उन्होंने इसे समझाते हुए विस्तार से बताया कि कई बच्चों के लिए, इसका मतलब पर्याप्त पौष्टिक आहार, कपड़े, स्कूली जरूरतों आदि के आभाव में बड़ा होना है। उनके मुताबिक गरीबी उनके अधिकारों को हासिल करने में बाधा डालती है और इसके चलते उनके  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि गरीबी का प्रभाव जीवन भर रहता है। जो बच्चे गरीबी का सामना करते हैं। उनके अपनी स्कूली शिक्षा खत्म करने की सम्भावना घट जाती है। ऐसे में शिक्षा के आभाव में उन्हें बड़े होकर कम मजदूरी पर काम करना पड़ता है।

रिपोर्ट  के मुताबिक कुछ देशों में गरीबी में जन्मे बच्चे की जीवन प्रत्याशा दूसरे समृद्ध क्षेत्र में पैदा हुए बच्चे की तुलना में आठ से नौ वर्ष कम होती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन परिवारों में बच्चों का पालन करने के लिए माता या पिता में से केवल एक ही सदस्य होता है उनके गरीबी का सामना करने की आशंका तीन गुणा अधिक होती है। इसी तरह विकलांग या अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को भी औसत से अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।

रिपोर्ट में एक और खास बात जो सामने आई है वो यह है कि किसी देश की नेशनल वेल्थ अधिक होने का मतलब यह नहीं कि वो बाल गरीबी से निपटने को प्राथमिकता देगा। यह आंकड़ों से भी स्पष्ट होता है, सात देश जिनकी राष्ट्रीय आय करीब-करीब एक जैसी है उनकी बाल गरीबी दर में भारी अंतर है। उदाहरण के लिए स्पेन और स्लोवेनिया में राष्ट्रीय आय करीब-करीब बराबर है। हालांकि स्लोवेनिया में गरीबी दर 10 फीसदी जबकि स्पेन में 28 फीसदी है।

अपनी रिपोर्ट में यूनिसेफ ने बच्चों में व्याप्त गरीबी को दूर करने के कुछ सुझाव भी दिए हैं, जिनमें बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा के दायरे में विस्तार करना प्रमुख है। इसमें बच्चों और उनके परिवारों को मदद देना शामिल है। इसी तरह बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उनके लिए देखभाल, मुफ्त शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाएं देना भी अहम है।

इसी तरह बच्चों की देखभाल करने वाले माता-पिता के लिए काम और देखभाल के बीच संतुलन बनाने में मदद करना साथ ही उचित वेतन और रोजगार के अवसर देना भी मददगार साबित हो सकता है। साथ ही अल्पसंख्यक और जिन परिवारों में केवल माता-पिता में से एक ही है उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उपाय किए जा सकते हैं।

इसी तरह परिवारों को नकद रूप से दिया जाने वाला लाभ भी गरीबी को कम करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए स्लोवेनिया में न्यूनतम वेतन में की गई वृद्धि से जीवन स्तर में सुधार आया है। वहीं पोलैंड में परिवारों के लिए नकद लाभ को बढ़ाने के सरकार के फैसले से बाल गरीबी को कम करने में मदद मिली है।

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