कोविड-19 महामारी ने न केवल छात्रों की पढ़ाई को बाधित किया बल्कि बहुत से छात्रों ने निजी स्कूलों में पढ़ाई बंद कर दी। साथ ही बड़ी संख्या में बच्चों का स्कूलों में नामांकन भी नहीं हुआ। आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार, शिक्षा प्रणाली पर महामारी का व्यापक प्रभाव पड़ा है। आर्थिक सर्वेक्षण में वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2021 के हवाले से कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 6-14 आयुवर्ग में गैर नामांकित बच्चे 2021 में बढ़कर 4.6 प्रतिशत हो गए। यह 2018 में गैर नामांकित बच्चों का आंकड़ा 2.5 प्रतिशत था। दूसरे शब्दों में कहें तो स्कूलों में दाखिला न पाने वाले बच्चों की संख्या करीब दोगुनी बढ़ गई है। 7-10 आयु वर्ग में नामांकन में गिरावट अपेक्षाकृत बड़ी थी। सर्वेक्षण के अनुसार, छोटे लड़कों के नामांकन में गिरावट लड़कियों की तुलना में अधिक थी।
महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के सभी तीन आयु वर्ग के बच्चे निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में चले गए। आर्थिक सर्वेक्षण में इस बदलाव की तीन मुख्य वजह बताई गई हैं। पहली, कम लागत वाले निजी स्कूलों का बंद होना, दूसरी अभिभावकों की आर्थिक तंगी और तीसरी वजह सरकारी स्कूलों में मुफ्त सुविधाएं और परिवारों के गांव लौटना बताई गई हैं। निजी स्कूलों में उच्च शुल्क ने भी इस बदलाव को बढ़ाया है।
सर्वेक्षण के अनुसार, अगर यह स्थिति आगे भी बनी रहती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में छात्रों को आत्मसात करने के लिए सरकारी स्कूलों में शिक्षक छात्र अनुपात, कक्षा स्थान तथा शिक्षण सामग्री के मामले में अतिरिक्त सहायता से लैस करने की आवश्यकता है।
शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में सरकारी स्कूलों में 6-14 आयुवर्ग में 64.3 प्रतिशत बच्चे नामांकित थे जो 2021 में बढ़कर 70.3 प्रतिशत हो गए। इसी तरह 2018 में निजी स्कूलों में इस आयुवर्ग के 32.5 प्रतिशत बच्चे नामांकित थे जो 2021 में घटकर 24.4 प्रतिशत हो गए। 7-10 आयुवर्ग के गैर नामांकित लड़के 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 4.7 प्रतिशत हो गए। इस आयुवर्ग की लड़कियों का नामांकन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। 2018 में गैर नामांकित लड़कियों का आंकड़ा 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 4.1 प्रतिशत पर पहुंच गया। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि कोविड काल में नामांकन प्रक्रिया पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है और बड़ी संख्या में छात्र प्राथमिक शिक्षा से वंचित रह गए हैं।
सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि महामारी के समय जब स्कूल बंद थे, तब ऑनलाइन पढ़ाई सबसे सुरक्षित तरीका था। लेकिन यह पढ़ाई भी सभी वर्गों के बच्चों को समान रूप से हासिल नहीं हुई। निम्न श्रेणी के छात्रों को उच्च श्रेणी के छात्रों की तुलना में ऑनलाइन पढ़ाई को करना मुश्किल हुआ। स्मार्टफोन की अनुपलब्धता और नेटवर्क और कनेक्टिविटी के मुद्दे बच्चों के सामने प्रमुख चुनौतियां रहीं।