डिजिटल डिवाइड: इंटरनेट के मामले में फिसड्डी लड़कियां, भारत में 100 पर सिर्फ 61 के पास सुविधा

आज जब सारी दुनिया इंटरनेट के इर्द-गिर्द सिमट गई है, उस दौर में भी असमानता की यह खाई बच्चियों को अपने पंख फैलाने से रोक रही है
भारत में लैपटॉप पर पढ़ाई करती बच्चियां; फोटो: आईस्टॉक
भारत में लैपटॉप पर पढ़ाई करती बच्चियां; फोटो: आईस्टॉक
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भारत में स्त्री-पुरुष के बीच जो असमानता की खाई है वो 21वीं सदी में भी जारी है। आज भी हमारे देश के कई हिस्सों में पुरुषों को महिलाओं से श्रेष्ठ समझा जाता है। समाज में मौजूद यह भावना बच्चियों को आगे बढ़ने से रोक रही है। आज जब सारी दुनिया इंटरनेट के इर्द-गिर्द सिमट गई है उस दौर में भी देश में 100 लड़कों के मुकाबले केवल 61 लड़कियों के पास ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। जो कहीं न कहीं 15 से 24 वर्ष की इन लड़कियों को पंख फैलाने से रोक रही है।

मतलब साफ है कि इंटरनेट के उपयोग और पहुंच के मामले में भी लड़कियां फिसड्डी हैं। हालांकि क्या उनके पिछड़ने के लिए वो खुद जिम्मेवार हैं या फिर इसके पीछे की वजह हमारा समाज और कमजोर मानसिकता है, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

यह जानकारी डिजिटल डिवाइड को लेकर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा 27 अप्रैल 2023 को जारी नई रिपोर्ट “ब्रिजिंग द जेंडर डिजिटल डिवाइड” में सामने आई है। इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक आज जब मोबाइल फोन हर किसी की जरूरत बन गया है। उस दौर में भी यह लड़कियां, मोबाइल फोन रखने के मामले में भी लड़कों से पीछे हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश में एक समान आय वर्ग के लड़के और लड़कियों के बीच मोबाइल के मामले में 39.5 अंकों का अंतर है।

मतलब की भारत में एक ही परिवार में रहने वाले लड़के की तुलना में लड़कियों के पास खुद का मोबाइल फोन होने की सम्भावना 39.5 फीसदी कम है। आंकड़ों के मुताबिक इस मामले में भारत में 15 से 24 वर्ष की आयु की लड़कियों और महिलाओं की स्थिति तो कई अफ्रीकी देशों से भी बदतर है। उदाहरण के लिए जहां घाना में यह अंतर 17.5 अंकों का है। वहीं नाइजीरिया में 11.3, रवांडा में 9.2, जबकि सिएरा लियोन में तो केवल 5.7 अंको का है।

यूनिसेफ ने अपनी इस रिपोर्ट में15 से 24 वर्ष के युवाओं के बीच डिजिटल डिवाइड का सूक्ष्म विश्लेषण किया है। रिपोर्ट मूलतः निम्न, निम्न-मध्यम और कुछ मध्यम-आय वाले देशों के इंटरनेट उपयोग, खुद का मोबाइल फोन और डिजिटल कौशल से जुड़े आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया तेजी से डिजिटल हो रही है। लेकिन इस आपस में जुड़ी इस दुनिया में लड़कियां पीछे छूट रहीं हैं।

देखा जाए तो यूनिसेफ द्वारा जारी यह रिपोर्ट ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करती है जो कहीं भी 21वीं सदी के कैनवस में फिट नहीं बैठती। यदि जीएसएमए द्वारा 2021 में जारी रिपोर्ट "कनेक्टेड वीमेन: द मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021" के मुताबिक देश में केवल 79 फीसदी पुरुष मोबाइल फोन रखते हैं वहीं महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा केवल 67 फीसदी ही है मतलब इनके बीच 15 फीसदी का जेंडर गैप है। जीएसएमए के मुताबिक विकलांग महिलाओं की स्थिति तो कहीं ज्यादा खराब है रिपोर्ट के मुताबिक देश में केवल पांच फीसदी विकलांग महिलाओं के पास अपना खुद का मोबाइल फोन है।

कमजोर देशों में इंटरनेट से वंचित हैं 90 फीसदी लड़कियां

इसी तरह यदि इंटरनेट की उपलब्धता को देखें तो जहां देश में 45 फीसदी पुरुष इंटरनेट एक्सेस कर रहे हैं वहीं महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा केवल 30 फीसदी ही है। मतलब की इनके बीच 33 फीसदी का अंतर है। ऐसा ही कुछ 2022 में ऑक्सफेम द्वारा जारी “इंडिया इनक्वॉलिटी रिपोर्ट 2022” में भी सामने आया है जिसके मुताबिक देश में केवल 31 फीसदी महिलाओं के पास खुद का मोबाइल फोन है। वहीं 57 फीसदी पुरुषों की तुलना में केवल एक तिहाई यानी 33 फीसदी महिलाओं ने कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।

डिजिटल डिवाइड की यह जो खाई है वो केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। यूनिसेफ के मुताबिक कमजोर देशों में 90 फीसदी किशोर लड़कियां इंटरनेट से वंचित हैं। वहीं इसके विपरीत उनकी ही उम्र के युवा पुरुषों के ऑनलाइन होने की सम्भावना दोगुनी है।

रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट तक पहुंच को बढ़ाना जरूरी है, क्योंकि डिजिटल कौशल को बढ़ावा देने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। उदाहरण के लिए, विश्लेषण किए गए अधिकांश देशों में, घर पर इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले युवाओं की संख्या, डिजिटल कौशल प्राप्त युवाओं की संख्या से कहीं ज्यादा है।

रिपोर्ट के अनुसार औसतन 32 देशों और क्षेत्रों में, लड़कों की तुलना में, लड़कियों के डिजिटल रूप से प्रवीण होने की सम्भावना 35 फीसदी कम है। इसमें फाइल और फोल्डरों को कॉपी-पेस्ट करना, ईमेल भेजना या फाइलों को इधर से उधर भेजना जैसी मामूली गतिविधियां शामिल हैं। ऐसे में रिपोर्ट का मानना है कि इसे दूर करने में शिक्षा और परिवार के वातावरण की भूमिका महत्वपूर्ण है।

करें कुछ ऐसा जिससे डिजिटल दुनिया में भी सफल हो सकें बच्चियां

देखा जाए तो एक ही घर में लड़कों की तुलना में लड़कियों को इंटरनेट और डिजिटल तकनीकों तक पहुंच हासिल करने या उपयोग करने की सम्भावना काफी कम रहती है। इसी तरह विश्लेषण किए गए 41 देशों और क्षेत्रों में एक ही घर में लड़कों की तुलना में लड़कियों को मोबाइल फोन मिलने की सम्भावना कम ही होती है।

यूनिसेफ का मानना है कि उच्च शिक्षा और श्रम बाजार के अवसरों तक पहुंच में मौजूद बाधाएं, भेदभावपूर्ण लैंगिक मानदंड और ऑनलाइन सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं लड़कियों के कौशल विकास और डिजिटल पहुंच को सीमित कर रही हैं। ऐसे में यूनिसेफ ने दुनिया भर में सरकारों से लैंगिक असमानता की खाई को भरने में मदद करने का आहवान किया है जिससे बच्चियां डिजिटल दुनिया में भी सफल हो सकें।

इस बारे में यूनीसेफ के शिक्षा निदेशक, रॉबर्ट जेनकिंस का कहना है कि, "लड़कों और लड़कियों के बीच असमानता की इस खाई को भरने के मायने, इंटरनेट और प्रौद्योगिकी तक उनकी पहुंच से कहीं ज्यादा हैं। यह मुद्दा लड़कियों को इन्नोवेटर, निर्माता और लीडर बनने के लिए सशक्त करने के बारे में है।"

ऐसे में उनके अनुसार यदि हम श्रम बाजार में, विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में लैंगिक असमानता को भरना चाहते हैं, तो हमें आज से ही युवाओं, विशेष रूप से लड़कियों को डिजिटल कौशल हासिल करने में मदद देने की शुरूआत करनी होगी।

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