भूख का सामना कर रहे हर पांचवे अमेरिकी ने निभाई राष्ट्रपति चुनाव में भूमिका!

कोविड-19 महामारी से पहले अमेरिका में वर्ष 2019 में लगभग 10.5 प्रतिशत परिवार खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे
Photo: wikimedia commons
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हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुए चुनावों के दौरान एक वालंटियर अजीब सवाल करता देखा गया। वह उम्मीदवारों का प्रचार कर रहे समर्थकों से पूछता था, “अगर आप जीत गए तो संयुक्त राज्य और दुनियाभर से भूख को दूर करने, गरीबी मिटाने और अवसर पैदा करने के लिए क्या करेंगे?” शायद वह वालंटियर “वोट टु एंड हंगर” नामक संगठन से जुड़ा था। यह संगठन वर्ष 2030 तक संयुक्त राज्य से भुखमरी को खत्म करने के लिए अभियान चलाता है। मतदान केंद्रों के आसपास मुफ्त खाना बांटते लोगों को देखा जा सकता था। चुनावों की टेलीविजन कवरेज में ऐसे परिवारों को सुना जा सकता था जो खाना उपलब्ध न होने की अपनी मजबूरी और जिंदा रहने के लिए समुदाय या सरकार से मदद के तौर पर मिलने वाले खाने पर निर्भर रहने के बारे में बताते थे। 

राष्ट्रपति पद के दो मुख्य  दावेदार इस बात को मानें चाहे न मानें, भूख इस चुनाव में मुख्य मुद्दे के रूप में उभरा है। कई आलोचक तथा संयुक्त राज्य में भूख और खाद्य असुरक्षा पर नजर रखने वाले कहते हैं कि पिछले कुछ समय पर नजर डालें तो इस समय देश सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षा से जूझ रहा है। कोविड-19 महामारी ने देश की भूख की चुनौती को और विकराल बना दिया है। और इसने उम्मीदवार का चुनाव करने में अहम भूमिका निभाई है।

नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में अनुसंधानकर्ताओं के अनुमान के अनुसार, संयुक्त राज्य के 23 प्रतिशत परिवार खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं या हर पांचवा अमेरिकी भूख का सामना कर रहा है। इस महामारी से पहले वर्ष 2019 में लगभग 10.5 प्रतिशत परिवार खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट का कहना था कि जुलाई में लगभग 140 लाख बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिला।

इस महामारी के कारण संयुक्त राज्य में लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी हैं। सरकार की तरफ से मिलने वाली नकद सहायता समाप्त होने वाली है अथवा संकट को देखते हुए पर्याप्त नहीं है। यह भी कहा जा रहा है कि सहायता का वितरण असमान है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य सरकार ने कोरोनावायरस खाद्य सहायता कार्यक्रम के तहत अब तक किसानों को 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष भुगतान किया है। लेकिन यह देखा गया है कि इसका अधिकांश हिस्सा  छोटे किसानों या उद्यमियों को नहीं बल्कि बड़े किसानों को मिला है। आबादी के इस हिस्से को मिलने वाली सहायता उनका कारोबार चलाने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। फीडिंग अमेरिका के अनुसार, मिनिसोटा और विस्कोंसिन जैसे राज्यों में खाद्य असुरक्षा में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है।  

टेलीविजन में अपनी खाने की समस्या के बारे में बताने वाले एक और बात भी कहते हैं, “हमने (जो) बाइडेन को वोट दिया है।” आखिरकार बाइडेन ने डोनाल्ड ट्रंप को हरा दिया जो महामारी से निपटने में लापरवाही दिखा रहे थे तथा इसके आर्थिक परिणाम इसका बड़ा कारण बने। बाइडेन के ऊपर उल्लिखित दोनों राज्यों में जीत दर्ज की जहां खाद्य असुरक्षा में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

संयुक्त राज्य में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार आमतौर पर भूख की समस्या के बारे में बात नहीं करते जो लगातार चुनौती बना हुआ है, फिर भी वे व्यापक असमानता की बात करते हैं जिसमें खाद्य असुरक्षा के मुद्दे को शामिल किया जा सकता है। लेकिन इस वर्ष महामारी और जातीय ध्रुवीकरण ने भूख को प्रत्यक्ष  कारक बना दिया है, फिर चाहे वह मतदाता के नजरिए से ही क्यों न हो। चूंकि चुनाव के नतीजों का बाद में विश्लेषण किया जाएगा, इसलिए उस पर भूख के प्रभाव के बारे में भी बाद में ही पता चलेगा।

भारतीय राजनेताओं के लिए, खासतौर पर कोविड के बाद होने वाले चुनावों के मद्देनजर, यह एक सबक है। भारत में भूख स्पष्ट रूप से एक चुनावी मुद्दा है। लेकिन हाल के समय में इसने चुनाव अभियानों में अपनी प्रमुखता खो दी है। अब जबकि महामारी के आर्थिक प्रभाव सामने आ रहे हैं और कुछ बड़े राज्य में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा बनता है अथवा नहीं। या फिर यह भारत का एक और अभिशाप बनकर रह जाता है जिसके बारे में “नए भारत” में बात न हो।

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