विकास या विनाश: नदी मुहानों को लील रहा इंसानी लालच, 35 वर्षों में ढाई लाख एकड़ क्षेत्र को किया तब्दील

मनुष्यों ने वैश्विक स्तर पर भूमि सुधार और बांधों के निर्माण के नाम पर 44 फीसदी नदी मुहानों को बदल दिया है
इतिहास पर नजर डालें तो हजारों वर्षों से लोग अपनी जरूरतों के अनुरूप इन मुहानों को आकार देते आए हैं। लेकिन अब वो क्षेत्र इसकी कीमत भी चुका रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक
इतिहास पर नजर डालें तो हजारों वर्षों से लोग अपनी जरूरतों के अनुरूप इन मुहानों को आकार देते आए हैं। लेकिन अब वो क्षेत्र इसकी कीमत भी चुका रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक
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इंसानों की बढ़ती महत्वाकांक्षा आज प्रकृति के विनाश की वजह बन रही है। इससे नदियों के मुहाने भी सुरक्षित नहीं हैं, जिन्हें भूमि उपयोग में आता बदलाव और तेजी से पैर पसारता शहरीकरण निगल रहा है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले 35 वर्षों में वैश्विक स्तर पर बांधों और भूमि सुधार परियोजनाओं ने ढाई लाख एकड़ क्षेत्र में मौजूद मुहाने को शहरी क्षेत्रों या कृषि भूमि में बदल दिया है। यह क्षेत्र आकार में मैनहट्टन से करीब 17 गुणा बड़ा है।

इस बारे में किए गए अध्ययन के मुताबिक इससे सबसे ज्यादा प्रभावित तेजी से विकसित होते देश हो रहे हैं। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो उन विकासशील देशों द्वारा अनुभव की जाने वाली समस्याओं को रोकने में सहायता कर सकते हैं, जिनके मुहानों को नुकसान पहुंचा है या वो उन पहले ही खो चुके हैं।

बता दें कि यह मुहाने, आर्द्रभूमि के बेहद महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं जहां मीठे पानी की नदियां खारे समुद्र से मिलती हैं। यह जमीन और समुद्र के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं, जो न केवल वन्य जीवों को आवास प्रदान करते हैं साथ ही कार्बन के भण्डारण में भी मददगार होते हैं।

हजारों वर्षों से इंसान अपनी जरूरतों के अनुरूप मुहानों को देते आए हैं आकार

इसके साथ ही यह परिवहन के केंद्र के रूप में काम करते हैं। इतिहास पर नजर डालें तो हजारों वर्षों से लोग अपनी जरूरतों के अनुरूप इन मुहानों को आकार देते आए हैं। लेकिन अब वो क्षेत्र इसकी कीमत भी चुका रहे हैं।

खराब या खोए हुए मुहाने पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा सकते हैं, महत्वपूर्ण आवासों को कम कर सकते हैं और तूफानों के खिलाफ तटीय सुरक्षा को कमजोर कर सकते हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर नदियों के 2,396 मुहानों का अध्ययन किया है, जिनका मुख 90 मीटर से अधिक चौंड़ा था। इस अध्ययन के लिए 1984 से 2019 तक लैंडसैट से प्राप्त रिमोट सेंसिंग आंकड़ों की मदद ली गई है। जानकारी मिली है कि इनमें से करीब आधे यानी 47 फीसदी मुहाने एशिया में स्थित हैं। साथ ही अध्ययन में भूमि उपयोग में आते बदलाव जैसे भूमि रूपांतरण और बांधों के निर्माण की भी जांच की है।

शोधकर्ताओं ने मुहानों के सतही क्षेत्र में आए बदलाव का भी विश्लेषण किया है और इसकी तुलना उन क्षेत्रों से की है जहां भूमि सुधार और बांध निर्माण किया गया है।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक 1984 से 2019 के बीच इंसानों ने भू-सुधार के नाम पर इन मुहानों के 1,027 वर्ग किलोमीटर (250,000 एकड़) क्षेत्र को शहरी या कृषि भूमि में बदल दिया। भू-सुधार के तहत भूमि से पानी को सुखाना और जमीन को बढ़ाने के लिए तलछट जमा करना शामिल है। इसकी वजह से मुहानों को 20 फीसदी नुकसान पहुंचा है। वहीं मनुष्यों ने वैश्विक स्तर पर भूमि सुधार और बांधों के निर्माण के नाम पर 44 फीसदी नदी मुहानों को बदल दिया है।

शोधकर्ताओं ने भूमि उद्धार और मुहानों के कुल क्षेत्र के साथ देशों की प्रति व्यक्ति सकल आय की तुलना यह जांचने के लिए की है कि कैसे आर्थिक विकास मुहानों को हुए नफे-नुकसान से संबंधित है। उन्होंने इससे पहले मुहानों में हो चुके बदलावों का पता लगाने के लिए समृद्ध देशों के ऐतिहासिक मानचित्रों का भी अध्ययन किया है। इसमें विभिन्न आय वाले देशों में मुहाना को हुए नुकसान के आठ मामले शामिल हैं।

विकासशील देशों में मुहानों ने खोई सबसे अधिक जमीन

अध्ययन के दौरान मध्यम आय वाले देशों ने मुहानों के सबसे अधिक क्षेत्र को खोया। जो इस दौरान भूमि-उद्धार के करीब 90 फीसदी (923 वर्ग किलोमीटर) क्षेत्र के बराबर है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जैसे-जैसे कोई देश मध्यम आय की राह पर अग्रसर होता है तो वो अक्सर कहीं ज्यादा विकास करना शुरू कर देता है।

रिसर्च के मुताबिक संरक्षण कानूनों और नीतियों की कमी के चलते अधिकांश मानव बदलाव और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान आर्थिक विकास के उस चरण में हुआ है जब वो मध्यम-आय वाले देश थे।

वहीं दूसरी तरफ अध्ययन के दौरान समृद्ध देशों ने अपने मुहानों के बहुत कम क्षेत्र को खोया था। शोधकर्ताओं ने इसके कारण पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि इसका मुख्य कारण यह है कि इन देशों ने बहुत साल पहले जब वे विकासशील या मध्यम-आय वाले देश थे उन्होंने तभी अपने मुहानों में व्यापक बदलाव कर दिए थे।

आज इन देशों का ध्यान विकास से ज्यादा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों पर केंद्रित है। ऐसे में यह देश अपने मुहानों को हुए चुके नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं।

दक्षिण कोरिया के इंहा विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता गुआन-होंग ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि खासकर 20वीं सदी में मुहानों में होने वाला यह बदलाव विशेष रूप से दिलचस्प है।

इस दौरान बांध निर्माण और भू-सुधार जैसी इंसानी गतिविधियों ने मुहानों को बदल दिया है। उनके मुताबिक जब इंसान मुहानों में बदलाव करते हैं तो उसकी वजह से भूमि को महत्वपूर्ण हानि होती है।

अध्ययन में नीदरलैंड और जर्मनी जैसे कई विकसित देशों का उदाहरण देते हुए लिखा है कि इन देशों ने अपने शहरी मुहानों के बड़े क्षेत्रों को पहले ही उन्हें खो दिया है। यह उदाहरण विकासशील देशों के लिए सबक बन सकते हैं। विकासशील देश पहले की भूलों से काफी कुछ सीख सकते हैं। साथ ही इनके संरक्षण के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई करके अपने पर्यावरण और आर्थिक हितों को सुरक्षित कर सकते हैं।

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