मजा से सजा - पढ़ाई पर पड़ा बुरा असर

कोविड-19 महामारी के कारण जब स्कूल बंद हुए तो बच्चों के लिए यह स्कूलों से मुक्ति की तरह था लेकिन अब वे इस मुक्ति से ऊब चुके हैं। महामारी ने पढ़ाई और उनके जीवन को किस प्रकार पटरी से उतारा है, बता रही हैं - अथिया महापात्रा, आईटीएल पब्लिक स्कूल, दिल्ली में नौवीं कक्षा की छात्रा
इलस्ट्रेशंस: योगेंद्र आनंद / सीएसई
इलस्ट्रेशंस: योगेंद्र आनंद / सीएसई
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क्लास अटैंड करो, पढ़ाई करो, खाओ-पियो और सो जाओ। कुछ घंटे बाद उठकर कुल्ला करो और फिर से ये सब दोहराओ। यह रुटीन सुनने में कितना अच्छा लगता है न? महामारी और लॉकडाउन में मानो ये सब गतिविधियां मेरे जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गई हैं। क्लास में गूंजने वाला छात्रों को शोर-शराबा खत्म सा हो गया है। ऑनलाइन कक्षा में सन्नाटा पसरा रहता है। मैं अपने दोस्तों को गले नहीं लगा सकती, बस उन्हें एक बार वीडियो कॉल कर सकती हूं। अब क्लास में शंकाओं का समाधान शिक्षकों के सामने बैठकर नहीं होता, बल्कि इसके लिए उनके ऑनलाइन आने का इंतजार करना पड़ता है।

जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ है जब मैं अपने दोस्तों से स्कूल या पार्क में नहीं मिल पा रही हूं। मुझे अक्सर बड़े सामाजिक जमावड़ों से घबराहट होती है। कई बार मैं बोलने से इसलिए बचती हूं कि कहीं लोग मुझे गलत न समझ बैठें। शुरू में तो समाज से कटाव होने पर मुझे राहत मिली थी। इससे मैं किसी से अनावश्यक बातें करने से बच गई। मुझे लगा था कि अब मैं जिससे चाहूं, उससे बातें कर सकती हूं। यही वजह है कि शुरुआत में आपदा की इस घड़ी में मुझे अधिक बुरा नहीं लगा। मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रही कि मैं मानसिक रूप से मजबूत हूं बल्कि असल बात तो यह है कि मैं भावनात्मक रूप से मजबूत नहीं हूं।

मैं अपनी भावनाओं को किसी बोतल में बंद कर देना पसंद करती हूं ताकि मुझे िचंचित देखकर मेरे प्रियजनों को इसी प्रकार की परेशानी न हो। लेकिन कई बार यह बोतल फट भी पड़ती है, बिल्कुल शैंपेन की बोतल की तरह। गुस्सा, राहत, खुशी, अवसाद आदि मिलीजुली भावनाएं मेरे अंदर हिलोरें मार रही हैं। आलस भरे मेरे लापरवाह रवैये ने मेरे प्रदर्शन पर बुरा असर डाला है। आठवीं क्लास में मेरी ग्रेड काफी गिर गई, जिसका खामियाजा मुझे अभी तक भुगतना पड़ रहा है। अपनी और दूसरों की उम्मीदों पर खरी न उतर पाने के लिए केवल मैं ही दोषी हूं।

अब मुझे लगता है कि अगर महामारी न होती तो मेरा प्रदर्शन इतना बुरा नहीं होता। अभी मैं नौंवी क्लास में हूं। मुझ पर पढ़ाई का भारी दबाव है। सबसे अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, पूरी क्षमता के साथ पढ़ने का दबाव, सर्वश्रेष्ठ करने का दबाव। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि दबाव और तनाव सफलता के लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन यह मंत्र सभी लोगों पर लागू नहीं होता।

मैं खुद में सुधार लाने के लिए पूरी मेहनत कर रही हूं, लेकिन अब तक मुझे किसी से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली है। इससे मुझे लगता है कि आगे बहुत मेहनत की जरूरत है। मुझे पता है कि मैं किसी तरह के प्रोत्साहन के लायक नहीं हूं। इस बारे में पूछने के पीछे मेरा खुद का स्वार्थ है। लेकिन, इस तरह के समय में मेरे इस स्वार्थ ने मुझे निश्चित रूप से बेहतर महसूस कराया होगा। इस महामारी में एक छात्र की भावनाओं, कठिनाइयों और मानसिक स्थिति को अत्यधिक अनदेखा किया जा रहा है।

लोग शिकायत करते हैं कि मैं कैसे खुद को एक किले के रूप में पहरे में रख सकती हूं। लेकिन जब मैं जवाब देती हूं तो वे तीरों से मुझे छलनी करने की कोशिश करते हैं। इसलिए, मतभेदों की खाई को पाटने की बजाय मैंने संवेदनशून्यता की एक दीवार खड़ी कर ली है। इसका नतीजा यह निकला कि मेरी बहुत की लालसाएं सूख चुकी हैं। इससे मेरे उज्ज्वल भविष्य की उम्मीदों पर आघात लगा है। इन दिनों पढ़ाई के प्रति मेरी कथित भक्ति के कारण मैं शिक्षा के अलावा किसी भी गतिविधि में मुश्किल से भाग ले पाती हूं।

अंत में यह कहा जा सकता है कि महामारी ने हमारे जीवन पर बुरा असर डाला है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से लेकर शैक्षणिक और सामाजिक जीवन तक हर पहलू पर इसने चोट की है। मुझे लगता है कि मेरे जीवन के स्टीयरिंग व्हील पर मेरा हाथ ही नहीं है। जीवन की गाड़ी ऑटोपायलट मोड पर और यह आंख बंद करके एक चट्टान की ओर बढ़ रही है। डर है कि यह फिर से न गिर जाए।

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