उत्तराखंड की नैनी झील के आसपास बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से झील सूख रही है
उत्तराखंड की नैनी झील के आसपास बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से झील सूख रही है

आवरण कथा, खतरे में हिल स्टेशन: जोशीमठ की राह पर नैनीताल, पाबंदी के बावजूद हो रहे निर्माण

1884 में भूस्खलन के बाद ही अंग्रेजों ने निर्माणों पर पाबंदी लगा दी थी, लेकिन निर्माण अब तक जारी हैं
Published on

हिमाचल से आ रही तबाही की खबरों के मुकाबले उत्तराखंड के नैनीताल में ढहे घरों की खबर को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली, लेकिन इस घटना ने नैनीताल में रह रहे लोगों को बेहद डरा दिया। 23 सितंबर 2023 को नैनीताल के मल्ली ताल स्थित चार्टन लॉज क्षेत्र में एक दोमंजिला मकान भरभराकर ढह गया। इस मकान की चपेट में आने से तीन अन्य घर भी दब गए।

हालांकि समय रहते घर खाली करा दिए गए थे, जिस वजह से जानमाल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इन घरों के ढहने के बाद प्रशासन ने एहतियात के तौर पर अगले दिन आसपास के 24 घरों को खाली करा दिया और घरों के बाहर लाल निशान लगा दिए। यह इलाका शेर का डांडा रिज में स्थित आल्मा पहाड़ी पर बसा हुआ है, जिसे भूस्ख्लन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है।

अनुमान है कि इस पहाड़ी पर लगभग 10 हजार लोग रह रहे हैं। यह नैनी झील के ऊपर बायीं ओर की खड़ी पहाड़ी है। अंग्रेजों के शासनकाल में साल 1880 में इसी पहाड़ी में भारी भूस्खलन हुआ था, जिसमें 151 लोग मारे गए थे। इसमें 43 अंग्रेज अधिकारी भी शामिल थे। हादसे के बाद अंग्रेजों ने इस पहाड़ी पर निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी। बावजूद इसके अब तक यहां निर्माण हो रहे हैं। लगभग 10 हजार लोग यहां मकान बनाकर रह रहे हैं।

सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च (सीईडीएआर) के रिसर्च को-ऑर्डिनेटर विशाल सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 1880 के इस हादसे के बाद नैनीताल में 79 किलोमीटर का एक बड़ा ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया था जो विश्व धरोहर है। इसी ड्रेनेज की वजह से नैनीताल स्थिर रहा है। जब यह बनाया गया था तो उसमें स्थानीय भू-गर्भीय स्थितियों का ख्याल रखा गया था, हालांकि अब नई इंजीनियरिंग इसका बिल्कुल ख्याल नहीं रख रही।

चिंताजनक यह है कि ड्रेनेज सिस्टम के ऊपर भी मकान बनाए जा चुके हैं। ड्रेनेज सिस्टम में गंदे पानी और मलबे को फेंक दिया जाता है, जो उसे बाधित कर रहा है। नैनीताल को भी हिमालयी राज्यों के पहाड़ी शहरों की तरह एक अदद वहन क्षमता (कैरिंग केपेसिटी) सर्वेक्षण और भवन उपनियमों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

विशाल सिंह बताते हैं कि यह प्रचलित है कि 1900 में नैनीताल की कैरिंग कैपेसिटी की मांग उठी थी और तब यह पाया गया था कि नैनीताल 5 हजार लोगों की कैरिंग कैपेसिटी के लिए बना है। 2011 जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक इस शहर की आबादी 40 हजार थी जो इस वक्त करीब 80 हजार पहुंच चुकी है। इसके अलावा करीब 20 हजार गैर-पंजीकृत आबादी है। इस स्थानीय आबादी के अलावा हर हफ्ते करीब 80 हजार लोग नैनीताल पर्यटन के लिए आते हैं।

यह बताता है कि नैनीताल के संसाधनों पर कितना दबाव है। कैरिंग कैपेसिटी में पानी की उपलब्धता एक अहम बिंदु है। 2011 में करीब 30 हजार की जनसंख्या पर रोजाना 70 लाख लीटर पानी उपलब्ध था। मांग और आपूर्ति में करीब 50 फीसदी की कमी थी। दबाव का अंदाजा इससे भी लगता है कि 2017 में अत्यंत दोहन के कारण नैनीताल झील का पानी 18 फीट नीचे चला गया था।

12 भवनों से शुरु हुआ निर्माण

संसाधनों के अलावा अवैध निर्माण भी नैनीताल के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि साल 2000 में अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के पहाड़ी शहरों में अवैध निर्माण बढ़े। इसमें नैनीताल भी शामिल है। 2016 में नैनीताल पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन स्थानों पर निर्माण प्रतिबंधित है, वहां 10 वर्षों (2005 से 2015) में निर्मित क्षेत्र में लगभग 50 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि अन्य हिस्सों में निर्मित क्षेत्र में 34 फीसदी ही वृद्धि हुई।

यह अध्ययन कुमाऊं विश्वविद्यालय के ज्योग्राफी के प्रोफेसर पीसी तिवारी ने किया था, जिसमें कहा गया कि प्रतिबंधित क्षेत्रों में किया गया निर्माण शहर के बाकी हिस्सों में हुए निर्माण के मुकाबले अधिक था। हर साल यहां आने वाले लाखों पर्यटकों की सुविधाएं देने के लिए निर्माण में लगातार वृद्धि हो रही है, जो शहर के लिए खतरनाक साबित हो रही है। नैनीताल का बलिया नाला क्षेत्र हो या फिर नैना पीक या भुजा टिफन टॉप पहाड़ी या फिर स्नो व्यू की रमणीक पहाड़ी, लगभग सभी जगहें भूस्खलन की जद में आ चुकी हैं। यहां साल दो साल में भूस्खलन का दायरा बढ़ता जा रहा है।

हिमालयी राज्य उत्तराखंड का नैनीताल शहर सुरम्य नैनी झील के आसपास बसा हुआ है। नैनीताल की खोज अंग्रेजों ने 1839 में की थी। 1842 में यहां 12 बंगले बनाने का ठेका दे दिया। इसके बाद से यहां निर्माण का सिलसिला शुरू हो गया। गजेटियर के मुताबिक मार्च 1901 में की गई जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 7,609 थी, जिसमें 5,209 पुरुष थे।

उत्तराखंड आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र की एक रिपोर्ट बताती है कि 2005 में नैनी झील के आसपास का बिल्ट अप (निर्मित क्षेत्र ) 6.3 लाख वर्ग मीटर था, जो 2010 में लगभग 33.88 प्रतिशत बढ़ गया। झील के आसपास कंक्रीट के निर्माण बढ़ने से न केवल झील के रिचार्ज और पानी की गुणवत्ता प्रभावित हुई, बल्कि इसके चलते पानी का ओवरफ्लो बढ़ा है।

दरअसल नैनीताल की भौगोलिक स्थिति को लेकर भूवैज्ञानिक हमेशा से चेताते रहे हैं। भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (इसरो) देहरादून से जुड़े हर्ष वत्स बताते हैं कि नैनीताल के भूविज्ञान में क्रोल समूह की चट्टानों का वर्चस्व है, जिसमें स्लेट, मार्ल्स, बलुआ पत्थर, चूना पत्थर और डोलोमाइट के साथ-साथ कुछ छोटे बांध शामिल हैं। सूखाताल से नैनी झील के मध्य से एक भ्रंश रेखा बलियानाला होते हुए काठगोदाम तक जाती है। इस भ्रंश रेखा के परिणामस्वरूप नैनीताल के नीचे चट्टानी संरचना में तनाव कतरन और चूर्णीकरण होता है। इसलिए, क्षेत्र में भूवैज्ञानिक गड़बड़ी के कारण बड़ी क्षति का खतरा हमेशा बना रहता है।

भूंकप: एक और खतरा

भूस्खलन के अलावा इस क्षेत्र में बड़े भूकंप की भी आशंका बनी रहती है। 2019 में जर्नल ऑफ ज्योग्राफी एंड नेचुरल डिजास्टर्स में प्रकाशित एक रिसर्च लेख में कहा गया कि यह क्षेत्र भारत के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के जोन चार में आता है और 1877, 1889 और 1934 में भूकंप का सामना करना पड़ा था, जिसके कारण चट्टानें ढीली हो गईं और इंसानी बस्तियों को आंशिक रूप से क्षति पहुंची।

इस अध्ययन में भूकंप की संवेदनशीलता को देखते हुए रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग (आरवीएस) तकनीक का उपयोग करके नैनीताल की कुल 2,865 इमारतों का सर्वेक्षण किया गया। इनमें से लगभग 14 प्रतिशत इमारतें श्रेणी क्षति वर्ग पांच और 22 प्रतिशत इमारतें क्षति वर्ग चार में पाई गई।

अंग्रेजों की पसंद होने के कारण आजादी से पहले ही नैनीताल को नियोजित तरीके से बसाने की कोशिशें होती रही। 2016 में पीसी तिवारी और भगवती जोशी के एक लेख से पता चलता है कि वर्ष 1930 में नैनीताल नगर पालिका परिषद ने भूवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में मानवजनित गतिविधियों को विनियमित करने के लिए उपनियम बनाए, जिन्हें निर्माण के लिए निषिद्ध के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

नैनीताल के आसपास पर्यावरणीय अस्थिरता का मुद्दा विभिन्न नागरिक समूहों और व्यक्तियों ने सर्वोच्च न्यायालय और उत्तराखंड उच्च न्यायालय में उठाया। अदालतों ने झील के चारों ओर कमजोर ढलानों पर निर्माण गतिविधियां न करने की सलाह दी। इसके बावजूद जिन क्षेत्रों में निर्माण प्रतिबंधित है, वहां भी निर्मित क्षेत्र बढ़ गया।

नैनीताल झील विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण ने 1992 में नैनीताल में निर्माण गतिविधियों को और अधिक प्रतिबंधित करने के लिए भवन उपनियमों को संशोधित किया और शहर के 1.64 वर्ग किमी क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। यह प्राधिकरण भवन निर्माण परमिट जारी करने के लिए जिम्मेदार है। संशोधित भवन उपनियमों में इमारत की ऊंचाई 7.5 मीटर या 2 मंजिल है, तो जो भी इनमें से कम है, की ही अनुमति दी गई है।

जबकि फ्लोर एरिया 250 वर्ग मीटर तक सीमित है। उपविभाजन भूमि की अनुमति नहीं है। भवन निर्माण की अनुमति देने के लिए शहर को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है: वे क्षेत्र जहां ढलान 80 फीसदी से अधिक है और वे क्षेत्र जहां ढलान 50 -80 फीसदी है। लेकिन नियम कानून कुछ काम नहीं आए।

शहर के वयोवृद्ध पत्रकार एवं 'नैनीताल एक धरोहर' किताब के लेखक प्रयाग पांडेेय कहते हैं कि स्थानीय लोग और वैज्ञानिक शहर में अवैध निर्माण व अतिक्रमण के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन निर्माण का सिलसिला थम ही नहीं रहा है। जब-जब भूस्खलन की वजह से शहर में नुकसान होता है तो प्रशासन व सरकार निर्माण पर रोक लगाने व शहर की वहन क्षमता का आकलन कराने की बात करती है, लेकिन यह सब धरा रह जाता है।

2017 में हाई कोर्ट ने नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) को नैनीताल की वहन क्षमता का अध्ययन करने की बात कही थी, लेकिन नीरी की वेबसाइट का कहना है कि यह प्रोजेक्ट अभी तक जारी है। इन दिनों मास्टर प्लान 2041 की तैयारी चल रही है।

नागपुर की संस्था क्रिएटिव सर्कल को इसकी जिम्मेवारी सौंपी गई है। नैनीताल, भीमताल और मुक्तेश्वर का जीआईएस आधारित मास्टर प्लान 2041 का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। हालांकि स्थानीय लोग इस मास्टर प्लान पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि नैनीताल में अब नया कुछ नहीं बन सकता। पहले से ही शहर में क्षमता से अधिक निर्माण हो चुका है।

प्रयाग पांडेेय कहते हैं कि मास्टर प्लान इस शहर के लिए कोई मायने नहीं रखता। 1995 में मास्टर प्लान बनाया गया था, लेकिन उसे लागू नहीं किया गया। पूरा शहर अवैध निर्माणों से पटा हुआ है।

पांडेय कहते हैं कि एक ओर सरकार कैरिंग केपेसिटी की बात करती है, जबकि दूसरी ओर शहर में बहुमंजिला पार्किंग बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है। जबकि पूरे शहर में एक ही सड़क है, जिसे मॉल रोड कहते हैं। शहर में गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगनी चाहिए, लेकिन सरकार पार्किंग की बात करके गाड़ियों की संख्या बढ़ाई जा रही है। विशाल कहते हैं कि ऐसा लगता है कि नैनीताल अब अपनी आखिरी सांसें ले रहा है।

Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in